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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.

Friday, September 13, 2013

भगवान से हमारा प्रेम संबंध ही अमर है


शादी-विवाह में समान गुण-धर्म की जरूरत होती है । सुखमय जीवन के लिए इन्हें नजरंदाज नहीं करना चाहिए । सुख को सीमित अर्थों में नहीं लेना चाहिए । सच्चा सुख वही है जो भगवत प्रेम से मिलता है । गृहस्थाश्रम में रहकर लोग परमात्मा की ओर उन्मुख हों । इसी से सच्चा सुख मिलेगा और मानव जीवन की सार्थकता होगी ।
भगवान से हमारा प्रेम संबंध ही अमर है संसार के साथ हमारे जो संबंध हैं, वे सब स्वार्थ पर आधारित है। माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त सभी नाती रिश्तेदार सब स्वार्थ का संसार है। केवल एकमात्र भगवान से हमारा प्रेम संबंध ही स्थाई है अमर है।
भगवान को ऐसे भक्त बहुत प्रिय लगते हैं जो जड़-चेतन सभी में उनके दर्शन करते हैं। भागवत कथा श्रवण करने, चिंतन, मनन करने व आचरण में उतारने से अद्भुत शक्ति प्रेरणा और सद् जीवन जीने का मार्ग मिलता है।
हरीचरणों में प्रेम
हरीचरणों में प्रेम होने के लिए आठ बातें सार हैं
[ १ ] जो कुछ सुख - दुःख आदि आकर प्राप्त हो उसको भगवान की आज्ञा से प्राप्त हुआ मानकर आनंद के सहित स्वीकार करना भगवान की शरण है |
[ २ ] सबको भगवान की भक्ति में लगाने की कोशिश जीवों की परम सेवा है |
[ ३ ] भगवदभक्तों का संग - यदि उनका संग नहीं मिले तो उनके भक्तों का संग भी बहुत लाभदायक है |
[ ४ ] एकांत में परमेश्वर के ध्यान करने की चेष्टा करे , यदि ध्यान नहीं लगे तो ध्यान लगाने के लिए श्रीगीताजी के ध्यानविषयक श्लोकों के अर्थ का विचार करना चाहिए |
[ ५ ] परमेश्वर के स्वरूप का चिंतन करते हुए चलते - फिरते प्रत्येक क्रिया करते समय परमेश्वर के नाम के जप का अभ्यास करें |
[ ६ ] भगवान के सिवाय और किसी चीज की भी इच्छा नहीं करनी | केवल भगवान के मिलने की उत्कट इच्छा करनी चाहिए |
[ ७ ] जिस काम से भगवान राजी होवें उस काम को करने की चेष्टा यानी हिंसा - वर्जित सदाचार |
[ ८ ] निष्कामभाव से सब जीवों की सेवा , जिस प्रकार से मनुष्यों को तथा सब जीवों को सुख पहुंचे वैसी चेष्टा | उपर्युक्त बातें काम में लाने से भगवान में बहुत ही जल्दी प्रेम हो सकता है | इनमें से एक भी बात काम में लावे तो परमात्मा मिल सकते हैं |
प्रेम में विव्हल होकर निष्कामभाव से नित्य - निरंतर भगवान का नाम - जप करने का नाम भजन है | जिस विद्या के द्वारा परमात्मा में प्रेम हो उसी का नाम सद्विद्या ( सत् -विद्या ) है | जिन शास्त्रों के द्वारा संसार से वैराग्य और परमेश्वर में प्रेम हो उसी का नाम सत्- शास्त्र है | नाम - जप आदि का अभ्यास होने से जब अंत:करण का मल नाश हो जाता है तब भगवान में प्रेम होता है | विश्वास ही सार है | बिना विश्वास के नारायण में प्रेम नहीं होता , बिना प्रेम के नारायण मिलते नहीं और नारायण के मिले बिना संसार से उद्धार होने का और कोई भी उपाय नहीं है | जहां - जहां नेत्र जाय वहाँ - वहाँ आनंदमय भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ती का चिंतन करते हुए , मन को भगवान में रखते हुए सांसारिक काम करते रहें | मनसहित भजन करने और शास्त्र का अभ्यास करने से जितना लाभ एक वर्ष में होगा उतना लाभ बिना मनके करने से १०० वर्ष में भी नहीं हो सकता |
अनन्य प्रेम प्राप्त करने के तीन साधन हैं : -
[ १ ] प्रेमी भगवान को अपने चित्त से कभी बिसारे नहीं |
[ २ ] प्रेमी के मनके अनुकूल चलना , यदि प्रेमी के मन की बात नहीं जाने तो उनके आदेश के अनुकूल चलना |
[ ३ ] प्रेमी को सर्वस्व अर्पण कर देना |
भगवान में बहुत जल्दी प्रेम होने के उपाय : -
[ १ ] निष्कामभाव से भगवान के नाम का निरंतर जप और स्वरूप का ध्यान करने की चेष्टा करना |
[ २ ] भगवान के गुण , प्रभाव और मर्म [ तत्त्व ] की कथा भगवान के भक्तों द्वारा सुनना , पढ़ना और कथन करना |
[३ ] भगवान की आज्ञानुसार निष्कामभाव से सब कर्म भगवान के लिए ही करना | [ ४ ] मनमें भगवान के मिलने की तीव्र इच्छा रखना और उनके नाम - गुणों को सुनकर आनंदमग्न होना |
एकमात्र परमेश्वर ही प्रेम करने लायक है | भगवान से कुछ भी मांगना उचित नहीं , प्रेम केवल प्रेम के लिए ही करना चाहिए | पांच बातें अमूल्य हैं - प्रेम , ज्ञान , श्रद्धा , उपरामता और वैराग्य - ये रूपयों से नहीं मिलती हैं | इनमें प्रेम ही प्रधान है | प्रेमवाले को साकार - निराकार स्वरूप की प्राप्ति होती है | ज्ञानवाले को सच्चिदानन्दघन की प्राप्ति होती है | भगवदभक्ति ही प्रेम का स्वरूप है | भगवान में जो अत्यंत अनुराग है उसका नाम प्रेम है और उस भगवत-भक्ति के जो प्रकार हैं , उनके पालन से भगवान में अनन्य प्रेम हो जाता है |
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इति ||


शादी-विवाह एक ऐसा बंधन है जिसमें बंधने के लिए बहुत सूझ-बूझ की आवश्यकता होती है । चाहे जिससे विवाह नहीं किया जा सकता । जो लोग जल्दीबाजी में कोई ऐसा-वैसा कदम उठा लेते हैं । आगे चलकर उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है । उनके बच्चों को भी इससे समस्याओं का सामना करना पड़ता है  विवाह रुपी बंधन में बंधने के लिए समान गुण-धर्म पर जोर देना बहुत आवश्यक है । इसके बिना सुसंगत जीवन जीना सरल नहीं होता ।

    संत और सदग्रन्थ कहते हैं कि विवाह में कम से कम तीन चीजें जरूर अच्छी और अनुकूल होनी चाहिए: १. घर, २. वर, और ३. कुल  लड़की के अनुरूप लड़का और लड़के के अनुरूप लड़की का होना आवश्यक है- जौ घरु वरु कुलु होय अनूपा । करिअ विवाहु सुता अनुरूपा । यदि लड़की पढ़ी-लिखी है तो लड़का भी ऐसा ही होना चाहिए । लड़की सुंदर हो तो लड़का भी सुंदर होना ही चाहिए । इत्यादि । कहने का तात्पर्य यह है कि शादी-विवाह में विपरीत गुण-धर्म को जहाँ तक हो सके त्यागना चाहिए ।

    कई लोग किसी स्वार्थ अथवा लालच बश समान गुण-धर्म की अनिवार्यता को नजरंदाज कर देते हैं । कई लोग तो कन्या और वर की आयु का भी मेल नहीं बिठाते । ऐसा देखा जाता है कि देश समाज में कई विवाह ऐसे होते हैं जिन्हें बेमेल विवाह की संज्ञा दी जा सकती है ।

    जैसा कि कई युवा समझते हैं, शादी-विवाह का एक उद्देश्य नहीं होता । यह बहु उद्देशीय संस्कार है । व्यवस्था है । जिसके माध्यम से परिवारिक-सामाजिक संतुलन को बनाये रखकर गृहस्थाश्रम में रहते हुए परमात्मा की प्राप्ति का साधन करना होता है ।

   विवाह का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि साथ में रहें, खायें-पियें और बच्चे पैदा करें । यह गुण तो जानवरों में भी पाया जाता है । वे भी इतना कर लेते हैं । लेकिन मानव को इसके अलावा कुछ और करना होता है । पत्नी का धर्म है कि वह पति को पतन से बचाए । उसे भगवान श्रीराम के चरणों में प्रीति करने की प्रेरणा दे । और सहभागी बने । सभी ने सुना होगा कि जब कोई लड़का पढ़ाई-लिखाई और घर के काम-काज में कोई रूचि नहीं लेता तो कई बार बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि इसकी शादी कर दो । ठीक हो जायेगा । इसका तात्पर्य यही रहता है कि पत्नी इसे पतन से बचा लेगी और यह रास्ते पर आ जायेगा । ठीक इसी तरह पति का भी यही धर्म है कि वह पत्नी को भगवान के चरणों में प्रीति कराने में सहभागी बने । यदि दोनों के समान गुण-धर्म नहीं होंगे तो इसमें भी बाधा आएगी । इसलिए आस्तिक के साथ नास्तिक का विवाह भी बेमेल विवाह ही होता है ।

    जिस समाज में कन्या पली-बढ़ी है, जिसके संस्कार उसे मिले हैं, उसमें ही वह एक सुसंगत वैवाहिक जीवन जी सकती है । जीना भी तो कई तरह होता है । यह सब वर के लिए भी लागू होता है । सही सामंजस्य बिठाकर जीना है तो समान गुण-धर्म को नजरंदाज नहीं करना चाहिए ।

     हमने यहाँ जो कहा वह गणितीय है । गणित-विज्ञान भी इस तथ्य का समर्थन करते हैं । हम संक्षेप में गणित के माध्यम से इसे समझाने का प्रयास कर रहे हैं । एक छोटा उदाहरण दे रहे हैं जिससे लोग आसानी से समझ सकें । इसके लिए स्कूल स्तर की गणित की जानकारी जरूरी है ।

   बीजगणित में सजातीय और बिजातीय पद की अवधारणा है । विवाह का मतलब जोड़ होता ही है । गणित में दो समान गुण-धर्म वाले पद जैसा जुड़ते हैं । वैसा विपरीत गुण-धर्म वाले पद नहीं जुड़ते । जुड़ तो जाएंगे, लेकिन जुड़ने के बाद भी उनमें अलगाव बना रहता है । उदाहरण के लिए-
     और बिजातीय है । इनका जोड़ होगा- २ + अ. दोनों जुड़ तो गए फिर भी उनमें अलगाव है । वहीं दूसरी ओर और सजातीय यानी समान गुण-धर्म वाले हैं तो इनका जोड़ होता है- २ + ३ =५ . इस स्थिति में दोनों ऐसे जुड़े कि एक हो गए ।
 


 
इसी तरह और जुडकर २अ हो जाता है । लेकिन और जुडकर अ + ब यानी अलग बने रहते हैं । यह एक छोटा सा उदाहरण है । उच्च गणित में ऐसे कई सिद्धांत हैं । इसी तरह विज्ञान की अन्य शाखाओं में भी कई सिद्धांत मिलते हैं । जैसे भौतिकी में यदि किन्हीं दो भौतिक राशियों को जोड़ना है तो उनकी बिमा समान होनी चाहिए । यदि बिमा समान नहीं है तो ऐसे में दोनों के जोड़ को अनबैलिड माना जाता है ।

    इस प्रकार गणित-विज्ञान भी जोड़ में समान गुण-धर्म पर बल देते हैं । सनातन धर्म भी यही बताता है कि शादी-विवाह में समान गुण-धर्म की जरूरत होती है । सुखमय जीवन के लिए इन्हें नजरंदाज नहीं करना चाहिए । सुख को सीमित अर्थों में नहीं लेना चाहिए । सच्चा सुख वही है जो भगवत प्रेम से मिलता है । गृहस्थाश्रम में रहकर लोग परमात्मा की ओर उन्मुख हों । इसी से सच्चा सुख मिलेगा और मानव जीवन की सार्थकता होगी ।

1 comment:

  1. भगवान से हमारा प्रेम संबंध ही अमर है
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