मुक्ति कर्म के बन्धन से मोक्ष पाने की स्थिति है। यह स्थिति जीवन में ही प्राप्त हो सकती है। मुक्ति निम्न चर प्रकर के हैं:
सालोक्य - जीव भगवान के साथ उनके लोक में ही वास करता हैं।
सामीप्य- जीव भगवान के सन्निध्य में रहते कामनाएं भोगता हैं।
सारूप्य - जीव भगवान के साम्य (जैसे चतुर्भुज) रूप लिए इच्छाएं अनुभूत करता हैं।
सायुज्य - भक्त भगवान मे लीन होकर आनंद की अनुभूति करता हैं।
मुक्त का मतलब है बंधनों से मुक्त होना और दुखों से मुक्त होना । दुखों से मुक्त.... आत्मसाक्षात्कार के बिना हुआ नहीं जाता । परमात्मा की प्राप्ति कहो, मुक्ति कहो एक ही बात है । मुक्ति भी पांच प्रकार की होती है – यहां से मर गये, स्वर्ग में चले गये, इसको स्वर्गीय मुक्ति कहते है । ठाकुरजी का भजन करके ठाकुरजी के देश में चले गये वो सायुज्य मुक्ति होती है । ठाकुरजी के नजदीक रहे तो सामीप्य मुक्ति । और नजदीक हो गये मंत्री की नाईं........ सायुज्य ममुक्ति, सामीप्य मुक्ति....... लेकिन वास्तविक में पूर्ण मुक्ति होती है कि जिसमें ठाकुरजी जिस आत्मा में, मैं रूप में जगे है उसमें अपने आप को जानना.... ये जीवनमुक्ति होती है .... जीते-जी यहां होती है । दूसरी मुक्ति मरने के बाद होती है .... स्वर्गीय मुक्ति, सालोक्य मुक्ति, सामीप्य मुक्ति, सायुज्य मुक्ति, सारूप्य मुक्ति । इष्ट के लोक में रहना सालोक्य मुक्ति है । उनका चपरासी अथवा द्वारपाल जितनी नजदीकी लाना सायुज्य मुक्ति है । सामीप्य मुक्ति .... उनका खास मंत्री अथवा भाई की बराबरी । जैसे रहते है राजा का भाई ऐसे हो जाना भक्ति से सारूप्य मुक्ति । इन मुक्तियों में द्वैत बना रहता है । ये अलग है, मैं अलग हूँ और ये खुश रहें । उनके जैसा सुख-सुविधा, अधिकार भोगना, ये सालोक्य, सामीप्य मुक्तियां है और पूर्ण मुक्ति है कि अपनी आत्मा की पूर्णता का साक्षात्कार करके यहीं......... पूर्ण गुरूकृपा मिली, पूर्ण गुरू के ज्ञान में अनंत ब्रह्माण्डव्यापी अपने चैतन्य स्वभाव से एकाकार होना........ ये जीवनमुक्ति है, परममुक्ति है । मुक्तियों के पांच भेद है – यहां से मरकर स्वर्ग में गये, चलो मुक्त हो गये । वहां राग-द्वेष भी ज्यादा नहीं होता, और कम होता है लेकिन फिर भी इधर से तो बहुत अच्छा है । ....तो हो गये मुक्त । जैसे कर्जे से मुक्त हो गये, झगड़े से मुक्त हो गये । तलाक दे दिया, झंझट से मुक्त हो गये, ऐसी मुक्तियां तो बहुत है लेकिन पूर्ण परमात्मा को पाकर, बाहर से सुखी होने क बदले सत में, चित में, आनंद में स्थिति हो गई वो है पूर्ण मोक्ष........... इसको जीवन्मुक्ति बोलते है, कैवल्यमुक्ति बोलते है ।
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