卐 !! ॐ नमः शिवाय !! हर हर महादेव !! 卐
हिन्दू धर्म में
सावन माह की पूर्णिमा बहुत ही शुभ व पवित्र दिन माना जाता है.सावन का महीना आते ही आसमान पर काली घटाएं धीरे-धीरे बरसने लगती हैं रिमझिम फुहारों से सारा वातावरण भीग जाता है चारों ओर
हरियाली बिखर जाती है. श्रावण मास की पूर्णिमा को श्रावणी पूर्णिमा के
रूप में मनाया जाता है. इस दिन रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता
है इसके साथ ही साथ श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता
है.
श्रावणी कर्म का
विशेष महत्त्व है इस दिनयज्ञोपवीत के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है. ब्राह्मण वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं. हिन्दू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा बहुत ही
पवित्र व शुभ दिन माना जाता है सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ
ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्व रखती है सावन माह भगवान
शिव की पूजा उपासना का महीना माना जाता है. सावन में हर दिन भगवान शिव
की विशेष पूजा करने का विधान है.
इस प्रकार की गई
पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. इस माह की पूर्णिमा तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है अत: इस दिन शिव पूजा व
जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है. श्रावण
पूर्णिमा को दक्षिण भारत में नारियली
पूर्णिमा और अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूर्णिमा , उत्तर भारत में रक्षा बंधन तथा गुजरात में पवित्रोपना के
रूप में मनाया जाता है.
श्रावण पूर्णिमा महत्व | Significance of Sawan Purnima
श्रावण पूर्णिमा
के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है अत: इस दिन पूजा उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है, श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्वपूर्ण होता है अत: इस दिन स्नान के बाद
गाय आदि को चारा खिलाना, चिंटियों, मछलियों आदि को दाना खिलाना चाहिए इस दिन गोदान का बहुत महत्व होता है.
श्रावणी पर्व के
दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का
संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दे और भोजन कराया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की
पूजा का विधान होता है.
विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि
प्राप्ति होती है. इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मीव हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए.
पुराणों के
मुताबिक गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री अमरनाथ की पवित्र छडी यात्रा का शुभारंभ होता है और यह यात्रा श्रावण पूर्णिमा को संपन्न होती है. कांवडियों द्वारा श्रावण पूर्णिमा के दिन
ही शिवलिंग पर जल चढया जाता है और उनकी कांवड़ यात्रा संपन्न होती है. इस दिन
शिव जी का पूजन होता है पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचग्वया
में डुबाकर भगवान शिव को अर्पित की जाती हैं.
सावन कजरी पूर्णिमा | Kajri Purnima
कजरी पूर्णिमा का
पर्व भी श्रावण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है यह पर्व विशेषत: मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों में मनाया जाता है. श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन से इस उत्सव
तैयारीयां आरंभ हो जाती हैं. कजरी नवमी के
दिन महिलाएँ पेड़ के पत्तों के पात्रों में मिट्टी भरकर लाती हैं जिसमें जौ बोया जाता है.
कजरी पूर्णिमा के
दिन महिलाएँ इन जौ पात्रों को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाती हैं .इस नवमी की पूजा करके स्त्रीयाँ कजरी बोती है. गीत गाती है तथा कथा कहती है.
महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु और उसके सुख की कामना
करती हैं.
रक्षाबंधन | Raksha Bandhan
रक्षाबंधन का
त्यौहार भी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं. रक्षाबंधन, राखी या रक्षासूत्र का रूप है राखी सामान्यतः
बहनें भाई को बांधती हैं इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं उनकी आरती उतारती हैं तथा इसके बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और उपहार स्वरूप उसे भेंट भी देता
है.
इसके अतिरिक्त
ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा संबंधियों को जैसे पुत्री द्वारा पिता को भी रक्षासूत्र या
राखी बांधी जाती है. इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करक नवीनयज्ञोपवीत धारण किया जाता है.
वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को
यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं.
श्रावण मास में
शिव पूजा
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र होने से मास का नाम श्रावण हुआ और वैसे तो प्रतिदिन ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। लेकिन श्रावण मास में भगवान शिव के कैलाश में आगमन के कारण व श्रावण मास भगवान शिव को प्रिय होने से की गई समस्त आराधना शीघ्र फलदाई होती है। इस वर्ष श्रावण मास 16 जुलाई से आरंभ हो रहा है।
जो भक्त पूरे महीने उपवास नहीं कर सकते वे श्रावण मास के सोमवार का व्रत कर सकते हैं। सोमवार के समान ही प्रदोष का महत्व है। इसलिए श्रावण में सोमवार व प्रदोष में भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार श्रावण में ही समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। इसलिए इस माह में शिव आराधना करने से भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है।
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र होने से मास का नाम श्रावण हुआ और वैसे तो प्रतिदिन ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। लेकिन श्रावण मास में भगवान शिव के कैलाश में आगमन के कारण व श्रावण मास भगवान शिव को प्रिय होने से की गई समस्त आराधना शीघ्र फलदाई होती है। इस वर्ष श्रावण मास 16 जुलाई से आरंभ हो रहा है।
जो भक्त पूरे महीने उपवास नहीं कर सकते वे श्रावण मास के सोमवार का व्रत कर सकते हैं। सोमवार के समान ही प्रदोष का महत्व है। इसलिए श्रावण में सोमवार व प्रदोष में भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार श्रावण में ही समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। इसलिए इस माह में शिव आराधना करने से भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है।
शिव को प्रिय है श्रावण मास
श्रावण मास में पूजा करने से सभी देवताओं की पूजा का फल
प्राप्त हो जाता है।
इसमें कोई शंका नही हैं। श्रावण मासारंभ से मासांत तक शिव
के दर्शन हेतु श्रद्धालु शिवालय
अवश्य जाते है। श्रद्धालुओं में भक्ति भावना भी इसी मास में
विशेष जागृत होती हैं। इस शिव
पूजन के साथ-साथ उनकी कथा अर्थात् शिव पुराण का भी श्रवण
करना चहिए। कई श्रद्धालु इस
मास में व्रत रखते है उन्हें व्रत के साथ-साथ अपनी वाणी पर
संयम, ब्रह्मचर्य का पालन, सत्य
वचन एवं अनैतिक कार्यो से दूर रहना चाहिए। धर्म,कर्म एवं दान के प्रति भी लोगों का
विशेष रूझान देख जा सकता हैं।
बारह मासों का नामाकरण शुक्ल पूर्णिमा के दिन चंद्र की
नक्षत्रगत स्थिति को
ध्यान में रखकर किया गया है। श्रावण मास का नामकरण भी
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन
श्रवण नक्षत्र में चंद्र की स्थिति के कारण किया गया है।
श्रवण नक्षत्र का स्वामी चंद्र है।
वारों में में सोमवार भी इसी आधार पर शिवपूजन हेतु उपयुक्त
माना है। श्रद्धालु पूरे मास नही
ंतो सोमवार के दिन शिवालय इसी आस्था के कारण जाता है। सावन
मास में रूद्राभिषेक करना,
रूद्राक्ष माला धारण करना एवं ओम नमः शिवाय का जाप करना
अत्यन्त लाभकारी बनता है।
इस मास में सोमवार व्रत तो अधिकांशतया करते है लेकिन अन्य
वारों का व्रत भी कम
महत्वपूर्ण नहीं है। इस मास के रविवार का व्रत सूर्य व्रत, सोमवार का रोटक, मंगल का
मंगलागौरी,
बुधवार का बुध व्रत, गुरूवार का बृह. व्रत, शुक्रवार का
जींवतिका व्रत व
शनिवार का व्रत हनुमान व्रत कहलाता है। इस प्रकार मास के
प्रत्येक वार का व्रत अत्यन्त
शुभदायक बनता है। इस मास में स्त्रियां तिथि एवं वारानुसार
अलग-अलग व्रत रखती है एवं
मासांत में रक्षाबंधन के दिन स्त्रियां अपने भाई को
रक्षासुत्र बांधकर अपने जीवन की रक्षा
हेतु वचन भी प्राप्त करती हैं। प्रत्येक तिथि के व्रत
अनुसार तिथि विशेष के देवता का पूजन
भी किया जाता है।
भगवान शंकर की विभिन्न फूलों से पूजन करने का भी भिन्न फल
मिलता है। शिव
पर कुछ पुष्प नहीं चढाने का निर्देश है-
बन्धुकं केतकीं कुन्दं केसरं कुटजं जयाम्।
शंकरे नार्पयेद्विद्वान्मालतीं युधिकामपि।।
अर्थात् शंकर पर बन्धुकं, केतकी, कुन्द,मौलसरी, कोरैया, जयपर्ण,
मालती तथा जुही
ये पुष्प शंकर पर नहीं चढाए जाते हैं। बेलपत्र, शतपत्र एवं कमलपत्र से पूजन करने से लक्ष्मी
कृपा,
आक का पुष्प चढानें से
मान-सम्मान में वृद्धि होती है। धतुरे के पुष्प चढाने से विष भय
एवं ज्वर भय मिटता है कहा भी है-
’’ आक धतुरा चबात फिरे, विष खात शिव तेरे
भरोसे। ‘‘ जवा पुष्प से सावन मास में शिव
का पूजन करने से शत्रु का नाश होता है तो गंगा जल से अभिषेक
करना मोक्ष प्रदाता माना
गया है। साधारण जल से अभिषेक भी वर्षा की प्राप्ति करवाता
है। दुग्ध मिश्रित जल से
अभिषेक करने से आत्मा को सुकुन मिलता है एवं संतान सुख
प्राप्त होता है। तो लक्ष्मी की कृपा
प्राप्त करने हेतु गन्ने के रस से या गुड मिश्रित जल अभिषेक
करना शुभ माना जाता है। मधु या
घी या दही से अभिषेक करने पर भी आर्थिक स्थिति मजबूत बनती
है। रोगों से ग्रसित जातकों
हेतु विशेष रूप से शुक्र से पीडित जातकों हेतु केवल दुध को
अर्पित करना चाहिए। सूर्य एवं चंद्र
कृत रोगों से मुक्ति हेतु शहद अर्पित करना विशेष विशेष
लाभदायक है तो मंगल कृत रोगों से
बचाव हेतु गुड मिले जल से अभिषेक करना चाहिए। बृहस्पति की
कृपा हेतु हल्दी मिश्रित या
दुग्ध मिश्रित जल से अभिषेक करना उतम लाभ की प्राप्ति करता
है। आप भी जिस ग्रह की
कृपा प्राप्त करना चाहते हैं। उसी ग्रह के अनुसार पूजन सावन
मास में अवश्य करें। किसी
कामना विशेष हेतु भी आप किसी विशेष प्रयोग को सावन मास में
कर शिव कृपा प्राप्त कर सकते है।
शिव रूद्री के पाठ का संकल्प लेकर शिवलिंग को पंचामृत से
स्नान कराकर ’’ ओम
नमः शिवाय ‘‘
का जाप करना चाहिए। शिव
रूद्री का एक पाठ करने से बाल ग्रहों की
शांति होती है। तीन पाठ से उपद्रवों का शमन, पांच रूद्री पाठ से नवग्रह शांति, सात से
अनिष्ट की आशंक, अनावश्यक भय नहीं
रहता । नौ रूद्री पाठ करने से सर्व शांति एवं ग्यारह
रूद्री पाठ से उच्चाधिकारियों के अनुकूल प्रभाव रहते हैं
अर्थात् उनका वशीकरण होता है। नौ
रूद्रों से एक महारूद्र तुल्य फल की प्राप्ति होती है। एक
महारूद्र से जीवन में शांति,
राज्य
कृपा,
लोगोें का मित्रवत व्यवहार , स्वास्थ्य रक्षा एवं चारों पुरूषार्थो की प्राप्ति होती
है। तीन महारूद्र करने से आपकी कोई भी एक मनोकामना भगवान
शिव अवश्य पूर्ण करते है।
बार-बार कठिन परिश्रम करने के उपरान्त भी यदि प्रतियोगिता
में सफलता नहीं मिल
रहीं,सरकारी नौकरी की आस छुटती हुई दिखे तो पांच
महारूद्र इस सावन मास में किसी
विद्वान कर्मकाण्डी से कराए या स्वयं करे आपको शिव शंकर
सफलता का द्वार अवश्य दिखाएगें।
यदि आप किसी भी प्रकार की आधि-व्याधि से पीडित है तो सावन
मास में नौ महारूद्र करना
आपके ग्रह दोषों को शांत कर रोगों से मुक्ति की राह अवश्य
दिखाएगें। शिव भक्तों एवं
श्रद्धालुओं को अवश्य ही सावन मास का लाभ उठाना चाहिए।
श्रावण मासांत पूर्णिमा को
उपनयन करना भी अति श्रेष्ठ माना गया है। उसी अवस्था में
उपनयन का निषेध बताया गया है
जब बृहस्पति या शुक्र अस्त हो। इसके अलावा पूर्णिमा में सभी
वेदपाणी उपनयन कर सकते
है।यदि आपकी भी कोई कामना है तो भोले के दरबार में आप भी
सावन मास में दस्तक अवश्य दे।
आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेगें।
卐 !! ॐ नमः शिवाय !! हर हर महादेव !! 卐
।। इति।।
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