श्रीकृष्णाश्रय
सर्वमार्गेषु नष्टेषु कलौ च खल धर्मिणि
पाष्ण्डप्रचुरेलोके कृष्ण एव गतिर्मम ॥१॥
अर्थ- हे प्रभु ! कलियुग में धर्म के सभी रास्ते बंद हो गए है और
दुष्ट लोग धर्माधिकारी बन गए है संसार में पाखंड व्याप्त इसलिए केवल आप भगवान
श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हो.
म्लेच्छाक्रान्तेषुदेशेषु पापैकनिलयेषुचः
सत्पीडा व्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥२ ॥
अर्थ - हे प्रभु ! देश में दुष्ट लोगो का भय व्याप्त है और सभी
लोग पाप कर्मो में लिप्त है संसार में संत लोग अत्यंत पीड़ित है इसलिए केवल आप
इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हो.
गंगादितीर्थ वर्येषु दुष्टैरेवा वृतेस्विह
तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥३॥
अर्थ- हे प्रभु ! गंगा आदि प्रमुख नदियों पर स्थित तीर्थो का भी
दुष्ट प्रवृति के लोगो ने अतिक्रमण कर लिया है और सभी देवस्थान लुप्त होते जा रहे
है इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हो.
अहंकार विमुढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु
लाभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥४॥
अर्थ- हे प्रभु ! अहंकार से ग्रसित होकर संतजन भी पाप कर्म का
अनुसरण कर रहे है और लोभ के वश में होकर ही ईश्वर की पूजा करते है इसलिए केवल आप
भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हो.
अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु
तिरूहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥५॥
अर्थ- हे प्रभु ! वास्तविक ज्ञान लुप्त हो गया है योग में स्थित
व्यक्ति भी वैदिक मंत्रो का ठीक प्रकार से उच्चारण नहीं करते है और व्रत नियमों का
उचित प्रकार से पालन भी नहीं करते है वेदों का सही अर्थ लुप्त होता जा रहा है, इसलिए केवल आप भगवान
श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हो .
नानावाद विनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु
पाषण्डेकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥६॥
अर्थ- हे प्रभु ! अनेको प्रकार की विधियों के कारण सभी प्रकार के
व्रत आदि उचित कर्म नष्ट हो रहे है पाखंड ता पूर्वक कर्मो का ही आचरण किया जा रहा
है इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हो.
अजामिलादिदोषाणां नाशको नुभवे स्थितः
ज्ञापिताखिल माहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम ॥७॥
अर्थ- हे प्रभु ! आपका नाम अजामिल आदि जैसे दुष्ट व्यक्तियो के
दोषों का नाश करने वाला है ऐसा अनुभवी संतो द्वारा गाया गया है अब मै आपके सम्पूर्ण
महात्म्य को जान गया हूँ ,इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हो.
प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मातकृष्ण एव गतिर्मम ॥८॥
अर्थ- हे प्रभु ! समस्त देवतागण भी प्रकृति के अधीन है इस विराट
जगत का सुख भी सीमित ही है केवल आप ही समस्त कष्टों को हरने वाले है और पूर्ण आनंद
प्रदान करने वाले हो इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हो.
विवेक धैर्य भक्त्यादि रहितस्य विशेषतः
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम ॥९॥
अर्थ- हे प्रभु ! मुझमे सत्य को जानने कीसामर्थ्य नहीं है धैर्य
धारण करने की शक्ति नहीं है आप की भक्ति आदि से रहित हूँ और विशेष रूप से पाप में
आसक्त मन वाले मुझ दीनहीन के लिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हो.
सर्व सामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्हकृत
शरणस्थ्समुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम ॥१०॥
अर्थ- हे प्रभु ! आप ही सभी प्रकार से सामर्थ्यवान हो आप ही सभी
प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हो और आप ही शरण में आये हुए जीवो का
उद्धार करने वाले है इसलिए मै भगान श्रीकृष्ण की वंदना करता हूँ.
कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत कृष्ण्सन्निधौ
तस्याश्रयो भवेत कृष्ण इति श्री वल्लभोब्रवीत ॥११॥
अर्थ – भगवान श्रीकृष्ण के आश्रय में रहकर और उनकी मूर्ति के सामने
जो इस स्त्रोत का पाठ करता है उसके आश्रय श्रीकृष्ण हो जाते है ऐसा श्री
वल्लभाचार्य जी के द्वारा कहा गया है.
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