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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.

Thursday, March 7, 2013

Ram Charit Manas Musical (Avdhi)


जय राम रमारमणं
जय राम रमारमणं समनं | भव ताप भयाकुल पाहि जनं ||
अवधेस सुरेस रमेस विभो
| सरनागत मागत पाहि प्रभो ||||
दस सीस बिनासन बीस भुजा | कृत दूरी महा माहि भूरी रुजा |
रजनीचर बृंद पतंग रहे
| सर पावक तेज प्रचंड दहे ||||
महि मंडल मंडन चारूतरं | धृत सायक चाप निषंग बरं |
मद मोह महा ममता रजनी
| तम पुंज दिवाकर तेज अनी ||||
मनजात किरात निपात किए | मृग लोग कुभोग सरेन हिए |
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे
| विषया बन पाँवर भूली परे ||||
बाहु रोग बियोगन्हि लोग हए |भवदंध्री निरादर के फल ए |
भव सिंधु अगाध परे नर ते
| पद पंकज प्रेम न जे करते ||||
अति दीन मलीन दुखी नितहीँ | जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं |
अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें
| प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ||||
नहीं राग न लोभ न मान मदा | तिन्ह कें सम वैभव वा विपदा |
एहि ते तव सेवक होत मुदा
| मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ||||
करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ |पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ |
सम मानी निरादर आदरही
| सब संत सुखी बिचरंति महि ||||
मुनि मानस पंकज भृंग भजे | रघुवीर महा रनधीर अजे |
तव नाम जपामि नमामि हरी
| भव रोग महागद मान अरी ||||
गुन सील कृपा परमायतनं | प्रनमामि निरंतर श्रीरमणं |
रघुनंदन निकंदय द्वन्दधनं
| महि पाल बिलोकय दीन जनं ||१०||
दोहा:
बार बार बर मांगऊ हारिशी देहु श्रीरंग |
पदसरोज अनपायनी भागती सदा सतसंग
||
बरनी उमापति राम गुन हरषि गए कैलास
|
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास
||

1 comment:

  1. Thank you for sharing the informative blog. It is indeed wonderful to read and useful. For know more about us, please visit: sunderkand in english.

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