मंत्र
श्री गणेश स्तुति
विश्वेश्वराय वरदाय सुराधिपाय,
लंबोदराय सकलाय जगध्दिताय।
नागाननाय सितसर्पविभूषाय,
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
लंबोदराय सकलाय जगध्दिताय।
नागाननाय सितसर्पविभूषाय,
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
ॐ गजाननं
भूंतागणाधि सेवितम्,
कपित्थजम्बू फलचारु भक्षणम् |
उमासुतम् शोक विनाश कारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ||
उमासुतम् शोक विनाश कारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ||
गाइये गनपति
जगबंदन। संकर सुवन भवानी नंदन।
सिद्धि- सदन गज बदन बिनायक। कृपा सिंधु सुंदर सब लायक।
मोदक-प्रिय मुद मंगल-दाता। बिद्या-बारिधि बुद्धि-बिधाता।
मांगत तुलसिदास कर जोरे। बसहिं रामसिय मानस मोरे।
सिद्धि- सदन गज बदन बिनायक। कृपा सिंधु सुंदर सब लायक।
मोदक-प्रिय मुद मंगल-दाता। बिद्या-बारिधि बुद्धि-बिधाता।
मांगत तुलसिदास कर जोरे। बसहिं रामसिय मानस मोरे।
देवी स्तुति
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेन्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि, धीयो यो न: प्रचोदयात् ।।
भावार्थ:
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
भर्गो देवस्य धीमहि, धीयो यो न: प्रचोदयात् ।।
भावार्थ:
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
या देवी सर्वभुतेषू
या देवी सर्वभुतेषू विष्णु मायेती शब्दिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधियते
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभुतेषु बुद्धिरुपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभुतेषु निद्रारुपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभुतेषु क्षुधारुपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या कुन्देंदु तुषारहार
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रव्रिता |
या वीणा वरा दंडमंडित करा या श्वेत पद्मासना ||
या ब्रह्मच्युत शंकरा प्रभुतिभी देवी सदा वन्दिता |
सामा पातु सरस्वती भगवती निशेश्य जाड्या पहा ||
श्री विष्णु स्तुति
शांताकारम भुजगशयनम पद्यनाभम् सुरेशम् । विश्वाधारं गगन सदृसं मेघवर्णम्
शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांतम् कमलनयनम् योगीभर्ध्यानगम्यम । वंदे विष्णूम भवभयहरम
सर्वलोकैय नाथम ॥
श्री राम स्तुति
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् |
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम ||
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम |
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम ||
भजु दीन बंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम |
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ||
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारू अंग विभुषणं |
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - धुषणं ||
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम |
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम ||
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों |
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो ||
एही भाँती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली |
तुलसी भवानी पूजी पूनी पूनी मुदित मन मन्दिर चली ||
जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाए कहीं | मंजुल मंगल मूल बाम अंग फर्कन लगे ||
शिव स्तुति
त्र्यम्बकं य्यजा महे
सुगन्धिम्पुष्टि वर्द्धनम्
उर्व्वा
रुक मिव बन्धनान् मृत्योर्म्मुक्षीय
मामृतात्
द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रम्
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।1।।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।1।।
जो भगवान् शंकर अपनी भक्ति प्रदान करने के लिए परम रमणीय व
स्वच्छ सौराष्ट्र प्रदेश गुजरात में
कृपा करके अवतीर्ण हुए हैं, मैं उन्हीं ज्योतिर्मयलिंगस्वरूप, चन्द्रकला को आभूषण बनाये हुए भगवान् श्री सोमनाथ की शरण में जाता हूं।
श्रीशैलशृंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुंगेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम्।।2।।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम्।।2।।
ऊंचाई की तुलना में जो अन्य पर्वतों से ऊंचा है, जिसमें देवताओं का समागम होता रहता है, ऐसे श्रीशैलश्रृंग में जो प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं, और जो संसार सागर को पार करने के लिए सेतु के समान हैं, उन्हीं एकमात्र श्री मल्लिकार्जुन भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ।
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।3।।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।3।।
जो भगवान् शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए
अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं, अकाल मृत्यु से
बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं नमस्कार करता हूं।
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।4।।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।4।।
जो भगवान् शंकर सज्जनों को इस संसार सागर से पार उतारने के लिए
कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम में स्थित मान्धता नगरी में सदा
निवास करते हैं, उन्हीं अद्वितीय ‘ओंकारेश्वर’ नाम से प्रसिद्ध श्री शिव की मैं स्तुति करता हूं।
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि।।5।।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि।।5।।
जो भगवान् शंकर पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि वैद्यनाथ धाम के
अन्दर सदा ही पार्वती सहित
विराजमान हैं, और देवता व दानव जिनके चरणकमलों की आराधना करते हैं, उन्हीं ‘श्री वैद्यनाथ’ नाम से विख्यात शिव को मैं प्रणाम करता हूं।
याम्ये सदंगे नगरेतिऽरम्ये विभूषितांगम् विविधैश्च भोगै:।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये।।6।।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये।।6।।
जो भगवान् शंकर दक्षिण दिशा में स्थित अत्यन्त रमणीय सदंग नामक
नगर में अनेक प्रकार के भोगों
तथा नाना आभूषणों विभूषित हैं, जो एकमात्र सुन्दर पराभक्ति तथा मुक्ति को प्रदान करते है, उन्हीं अद्वितीय श्री नागनाथ नामक शिव की मैं शरण में जाता हूं।
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे।।7।।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे।।7।।
जो भगवान् शंकर पर्वतराज हिमालय के समीप मन्दाकिनी के तट पर
स्थित केदारखण्ड नामक श्रृंग में
निवास करते हैं, तथा मुनीश्वरों के द्वारा हमेशा पूजित हैं, देवता-असुर, यक्ष-किन्नर व नाग आदि भी जिनकी हमेशा पूजा किया करते हैं, उन्हीं अद्वितीय कल्याणकारी केदारनाथ नामक शिव की मैं स्तुति करता हूं।
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे।
यद्दर्शनात् पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्रयम्बकमीशमीडे।।8।।
यद्दर्शनात् पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्रयम्बकमीशमीडे।।8।।
जो भगवान् शंकर गोदावरी नदी के पवित्र तट पर स्थित स्वच्छ
सह्याद्रिपर्वत के शिखर पर निवास करते हैं, जिनके दर्शन से शीघ्र सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उन्हीं त्रयम्बकेश्वर भगवान् की मैं स्तुति करता हूं।
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि।।9।।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि।।9।।
जो भगवान् शंकर सुन्दर ताम्रपर्णी नामक नदी व समुद्र के संगम
में श्री रामचन्द्र जी के द्वारा अनेक बाणों से या वानरों द्वारा पुल
बांधकर स्थापित किये गये हैं, उन्हीं श्रीरामेश्वर नामक शिव को मैं नियम से प्रणाम करता हूं।
यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि।।10।।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि।।10।।
जो भगवान् शंकर डाकिनी और शाकिनी समुदाय में प्रेतों के द्वारा
सदैव सेवित होते हैं, अथवा डाकिनी नामक स्थान में प्रेतों द्वारा जो सेवित होते हैं, उन्हीं भक्तहितकारी भीमशंकर नाम से प्रसिद्ध शिव को मैं
प्रणाम करता हूं।
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये।।11।।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये।।11।।
जो भगवान् शंकर आनन्दवन काशी क्षेत्र में आनन्दपूर्वक निवास
करते हैं, जो परमानन्द के निधान एवं आदिकारण हैं, और जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, ऐसे अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की मैं शरण में जाता हूं।
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरं स्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये॥ 12॥
वन्दे महोदारतरं स्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये॥ 12॥
जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय
हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, मैं उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण में जाता हूं।
ज्योतिर्मयद्वादशलिंगकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥ 13॥
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥ 13॥
यदि मनुष्य क्रमपूर्वक कहे गये इन बारह ज्योतिर्लिंगों के स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करे तो इनके दर्शन से होने वाले फल को
प्राप्त कर सकता है
1.
शिव - कल्याण स्वरूप
2.
महेश्वर - माया के अधीश्वर
3.
शम्भू - आनंद स्स्वरूप वाले
4.
पिनाकी - पिनाक धनुष धारण करने वाले
5.
शशिशेखर - सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
6.
वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
7.
विरूपाक्ष - भौंडी आँख वाले
8.
कपर्दी - जटाजूट धारण करने वाले
9.
नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले
10.
शंकर - सबका कल्याण करने वाले
11.
शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
12.
खटवांगी - खटिया का एक पाया रखने वाले
13.
विष्णुवल्लभ - भगवान विष्णु के अतिप्रेमी
14.
शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले
15.
अंबिकानाथ - भगवति के पति
16.
श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले
17.
भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
18.
भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले
19.
शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले
20.
त्रिलोकेश - तीनों लोकों के स्वामी
21.
शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले
22.
शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय
23.
उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले
24.
कपाली - कपाल धारण करने वाले
25.
कामारी - कामदेव के शत्रु
26.
अंधकारसुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले
27.
गंगाधर - गंगा जी को धारण करने वाले
28.
ललाटाक्ष - ललाट में आँख वाले
29.
कालकाल - काल के भी काल
30.
कृपानिधि - करूणा की खान
31.
भीम - भयंकर रूप वाले
32.
परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने वाले
33.
मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले
34.
जटाधर - जटा रखने वाले
35.
कैलाशवासी - कैलाश के निवासी
36.
कवची - कवच धारण करने वाले
37.
कठोर - अत्यन्त मजबूत देह वाले
38.
त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर को मारने वाले
39.
वृषांक - बैल के चिह्न वाली झंडा वाले
40.
वृषभारूढ़ - बैल की सवारी वाले
41.
भस्मोद्धूलितविग्रह - सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
42.
सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले
43.
स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले
44.
त्रयीमूर्ति - वेदरूपी विग्रह करने वाले
45.
अनीश्वर - जिसका और कोई मालिक नहीं है
46.
सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले
47.
परमात्मा - सबका अपना आपा
48.
सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले
49.
हवि - आहूति रूपी द्रव्य वाले
50.
यज्ञमय - यज्ञस्वरूप वाले
51.
सोम - उमा के सहित रूप वाले
52.
पंचवक्त्र - पांच मुख वाले
53.
सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाले
54.
विश्वेश्वर - सारे विश्व के ईश्वर
55.
वीरभद्र - बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले
56.
गणनाथ - गणों के स्वामी
57.
प्रजापति - प्रजाओं का पालन करने वाले
58.
हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले
59.
दुर्धुर्ष - किसी से नहीं दबने वाले
60.
गिरीश - पहाड़ों के मालिक
61.
गिरिश - कैलाश पर्वत पर सोने वाले
62.
अनघ - पापरहित
63.
भुजंगभूषण - साँप के आभूषण वाले
64.
भर्ग - पापों को भूंज देने वाले
65.
गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
66.
गिरिप्रिय - पर्वत प्रेमी
67.
कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले
68.
पुराराति - पुरों का नाश करने वाले
69.
भगवान् - सर्वसमर्थ षड्ऐश्वर्य संपन्न
70.
प्रमथाधिप - प्रमथगणों के अधिपति
71.
मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले
72.
सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले
73.
जगद्व्यापी - जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले
74.
जगद्गुरू - जगत् के गुरू
75.
व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले
76.
महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता
77.
चारुविक्रम - सुन्दर पराक्रम वाले
78.
रूद्र - भक्तों के दुख देखकर रोने वाले
79.
भूतपति - भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
80.
स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
81.
अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी को धारण करने वाले
82.
दिगम्बर - नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
83.
अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले
84.
अनेकात्मा - अनेक रूप धारण करने वाले
85.
सात्त्विक - सत्व गुण वाले
86.
शुद्धविग्रह - शुद्धमूर्ति वाले
87.
शाश्वत - नित्य रहने वाले
88.
खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
89.
अज - जन्म रहित
90.
पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले
91.
मृड - सुखस्वरूप वाले
92.
पशुपति - पशुओं के मालिक
93.
देव - स्वयं प्रकाश रूप
94.
महादेव - देवों के भी देव
95.
अव्यय - खर्च होने पर भी न घटने वाले
96.
हरि - विष्णुस्वरूप
97.
पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाड़ने वाले
98.
अव्यग्र - कभी भी व्यथित न होने वाले
99.
दक्षाध्वरहर - दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले
100.
हर - पापों व तापों को हरने वाले
101.
भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले
102.
अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
103.
सहस्राक्ष - अनंत आँख वाले
104.
सहस्रपाद - अनंत पैर वाले
105.
अपवर्गप्रद - कैवल्य मोक्ष देने वाले
106.
अनंत - देशकालवस्तुरूपी परिछेद से रहित
107.
तारक - सबको तारने वाला
108.
परमेश्वर - सबसे परे ईश्वर
कर्पूर गौरम
करूणावतारम
कर्पूर गौरम
करूणावतारम
संसार सारम भुजगेन्द्र हारम |
सदा वसंतम हृदयारविंदे
भवम भवानी सहितं नमामि ||
मंगलम भगवान् विष्णु
मंगलम गरुड़ध्वजः
|
मंगलम पुन्डरी काक्षो
मंगलायतनो हरि ||
सर्व मंगल मांग्लयै
शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्रयम्बके गौरी
नारायणी नमोस्तुते ||
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव
कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा
बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात
करोमि यध्य्त सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि ||
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव |
जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव
गोविन्द दामोदर माधवेती ||
श्री महालक्ष्मी अष्टकम
नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते !
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते !!
नमस्तेतु गरुदारुढै कोलासुर भयंकरी !
सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते !!
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी !
सर्वदुख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते !!
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भक्ति मुक्ति प्रदायनी !
मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते !!
आध्यंतरहीते देवी आद्य शक्ति महेश्वरी !
योगजे योग सम्भुते महालक्ष्मी नमोस्तुते !!
स्थूल सुक्ष्मे महारोद्रे महाशक्ति महोदरे !
महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते !!
पद्मासन स्थिते देवी परब्रह्म स्वरूपिणी !
परमेशी जगत माता महालक्ष्मी नमोस्तुते !!
श्वेताम्भर धरे देवी नानालन्कार भुषिते !
जगत स्थिते जगंमाते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रं य: पठेत भक्तिमान्नर:!
सर्वसिद्धि मवाप्नोती राज्यम् प्राप्नोति सर्वदा !!
एक कालम पठेनित्यम महापापविनाशनम !
द्विकालम य: पठेनित्यम धनधान्यम समन्वित: !!
त्रिकालम य: पठेनित्यम महाशत्रुविनाषम !
महालक्ष्मी भवेनित्यम प्रसंनाम वरदाम शुभाम !!
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