सागर सी फैली रातें और ये पहाड़ जैसे दिन
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन ।
सदियों पहले कुछ सपने
दर्पण जैसे टूटे थे
ज्यों डाली से पत्ता टूटे
तुमसे ऐसे छूटे थे
पलकें तक नहीं झुकाईं
इस कदर डरे बैठे हैं
उस दिन से ही आंखों में
हम रेत भरे बैठे हैं
हर रात मुझे डसती है बन कर के काली नागिन ।
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन ।।
निर्धन से कोमल मन पर
यादों की चढ़ी उधारी
जैसे इक जर्जर तन को
सांसें लगती हैं भारी
रिश्तों का बोझा लादे
हम नगर-नगर भटके हैं
हम बिना पाप ईसा से
क्यूँ सूली पर लटके हैं
हर पल लगता है जैसे घावों में धंसी हुई पिन ।
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन ।।
है बहुत शोरगुल भीतर
बाहर सब सन्नाटा है
स्मृतियों के गालों पर
पीड़ाओं का चाटा है
सिन्दूर रहा हाथों में
हम मांग नहीं भर पाये
जैसे हो पूरनमासी
और चांद न छत पर आये
थक कर सो गईं उँगलियाँ बुझते तारों को गिन-गिन ।
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन ।।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए
वो चाहत का मौसम
वो खुशबू के साए
दिये जब मुहब्बत
के थे जगमगाए
वो लम्हे जो हमने थे संग में बिताए
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
वो परियों के किस्से
सितारों की बातें
वो ज़ुल्फ़ों के साए में
कटती थीं रातें
वो नज़रों के पहरे
वो बाहों के घेरे
वो छत पे टहलना
सवेरे-सवेरे
वो कपड़े जो बारिश में हमने सुखाए ।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
वो हर बात पर
रूठना फिर मनाना
वो बागों में जाकर
तितलियाँ उड़ाना
वो गालों की लाली
वो आंखों की शबनम
वो ख़्वाबों के बादल
हवाओं की सरगम
हर आहट पे लगता था जैसे तुम आए ।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
वो मंदिर की देहरी
पे सर का झुकाना
वो दरगाह जा करके
चादर चढ़ाना
फ़क़ीरों को पैसे
वे चिड़ियों को दाना
वे हर चीज तुमको
खिलाकर के खाना
दिये वो जो गंगा में हमने बहाए ।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
जुबाँ पे था सबकी
हमारा फसाना
मुहब्बत का दुश्मन
था सारा ज़माना
न माना, न समझा
ये दिल आशिकाना
मगर गा न पाए
वफा का तराना
वो दिन जब कि अपने हुए थे पराए ।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
प्यार के गीत मेरे मीत, मुझे गाने दो
दिलों में भर सकूँ संगीत, मुझे गाने दो ।
एक मुद्दत से तेरी चाह लिये बैठा हूँ
और हसरत भरी निगाह लिये बैठा हूँ
अपनी पलकों पे कोई ख्वाब तो सजाने दो ।
दिलों में भर सकूँ संगीत, मुझे गाने दो ।।
ख़ुशबुएँ लेके हवा दूर तलक जाती है
और महबूब के आने की खबर लाती है
ऐसे मौसम कोई गीत गुनगुनाने दो ।
दिलों में भर सकूँ संगीत, मुझे गाने दो ।।
आज फिर से तेरी यादों का सिलसिला आया
तेरे आने से बहारों का क़ाफ़िला आया
आज की शाम मेरे घर को महक जाने जाने दो ।
दिलों में भर सकूँ संगीत, मुझे गाने दो ।।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।
हम रुके तो यूँ लगा राहें रुकीं, लश्कर रुका ।।
आंख हमने बन्द की
सारा जमाना सो गया
हम अकेले क्या हुए
मौसम भी तन्हा हो गया
हम उठे तो यूँ लगा सुबह उठी, बिस्तर उठा ।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।।
हम अगर रोने लगे
तो घर में सावन आ गया
हम हँसे तो धूप निकली
चांद भी शरमा गया
हम खिले तो यूँ लगा कलियाँ खिलीं, बंजर खिला ।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।।
जो अँधेरों से लड़े हैं
रौशनी उनको मिली
दूर थीं कांटों से जो
कलियाँ रहीं वो अनखिली
हम जगे तो यूं लगा पंछी जगे, सूरज जगा ।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।।
कब उन्हें छाया मिली जो
धूप में जलते नहीं
मंज़िलें पाते नहीं हैं
जो कदम चलते नहीं
हम चढ़े शिखरों पे तो ऐसा लगा परबत चढ़ा ।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।।
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन ।
सदियों पहले कुछ सपने
दर्पण जैसे टूटे थे
ज्यों डाली से पत्ता टूटे
तुमसे ऐसे छूटे थे
पलकें तक नहीं झुकाईं
इस कदर डरे बैठे हैं
उस दिन से ही आंखों में
हम रेत भरे बैठे हैं
हर रात मुझे डसती है बन कर के काली नागिन ।
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन ।।
निर्धन से कोमल मन पर
यादों की चढ़ी उधारी
जैसे इक जर्जर तन को
सांसें लगती हैं भारी
रिश्तों का बोझा लादे
हम नगर-नगर भटके हैं
हम बिना पाप ईसा से
क्यूँ सूली पर लटके हैं
हर पल लगता है जैसे घावों में धंसी हुई पिन ।
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन ।।
है बहुत शोरगुल भीतर
बाहर सब सन्नाटा है
स्मृतियों के गालों पर
पीड़ाओं का चाटा है
सिन्दूर रहा हाथों में
हम मांग नहीं भर पाये
जैसे हो पूरनमासी
और चांद न छत पर आये
थक कर सो गईं उँगलियाँ बुझते तारों को गिन-गिन ।
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन ।।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए
वो चाहत का मौसम
वो खुशबू के साए
दिये जब मुहब्बत
के थे जगमगाए
वो लम्हे जो हमने थे संग में बिताए
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
वो परियों के किस्से
सितारों की बातें
वो ज़ुल्फ़ों के साए में
कटती थीं रातें
वो नज़रों के पहरे
वो बाहों के घेरे
वो छत पे टहलना
सवेरे-सवेरे
वो कपड़े जो बारिश में हमने सुखाए ।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
वो हर बात पर
रूठना फिर मनाना
वो बागों में जाकर
तितलियाँ उड़ाना
वो गालों की लाली
वो आंखों की शबनम
वो ख़्वाबों के बादल
हवाओं की सरगम
हर आहट पे लगता था जैसे तुम आए ।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
वो मंदिर की देहरी
पे सर का झुकाना
वो दरगाह जा करके
चादर चढ़ाना
फ़क़ीरों को पैसे
वे चिड़ियों को दाना
वे हर चीज तुमको
खिलाकर के खाना
दिये वो जो गंगा में हमने बहाए ।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
जुबाँ पे था सबकी
हमारा फसाना
मुहब्बत का दुश्मन
था सारा ज़माना
न माना, न समझा
ये दिल आशिकाना
मगर गा न पाए
वफा का तराना
वो दिन जब कि अपने हुए थे पराए ।
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए ।।
प्यार के गीत मेरे मीत, मुझे गाने दो
दिलों में भर सकूँ संगीत, मुझे गाने दो ।
एक मुद्दत से तेरी चाह लिये बैठा हूँ
और हसरत भरी निगाह लिये बैठा हूँ
अपनी पलकों पे कोई ख्वाब तो सजाने दो ।
दिलों में भर सकूँ संगीत, मुझे गाने दो ।।
ख़ुशबुएँ लेके हवा दूर तलक जाती है
और महबूब के आने की खबर लाती है
ऐसे मौसम कोई गीत गुनगुनाने दो ।
दिलों में भर सकूँ संगीत, मुझे गाने दो ।।
आज फिर से तेरी यादों का सिलसिला आया
तेरे आने से बहारों का क़ाफ़िला आया
आज की शाम मेरे घर को महक जाने जाने दो ।
दिलों में भर सकूँ संगीत, मुझे गाने दो ।।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।
हम रुके तो यूँ लगा राहें रुकीं, लश्कर रुका ।।
आंख हमने बन्द की
सारा जमाना सो गया
हम अकेले क्या हुए
मौसम भी तन्हा हो गया
हम उठे तो यूँ लगा सुबह उठी, बिस्तर उठा ।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।।
हम अगर रोने लगे
तो घर में सावन आ गया
हम हँसे तो धूप निकली
चांद भी शरमा गया
हम खिले तो यूँ लगा कलियाँ खिलीं, बंजर खिला ।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।।
जो अँधेरों से लड़े हैं
रौशनी उनको मिली
दूर थीं कांटों से जो
कलियाँ रहीं वो अनखिली
हम जगे तो यूं लगा पंछी जगे, सूरज जगा ।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।।
कब उन्हें छाया मिली जो
धूप में जलते नहीं
मंज़िलें पाते नहीं हैं
जो कदम चलते नहीं
हम चढ़े शिखरों पे तो ऐसा लगा परबत चढ़ा ।
हम चले तो यूँ लगा धरती चला, अम्बर चला ।।
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