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Friday, October 25, 2013

शास्त्रों की दृष्टि से भारतीय विवाहों के प्रकार



भारतीय परिप्रेक्ष्य में वैवाहिक संस्कार अपना एक विशिष्ट महत्व रखते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि विवाह ना सिर्फ संबंधित महिला और पुरुष को शारीरिक संबंधों के आधार पर एक-दूसरे से जोड़े रखता है, बल्कि उन दोनों में परस्पर भवनाओं को भी बढ़ाता है. इतना ही नहीं कानूनी और सामाजिक तौर पर विवाह एकमात्र ऐसा संबंध है जो विवाहित महिला और पुरुष का एक-दूसरे के प्रति अधिकार और कर्तव्य सुनिश्चित करता है. इसके अलावा वैवाहिक संबंध उन दोनों के परिवारों को भी एक-दूसरे के निकट ले आता है.

परंपरागत तौर पर विवाह संबंधी सभी निर्णय अभिभावकों और परिवार के बड़े स्वयं ही ले लेते हैं, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में युवक और युवती अपनी पसंद को भी अहमियत देने लगे हैं जिसके परिणामस्वरूप प्रेम-विवाह जैसी वैवाहिक रीतियों की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. भले ही आज के युवाओं की ऐसी मानसिकता परंपरावादी विचारधारा वाले लोगों को खटकती हो, जिसके लिए वे आधुनिकता को कोसते नही थकते. लेकिन समय के साथ-साथ विवाह रूपी मान्यताओं और विधाओं के स्वरूप में थोड़ा परिवर्तन अवश्य आया है. वास्तविकता यह है कि प्राचीन समय में भी युवक और युवती अपनी पसंद से विवाह कर सकते थे. इतना ही नहीं शास्त्रों में ऐसे विवाहों के लिए एक विशिष्ट स्थान भी सुनिश्चित किया गया है.

पुराणों के अनुसार हिंदू वैवाहिक संस्कारों को निम्नलिखित आठ विधाओं में विभक्त किया गया है. जिनमें से चार विधाओं (ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्श विवाह, प्रजापत्य विवाह) को नैतिक और श्रेष्ठ वहीं शेष चार (असुर विवाह, गंधर्व विवाह, राक्षस विवाह, पिशाच विवाह) को क्रमागत रूप से पूर्णत: अनैतिक और घृणित स्थान प्रदान किया गया है.

ब्रह्म विवाह: हिंदू समाज में ब्रह्म विवाह को विवाह का सबसे उत्कृष्ट और आदर्श स्वरूप माना जाता है. यह वर-वधू दोनो पक्षों की सहमति से होता है. ब्रह्म विवाह संस्कार के अनुसार युवती का पिता अपनी पुत्री के लिए एक सुयोग्य और चरित्रवान युवक की तलाश करता है. जब यह खोज पूरी हो जाती है तब वह स्वयं विवाह का प्रस्ताव लेकर युवक के परिवार वालों से मिलता है. दोनों ओर से विवाह को मंजूरी मिलने के बाद मंत्रोच्चारण के साथ युवक-युवती का विवाह संपन्न किया जाता है. कन्या का पिता कन्यादान कर अपने कर्तव्यों की पूर्ति करता है. कन्या को विदा करते समय उसके साथ तोहफे के रूप में वस्तुएं भी दी जाती हैं. वर्तमान समय में प्रचलित विवाह रीति जिसे अरेंज्ड विवाह कहा जाता है, ब्रह्म विवाह का ही नवीनतम स्वरूप माना जाता है. यह एक सर्वमान्य और सम्मानित परंपरा रही है.

देव विवाह: देव विवाह के अंतर्गत जब भी कोई व्यक्ति यज्ञ करवाता था तो वह अपनी इच्छा के अनुसार दान के रूप में अपनी पुत्री को यज्ञ करवाने वाले ऋषि को सौंप देते थे. विशेषकर राजा जब भी कोई धार्मिक अनुष्ठान करवाते थे, तो वह संकल्प के तौर पुरोहित को अपनी पुत्री देने का निर्णय कर लेते थे. ऋषि भी उनके आग्रह और इच्छा को नहीं टालते थे. वर्तमान समय में यह प्रथा पूर्णत: विलुप्त हो चुकी है.



आर्श विवाह: पुराणों के अनुसार जब भी किसी सन्यासी या ऋषि को गृहस्थी बसाने की इच्छा जागृत होती थी तो अनुमति मिलने के बाद वह अपनी पसंद की कन्या के पिता को कन्या के मोल के रूप में गाय या बैल की एक जोड़ी देकर विवाह का प्रस्ताव रखते थे. कन्या के पिता को अगर यह प्रस्ताव मंजूर होता था तो वह इसे स्वीकार कर लेते थे, अन्यथा सम्मान के साथ गाय या बैलों को लौटा दिया जाता था.

प्रजापत्य विवाह: प्रजापत्य विवाह संस्कार, ब्रह्म विवाह का एक कम विस्तृत रूप है. ब्रह्म विवाह संस्कार में पिता की ओर से सात और माता की ओर से पांच पीढ़ियों के बीच विवाह संबंध निषेध माना जाता है, लेकिन प्रजापत्य विवाह में पिता की ओर से पांच और माता की ओर से तीन पीढ़ियों में विवाह करना वर्जित था. प्रजापत्य विवाह की एक मुख्य विशेषता यह थी कि ऐसे विवाहों में कन्या की मर्जी कोई मायने नहीं रखती थी. कन्या का पिता बिना उससे पूछे किसी अभिजात्य वर्ग के युवक के साथ विवाह निर्धारित कर देता था.



असुर विवाह: ब्रह्म विवाह के विपरीत असुर विवाह में कन्या के पिता को कन्या का मोल देकर खरीद लिया जाता था. पिता अपनी पुत्री का मोल लगाता था और इच्छुक युवक उस मोल के बदले कन्या से विवाह कर लेता था.

गंधर्व विवाह: आधुनिक युग में किया जाने वाला प्रेम विवाह मुख्य रूप से गंधर्व विवाह का ही आधुनिक स्वरूप है. इसमें वर और कन्या, परिवार वालों की सहमति के बिना एक दूसरे को पति-पत्नी मान लेते थे. इसके लिए वह किसी भी प्रकार के संस्कारों या नियमों का पालन नहीं करते. प्राचीन समय में कुछ विशेष समुदायों में इस प्रथा का प्रचलन था. लेकिन इसे किसी भी रूप में आदर्श विवाह की संज्ञा नहीं दी जाती थी. प्रेम विवाह में परिस्थितियां थोड़ी भिन्न हैं. इसमें भले ही युवक और युवती परिवार की अनुमति के बिना संबंध रखते हैं लेकिन वह अपने रिश्ते को कानूनी रूप प्रदान करते हैं.



राक्षस विवाह: युवती का अपहरण कर जबरन उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए जाने को पौराणिक काल में राक्षस विवाह कहा जाता था. जब कोई राजा अपने राज्य या कबीले का सरदार अपने कबीले को किसी युद्ध में हार जाता था, तब विजेता उसकी पुत्री या पत्नी को जीत के पुरस्कार के रूप में ग्रहण करता था. उस समय यह स्वीकृत था, लेकिन इसे किसी भी रूप में आदर्श विवाह की संज्ञा नहीं दी जा सकती थी.

पिशाच विवाह: पिशाच विवाह को सभी विवाह संस्कारों में सबसे निकृष्ट स्थान दिया गया है. इसमें स्त्री की मानसिक दुर्बलता, गहन निद्रा का लाभ उठाकर पुरुष द्वारा स्त्री के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया जाता है. लेकिन उसके अधिकारों और भविष्य की रक्षा के उद्देश्य से अंतिम विकल्प के रूप में उसके साथ विवाह कर लिया जाता था, जिसे पिशाच विवाह कहा जाता था. वर्तमान समय में भी ऐसे हालात देखने को मिलते हैं जब पुरुष किसी महिला के साथ जबर्दस्ती संबंध स्थापित कर लेता है लेकिन कानून के डर से वह उसके साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखता है. अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान को बचाए रखने के लिए युवती इस प्रस्ताव को स्वीकार तो कर लेती है लेकिन यह आदर्श संबंध नहीं बन पाता.

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