नारायण कवच
श्री विष्णवे नमः (तीन बार)
नमो नारायणाय (तीन बार)
नमो भगवते वासुदेवाय (तीन बार)
आत्मानं परमं ध्यायेद् ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम्।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रामुदाहरेत्।।1।।
हरिर्विघ्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपाः पतगेन्द्रपृष्ठे।
दरारिचर्मासिगदेषुचाप-पाशान् दधानोऽष्ट गुणोऽष्टबाहुः।।2।।
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोर्गणेभ्यो वरुणस्य पाशात्।
स्थलेषु मायावटुवामनोऽव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः।।3।।
दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयूथपारिः।
विमुच्×ातो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुन्र्यपतंच गर्भाः।।4।।
रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोऽव्याद् भरताग्रजोऽस्मान्।।5।।
मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरच सात्।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ।।6।।
सनत्कुमारोऽवतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।
देवर्षिवर्यः पुरुषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात्।।7।।
धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा।
यज्ञच लोकापवादाज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ।।8।।
द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात्।
कल्किः कलेः कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरुकृतावतारः ।।9।।
मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसग्वमात्तवेणुः।
नारायणः प्रान उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुरीन्द्रपाणिः।।10।।
देवोऽपराने मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रो निशीथ एकोऽवतु पानाभः।।11।।
श्रीवत्सधामापररात्रा ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः।
दामोदरोऽव्यादनुसंध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः।।12।।
चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम्।
दंदग्धि दंदग्ध्यरिसैन्यमाशु कक्षं यथा वातसखो हुताशः ।।13।।
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिग्े निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांचट्टर्णय चूर्णयारीन्।।14।।
त्वं यातुधान प्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ।।15।।
त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि।
चक्षूंषि चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम्।।16।।
यन्नो भयं ग्रहेभ्योऽभूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा।।17।।
सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः।।18।।
गरुडो भगवान् स्तोत्रास्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः।।19।।
सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धीन्द्रियमनःप्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः।।20।।
यथा हि भगवानेव वस्तुतः सदसच्च यत्।
सत्येनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपद्रवाः।।21।।
यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।
भूषणायुधलिगख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया।।22।।
तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्रा सर्वगः।।23।।
विदिक्षु दिक्षूध्र्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन स्वतेजसा ग्रस्तसमस्ततेजाः।।24।।
1. - मनुष्य समग्र ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण इष्टदेव भगवान्का ध्यान करें और अपने को भी तद्रूप ही चिन्तन करे। तत्पचात् विद्या, तेज और तपःस्वरूप इस कवच का पाठ करे।।1।।
भगवान् श्रीहरि गरुड़जी की पीठ पर अपने चरण-कमल रक्खे हुए हैं। अणिमादि आठों सिद्धियों उनकी सेवा कर रही हैं। आठ हाथों में शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष और पाश (फंदा)
2. - धारण किये हुए हैं। वे ही कारस्वरूप प्रभु सब प्रकार से सब ओर से मेरी रक्षा करें। मत्स्यमूर्ति भगवान जल के भीतर जल जन्तुओं से और वरुण के पाश से मेरी रक्षा करें.
3. - माया से ब्रह्मचारी का रूप धारण करनेवाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूप श्रीत्रिविक्रम भगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें.
4. -जिनके घोर अट्टहास करने पर सब दिशाएँ गूँज उठी थीं और गर्भवती दैत्य-पत्नियों के गर्भ गिर गये थे, वे दैत्ययूथपतियों के शत्रु भगवान् नृसिंह किले, जंगल, रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें.
5. - अपनी दाढ़ो पर पृथ्वी को उठा लेने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में, परशुरामजी पर्वतों के शिखरों पर और लक्ष्मणजी के सहित भरत के बड़े भाई भगवान् रामचन्द्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें.
6. - भगवान् नारायण मारण-मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें। ऋषिश्रेष्ठ गर्व से नर नारायण योगेश्वर भगवान् दत्तात्रोय योग के विघ्नों से और त्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धनोंसे मेरी रक्षा करें.
7. - परमर्षि सनत्कुमार कामदेव से, हयग्रीव भगवान् मार्ग में चलते समय देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने के अपराध से, देवर्षि नारद सेवापराधों से और भगवान् कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें
8. - भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्य से, जितेन्द्रिय भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वों से, यज्ञ भगवान् लोकापवाद से बलराम जी मनुष्यकृत कष्टों से और श्रीशेष जी क्रोधवशनामक सर्पों के गण से मेरी रक्षा करें.
9.- भगवान श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास जी अज्ञान से तथा बुद्धदेव पाखण्डियों से और प्रमाद से मेरी रक्षा करें। धर्म-रक्षा के लिये महान अवतार धारण करने वाले भगवान कल्कि पाप बहुल कलिकाल के दोषो से मेरी रक्षा करें.
10.- प्रातःकाल भगवान केशव अपनी गदा लेकर कुछ दिन चढ़ जाने पर भगवान गोविन्द अपनी बाँसुरी लेकर दोपहर के पहले भगवान नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहर को भगवान विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें।.
11.- तीसरे पहर में भगवान मधुसूदन अपना प्रचण्ड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें। सांयकाल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्त के बाद हृषीकेश, अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्धरात्रि के समय अकेले भगवान पानाभ मेरी रक्षा करें.
12.- रात्रि के पिछले पहर में श्रीवत्सला×छन श्रीहरि, उषा काल में खड्गधारी भगवान जर्नादन, सूर्योदय से पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण संध्याओं में कालमूर्ति भगवान विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें।
13.- सुदर्शन ! आपका आकार चक्र (रथ के पहिये) की तरह है। आपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है। आप भगवान की प्रेरणा से सब ओर घूमते रहते हैं। जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास फूस को जला डालती है, वैसे ही आप हमारी शत्रु सेना को शीघ्र से शीघ्र जला दीजिये, जला दीजिये.
14.- कौमोदकी गदा ! आपसे छूटने वाली चिंगारियो का स्पर्श वज्र के समान असह्य है। आप भगवान अजित की प्रिया है और मैं उनका सेवक हूँ। इसलिये आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और प्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये, तथा मेरे शत्रुओं को चूर-चूर कर दीजिये.
15.- शंख श्रेष्ठ ! आप भगवान श्री कृष्ण के फूँकने से भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका पिशाच तथा ब्रह्म राक्षस आदि भयावने प्राणियों को यहाँ से झटपट भगा दीजिये.
16.- भगवान की श्रेष्ठ तलवार-आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है। आप भगवान की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-छिन्न कर दीजिये। भगवान की प्यारी ढाल-आपमें सैंकडों चन्द्राकार मण्डल है-आप पाप दृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आँखें बंद कर दीजिये और उन्हें सदा के लिये अन्धा बना दीजिये.
17-18 .- सूर्य आदि ग्रह, धूमकेतु (पुच्छल तारे) आदि केतु, दुष्ट मनुष्य, सर्पादि रेंगने वाले जन्तु, दाढ़ो वाले हिंसक पशु, भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियो से हमें जो-जो भय हो और जो-जो हमारे मंगल के विरोधी हों-वे सभी भगवान के नाम, रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जाएं।
19.- बृहद् रथन्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान गरुड़ और विष्वक्सेन जी अपने नामोच्चर के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचायें.
20.- श्री हरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि, इन्द्रिय मन और प्राणों को सब प्रकार की आपत्तियों से बचायें.
21.- जितना भी कार्य अथवा कारणरूप जगत् है, वह वास्तव में भगवान ही है-इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जायें.
22-23.- जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान का स्वरूप समस्त विकल्पों-भेदों से रहित है, फिर भी वे अपनी माया-शक्ति के द्वारा भूषण, आयुध और रूप नामक शक्तियों को धारण करते हैं। यह बात निश्चित रूप से सत्य है। इस कारण सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान श्री हरि सदा-सर्वत्रा सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें।।
24.- जो अपने भयंकर अट्टाहस से सब लोगों के भय को भगा देते हैं और अपने तेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं, वे भगवान नृसिंह दिशा-विदिशा में, नीचे ऊपर, बाहर-भीतर - सब ओर हमारी रक्षा करें.
नारायणो नर इति प्रथितो द्विमूर्ति-
स्तेपे भवा×छिवकरं हि तपोतिऽतीव्रम्।
श्रीकृष्ण कृष्ण ‘तपतां वर’ कृष्ण कृष्ण
कृष्ण कृष्ण शरणं भव कृष्ण कृष्ण।।
श्रीकृष्ण ! आपने नारायण और नर-इन दो रूपों में प्रख्यात होकर अत्यन्त तीव्र एवं कल्याणकारी तप का अनुष्ठान किया। तपस्वीजनों में श्रेष्ठ कृष्ण ! कृष्ण! श्रीकृष्ण! आप ही मेरे लिये शरण (आश्रयदाता) हो जाएँ। कृष्ण! आपको मेरा प्रणाम है।
इस नारायण कवच को धारण करने वाला पुरूष जिसको भी अपने नेत्रों से देख लेता है अथवा पैर से छू देता है, तत्काल समस्त भयों से से मुक्त हो जाता है जो इस वैष्णवी विद्या को धारण कर लेता है, उसे राजा, डाकू, प्रेत, पिशाच आदि और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी किसी प्रकार का भय नहीं होता.
जो पुरूष इस नारायण कवच को समय पर सुनता है और जो आदर पूर्वक इसे धारण करता है, उसके सामने सभी प्राणी आदर से झुक जाते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है
श्री विष्णवे नमः (तीन बार)
नमो नारायणाय (तीन बार)
नमो भगवते वासुदेवाय (तीन बार)
आत्मानं परमं ध्यायेद् ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम्।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रामुदाहरेत्।।1।।
हरिर्विघ्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपाः पतगेन्द्रपृष्ठे।
दरारिचर्मासिगदेषुचाप-पाशान् दधानोऽष्ट गुणोऽष्टबाहुः।।2।।
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोर्गणेभ्यो वरुणस्य पाशात्।
स्थलेषु मायावटुवामनोऽव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः।।3।।
दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयूथपारिः।
विमुच्×ातो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुन्र्यपतंच गर्भाः।।4।।
रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोऽव्याद् भरताग्रजोऽस्मान्।।5।।
मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरच सात्।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ।।6।।
सनत्कुमारोऽवतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।
देवर्षिवर्यः पुरुषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात्।।7।।
धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा।
यज्ञच लोकापवादाज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ।।8।।
द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात्।
कल्किः कलेः कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरुकृतावतारः ।।9।।
मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसग्वमात्तवेणुः।
नारायणः प्रान उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुरीन्द्रपाणिः।।10।।
देवोऽपराने मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रो निशीथ एकोऽवतु पानाभः।।11।।
श्रीवत्सधामापररात्रा ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः।
दामोदरोऽव्यादनुसंध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः।।12।।
चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम्।
दंदग्धि दंदग्ध्यरिसैन्यमाशु कक्षं यथा वातसखो हुताशः ।।13।।
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिग्े निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांचट्टर्णय चूर्णयारीन्।।14।।
त्वं यातुधान प्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ।।15।।
त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि।
चक्षूंषि चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम्।।16।।
यन्नो भयं ग्रहेभ्योऽभूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा।।17।।
सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः।।18।।
गरुडो भगवान् स्तोत्रास्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः।।19।।
सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धीन्द्रियमनःप्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः।।20।।
यथा हि भगवानेव वस्तुतः सदसच्च यत्।
सत्येनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपद्रवाः।।21।।
यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।
भूषणायुधलिगख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया।।22।।
तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्रा सर्वगः।।23।।
विदिक्षु दिक्षूध्र्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन स्वतेजसा ग्रस्तसमस्ततेजाः।।24।।
1. - मनुष्य समग्र ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण इष्टदेव भगवान्का ध्यान करें और अपने को भी तद्रूप ही चिन्तन करे। तत्पचात् विद्या, तेज और तपःस्वरूप इस कवच का पाठ करे।।1।।
भगवान् श्रीहरि गरुड़जी की पीठ पर अपने चरण-कमल रक्खे हुए हैं। अणिमादि आठों सिद्धियों उनकी सेवा कर रही हैं। आठ हाथों में शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष और पाश (फंदा)
2. - धारण किये हुए हैं। वे ही कारस्वरूप प्रभु सब प्रकार से सब ओर से मेरी रक्षा करें। मत्स्यमूर्ति भगवान जल के भीतर जल जन्तुओं से और वरुण के पाश से मेरी रक्षा करें.
3. - माया से ब्रह्मचारी का रूप धारण करनेवाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूप श्रीत्रिविक्रम भगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें.
4. -जिनके घोर अट्टहास करने पर सब दिशाएँ गूँज उठी थीं और गर्भवती दैत्य-पत्नियों के गर्भ गिर गये थे, वे दैत्ययूथपतियों के शत्रु भगवान् नृसिंह किले, जंगल, रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें.
5. - अपनी दाढ़ो पर पृथ्वी को उठा लेने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में, परशुरामजी पर्वतों के शिखरों पर और लक्ष्मणजी के सहित भरत के बड़े भाई भगवान् रामचन्द्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें.
6. - भगवान् नारायण मारण-मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें। ऋषिश्रेष्ठ गर्व से नर नारायण योगेश्वर भगवान् दत्तात्रोय योग के विघ्नों से और त्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धनोंसे मेरी रक्षा करें.
7. - परमर्षि सनत्कुमार कामदेव से, हयग्रीव भगवान् मार्ग में चलते समय देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने के अपराध से, देवर्षि नारद सेवापराधों से और भगवान् कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें
8. - भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्य से, जितेन्द्रिय भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वों से, यज्ञ भगवान् लोकापवाद से बलराम जी मनुष्यकृत कष्टों से और श्रीशेष जी क्रोधवशनामक सर्पों के गण से मेरी रक्षा करें.
9.- भगवान श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास जी अज्ञान से तथा बुद्धदेव पाखण्डियों से और प्रमाद से मेरी रक्षा करें। धर्म-रक्षा के लिये महान अवतार धारण करने वाले भगवान कल्कि पाप बहुल कलिकाल के दोषो से मेरी रक्षा करें.
10.- प्रातःकाल भगवान केशव अपनी गदा लेकर कुछ दिन चढ़ जाने पर भगवान गोविन्द अपनी बाँसुरी लेकर दोपहर के पहले भगवान नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहर को भगवान विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें।.
11.- तीसरे पहर में भगवान मधुसूदन अपना प्रचण्ड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें। सांयकाल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्त के बाद हृषीकेश, अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्धरात्रि के समय अकेले भगवान पानाभ मेरी रक्षा करें.
12.- रात्रि के पिछले पहर में श्रीवत्सला×छन श्रीहरि, उषा काल में खड्गधारी भगवान जर्नादन, सूर्योदय से पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण संध्याओं में कालमूर्ति भगवान विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें।
13.- सुदर्शन ! आपका आकार चक्र (रथ के पहिये) की तरह है। आपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है। आप भगवान की प्रेरणा से सब ओर घूमते रहते हैं। जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास फूस को जला डालती है, वैसे ही आप हमारी शत्रु सेना को शीघ्र से शीघ्र जला दीजिये, जला दीजिये.
14.- कौमोदकी गदा ! आपसे छूटने वाली चिंगारियो का स्पर्श वज्र के समान असह्य है। आप भगवान अजित की प्रिया है और मैं उनका सेवक हूँ। इसलिये आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और प्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये, तथा मेरे शत्रुओं को चूर-चूर कर दीजिये.
15.- शंख श्रेष्ठ ! आप भगवान श्री कृष्ण के फूँकने से भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका पिशाच तथा ब्रह्म राक्षस आदि भयावने प्राणियों को यहाँ से झटपट भगा दीजिये.
16.- भगवान की श्रेष्ठ तलवार-आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है। आप भगवान की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-छिन्न कर दीजिये। भगवान की प्यारी ढाल-आपमें सैंकडों चन्द्राकार मण्डल है-आप पाप दृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आँखें बंद कर दीजिये और उन्हें सदा के लिये अन्धा बना दीजिये.
17-18 .- सूर्य आदि ग्रह, धूमकेतु (पुच्छल तारे) आदि केतु, दुष्ट मनुष्य, सर्पादि रेंगने वाले जन्तु, दाढ़ो वाले हिंसक पशु, भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियो से हमें जो-जो भय हो और जो-जो हमारे मंगल के विरोधी हों-वे सभी भगवान के नाम, रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जाएं।
19.- बृहद् रथन्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान गरुड़ और विष्वक्सेन जी अपने नामोच्चर के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचायें.
20.- श्री हरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि, इन्द्रिय मन और प्राणों को सब प्रकार की आपत्तियों से बचायें.
21.- जितना भी कार्य अथवा कारणरूप जगत् है, वह वास्तव में भगवान ही है-इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जायें.
22-23.- जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान का स्वरूप समस्त विकल्पों-भेदों से रहित है, फिर भी वे अपनी माया-शक्ति के द्वारा भूषण, आयुध और रूप नामक शक्तियों को धारण करते हैं। यह बात निश्चित रूप से सत्य है। इस कारण सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान श्री हरि सदा-सर्वत्रा सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें।।
24.- जो अपने भयंकर अट्टाहस से सब लोगों के भय को भगा देते हैं और अपने तेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं, वे भगवान नृसिंह दिशा-विदिशा में, नीचे ऊपर, बाहर-भीतर - सब ओर हमारी रक्षा करें.
नारायणो नर इति प्रथितो द्विमूर्ति-
स्तेपे भवा×छिवकरं हि तपोतिऽतीव्रम्।
श्रीकृष्ण कृष्ण ‘तपतां वर’ कृष्ण कृष्ण
कृष्ण कृष्ण शरणं भव कृष्ण कृष्ण।।
श्रीकृष्ण ! आपने नारायण और नर-इन दो रूपों में प्रख्यात होकर अत्यन्त तीव्र एवं कल्याणकारी तप का अनुष्ठान किया। तपस्वीजनों में श्रेष्ठ कृष्ण ! कृष्ण! श्रीकृष्ण! आप ही मेरे लिये शरण (आश्रयदाता) हो जाएँ। कृष्ण! आपको मेरा प्रणाम है।
इस नारायण कवच को धारण करने वाला पुरूष जिसको भी अपने नेत्रों से देख लेता है अथवा पैर से छू देता है, तत्काल समस्त भयों से से मुक्त हो जाता है जो इस वैष्णवी विद्या को धारण कर लेता है, उसे राजा, डाकू, प्रेत, पिशाच आदि और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी किसी प्रकार का भय नहीं होता.
जो पुरूष इस नारायण कवच को समय पर सुनता है और जो आदर पूर्वक इसे धारण करता है, उसके सामने सभी प्राणी आदर से झुक जाते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है
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