ॐ
संयोगमें वियोगका दर्शन
जो अवश्यम्भावी है अर्थात् जिसका होना निश्चित है उस वियोगको पहले ही स्वीकार कर लें, तो फिर अन्तमें रोना नहीं पड़ेगा‒
मन पछितैहै अवसर बीते ।
अंतहुँ तोहिं तजैंगे पामर ! तू न तजै अब ही ते ॥
(विनय-पत्रिका १९८)
वर्तमानमें ही वियोगको स्वीकार कर लेना ‘योग’ है‒‘तं विद्याद् दुःखसयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् ।’ (गीता ६।२३) ‘दुःखरूप संसारके संयोगके वियोगका नाम योग है ।’ संयोगमें विषमता रहती है । संयोगके बिना विषमता नहीं होती । संयोगका त्याग करनेसे विषमता मिट जाती है और योग प्राप्त हो जाता है ‘समत्वं योग उच्यते’ (गीता २।४८) । फिर न कोई दुःख रहता है, न सन्ताप रहता है, न जलन या हलचल ही रहती है ।
जबतक संयोग है, तबतक प्रेमसे रहो, दूसरोंकी सेवा करो‒‘सबसे हिलमिल चालिये, नदी नाव संजोग ॥’ जितनी बन सके, सेवा कर दो । बदलेमें किसी वस्तुकी आशा मत रखो । जिनसे वियोग ही होगा, उसकी आशा रखे ही क्यों ? माता, पिता, स्त्री, पुत्र, भाई, बन्धु आदि जितने भी हैं, उन सबसे एक दिन वियोग होगा । उनसे अच्छे-से-अच्छा व्यवहार कर दें । मनकी यह गलत भावना निकाल दें कि वे बने रहेंगे । जो मिला हुआ है वह सब जा रहा है, फिर और मिलनेकी आशा क्यों रखें ? और मिलेगा कि नहीं मिलेगा‒इसका पूरा पता नहीं, पर मिल जाय तो रहेगा नहीं‒इसका पूरा पता है । फिर उसके मिलनेकी इच्छा करके व्यर्थ अपनी बेइज्जती क्यों करें ?
राग-द्वेष, हर्ष-शोक आदि भी रहते नहीं अपितु जा ही रहे हैं । ये सब विनाशी हैं और जीव अविनाशी है‒ ‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी’ विनाशीका संग छोड़ना मुक्ति है और अविनाशीमें स्थित होना भक्ति है । विनाशीका वियोग हो ही रहा है । इस वियोगको अभी ही स्वीकार कर लें । फिर मुक्ति और भक्ति‒ दोनों स्वतसिद्ध हैं ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
भगवान्को पुकारनेसे जो काम होता है, वह विवेक-विचारसे नहीं होता ।
भगवान्के न मिलनेका दुःख हजारों सांसारिक सुखोंसे बढ़कर है ।
जैसे वैद्य जो दवा दे, उसीमें हमारा हित है, ऐसे ही भगवान् जो विधान करें, उसीमें हमारा परम हित है
जैसे गायके शरीरमें रहनेवाला घी काम नहीं आता, ऐसे ही सीख हुआ ज्ञान काम नहीं आता ।
‘मैं ज्ञानी हूँ’ और ‘मैं अज्ञानी हूँ’‒ये दोनों ही मान्यताएँ अज्ञानियोंकी हैं ।
ठीक-बेठीक हमारी दृष्टिमें होता है । भगवान्की दृष्टिमें सब ठीक-ही-ठीक होता है, बेठीक होता ही नहीं ।
दूसरे हमारेमें गुण देखते हैं तो यह उनकी सज्जनता और उदारता है, पर उन गुणोंको अपना मान लेना उनकी सज्जनता और उदारताका दुरुपयोग है ।
विद्या प्राप्त करनेका सबसे बढ़िया उपाय है‒गुरुकी आज्ञाका पालन करना, उनकी प्रसन्नता लेना । उनकी प्रसन्नतासे जो विद्या आती है, वह अपने उद्योगसे नहीं आती ।
गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।
प्रेम अमिय मन्दर विरह भरत पयोधि गँभीर।
मथि प्रगटे सुर साधु हित कृपासिन्धु रघुबीर।।
बिस्व भरण-पोषण कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।।
गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।
जपहि नामु जन आरत भारी। मिटाई कुसंकट होहि सुखारी।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ओम नमः शिवाय
कैलाशी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान कृपा कीजो॥
तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकर, सबकी की विनती सुनियो॥
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यैनमस्तस्यैनमस्तस्यैनमोनम:।।
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति:II
स्वामी रामसुखदास जी महाराज
हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!!
आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.
ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुख राशि
!! श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवाय !!
शांताकरम भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णँ शुभांगम।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगभिर्ध्यानिगम्यम। वंदे विष्णु भवभयहरणम् सर्वलोकैकनाथम॥
हनुमान जी के नाम मथि प्रगटे सुर साधु हित कृपासिन्धु रघुबीर।।
बिस्व भरण-पोषण कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।।
गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।
जपहि नामु जन आरत भारी। मिटाई कुसंकट होहि सुखारी।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ओम नमः शिवाय
कैलाशी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान कृपा कीजो॥
तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकर, सबकी की विनती सुनियो॥
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यैनमस्तस्यैनमस्तस्यैनमोनम:।।
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति:II
स्वामी रामसुखदास जी महाराज
हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!!
आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.
ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुख राशि
!! श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवाय !!
शांताकरम भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णँ शुभांगम।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगभिर्ध्यानिगम्यम। वंदे विष्णु भवभयहरणम् सर्वलोकैकनाथम॥
ॐ हनुमान, ॐ अंजनी सुत, ॐ वायु पुत्र, ॐ महाबल, ॐ रामेष्ठ, ॐ फाल्गुण सखा, ॐ पिंगाक्ष, ॐ अमित विक्रम, ॐ उदधिक्रमण, ॐ सीता शोक विनाशन, ॐ लक्ष्मण प्राण दाता, ॐ दशग्रीव दर्पहा
रामायण के माहा चरित्र
रामायण को हिंदूवर्ग के लोगो दुआरायक पूज्येनीय ग्रन्थ है! कुछ विद्वान् इस ग्रन्थ को काल्पनिक कथाओ का संग्रह मानते है! पहली बात तो यह है की अगर इतना बड़ा समुदाय इस ग्रन्थ की सत्त्यता को मानते है ! तो उनेह किसी के भी विचार से विचलित होने की जरुरत नही है! लोग भले ही इसे एक काल्पनिक ग्रन्थ माने पर वह भी इसके द्वारा अपने जीवन मे कुछ लाभ कमा सकते है !
१.मार्यादा पुरशोतम श्री राम :-
श्री राम रामायण के महानायकऔर महापात्र है! जिन्होंने कई आदर्शो को अपने जीवन मे उतारकर एक सादारण मनुस्य की भांति जीवन मे आने वाले हर सुख दुःख को अपना कर एक पुत्र ,भाई ,पति ,मित्र ,शिष्य ,सम्बन्धी,युवराज,राजा,आदि सभी मे आपना कर्म करके सभी के सामने यह उदहारण दिया है की स्वंम भगवान् को भी कर्म से मुक्ति नही है और उनेह भी दुखो -परेसनियो का सामना करना पड़ता है ! तो आम आदमियों की तो बहुत छोटी बात है !
२.सीता:-
प्रभु श्री राम जी की भार्या सीता है ! जिनका चरित्र समस्त भारतीय महिलाओ के लिए आदर्श है ! क्योकि माता सीता जी ने महलो का सुख छोड़ कर अपने पति के साथ जंगलो मे जाना स्वीकार किया और हमेशा पतिव्रत धर्म का पालन किया !
३.दशरथ:-
श्री राम प्रभु के पिता होने का गोरव सूर्यवंशी महाराज दसरथ जी को प्राप्त हुआ है!दसरथ जी ने अपने चरित्र मे आदर्श महाराजा ,पुत्रोको प्रेम करने वाला पिता,और अपने वचनों की प्रति पूर्ण समर्पित थे!और अनुचित होते ही भी अपने वचनों पालन किया ! जिससे यह सिख मिलती हे की बिना सोचे किसी भी प्रकार का वचन नही देना चाहीऐ यह सर्वथा अनुचित है !
४.लछमन :-
श्री राम प्रभु के अनुज होने के साथ ही राम जी का विशेष स्नेह प्राप्त है !लछमन जी को आदर्श भाई होने का गोरव प्राप्त है और यह भी कहा जाता है की राम दुबारा जनम ले सकते है परंतु लछमन जेसा भाई दुबारा नही हो सकता है !कियोकी इनके जीवन का एकमात्र लाछ्य श्री राम की सेवा मे समर्पित कर समस्त सुखो को त्याग कर हमेशा राम जी का साथ दिया !
५.भरत :-
भरत जी चरित्र आदर्सो से परिपूर्ण था और वह भी राम जी के के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से प्रेम करता था इसिलीय जो राज उसे अपनी माँ की कुटिलता के कारन प्राप्त हुआ पर उसने राज पाठ न अपना कर भगवान् श्री राम की चरण पादुका को सिहासन आरुढ कर स्वम उनके प्रतिनिधि के तोर पर राज की देख भाल की जो भरत के महान चरित्र को दर्शाती है !
६.शत्रुघन :-
इन्होने भी लछमन के समान ही भरत की सेवा और श्री राम जी की आराधना की !
७.हनुमान :-
हनुमान जो श्री राम के सबसे बडे भक्त है !हनुमान जी ने अपनी जीवन राम जी की सेवा भक्ति मे ही समर्पित किया है !वेसे हनुमान जी काफी कथा प्रचलित हे परन्तु इनकी सबसे बड़ी ख़ास बात है की निस्वार्थ भक्ति और सेवा भाव!
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
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