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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.

Tuesday, March 12, 2013

राम भजन



राम भजन

पायो जी मैंने
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ..
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो .
जनम जनम की पूंजी पाई जग में सभी खोवायो .
खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो .
सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो .
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो .

भज मन राम चरण
भज मन राम चरण सुखदाई ..

जिहि चरननसे निकसी सुरसरि संकर जटा समाई ।
जटासंकरी नाम परयो है, त्रिभुवन तारन आई ॥

जिन चरननकी चरनपादुका भरत रह्यो लव लाई ।
सोइ चरन केवट धोइ लीने तब हरि नाव चलाई ॥

सोइ चरन संत जन सेवत सदा रहत सुखदाई ।
सोइ चरन गौतमऋषि-नारी परसि परमपद पाई ॥

दंडकबन प्रभु पावन कीन्हो ऋषियन त्रास मिटाई ।
सोई प्रभु त्रिलोकके स्वामी कनक मृगा सँग धाई ॥

कपि सुग्रीव बंधु भय-ब्याकुल तिन जय छत्र फिराई ।
रिपु को अनुज बिभीषन निसिचर परसत लंका पाई ॥

सिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक सेष सहस मुख गाई ।
तुलसीदास मारुत-सुतकी प्रभु निज मुख करत बड़ाई ॥

मन लाग्यो मेरो यार
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

सीता राम सीता राम
सीता राम सीता राम सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..

मुख में हो राम नाम राम सेवा हाथ में .
तू अकेला नाहिं प्यारे राम तेरे साथ में .
विधि का विधान जान हानि लाभ सहिये .

किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा .
होगा प्यारे वही जो श्री रामजी को भायेगा .
फल आशा त्याग शुभ कर्म करते रहिये .

ज़िन्दगी की डोर सौंप हाथ दीनानाथ के .
महलों मे राखे चाहे झोंपड़ी मे वास दे .
धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये .

आशा एक रामजी से  दूजी आशा छोड़ दे .
नाता एक रामजी से दूजे नाते तोड़ दे .
साधु संग राम रंग अंग अंग रंगिये .
काम रस त्याग प्यारे राम रस पगिये .

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..

भये प्रगट कृपाला


भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै .
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ..

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा .
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ..

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार .
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ..

जय राम रमारमनं

जय राम रमारमनं शमनं . भव ताप भयाकुल पाहि जनं ..
अवधेस सुरेस रमेस विभो . शरनागत मांगत पाहि प्रभो ..
दससीस विनासन बीस भुजा . कृत दूरि महा महि भूरि रुजा ..
रजनीचर बृंद पतंग रहे . सर पावक तेज प्रचंड दहे ..
महि मंडल मंडन चारुतरं . धृत सायक चाप निषंग बरं ..
मद मोह महा ममता रजनी . तम पुंज दिवाकर तेज अनी ..
मनजात किरात निपात किये . मृग लोग कुभोग सरेन हिये ..
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे . विषया बन पांवर भूलि परे ..
बहु रोग बियोगिन्हि लोग हये . भवदंघ्रि निरादर के फल ए ..
भव सिंधु अगाध परे नर ते . पद पंकज प्रेम न जे करते ..
अति दीन मलीन दुःखी नितहीं . जिन्ह कें पद पंकज प्रीत नहीं ..
अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें . प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ..
नहिं राग न लोभ न मान मदा . तिन्ह कें सम बैभव वा बिपदा ..
एहि ते तव सेवक होत मुदा . मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ..
करि प्रेम निरंतर नेम लियें . पद पंकज सेवत शुद्ध हियें ..
सम मानि निरादर आदरही . सब संत सुखी बिचरंति मही ..
मुनि मानस पंकज भृंग भजे . रघुवीर महा रनधीर अजे ..
तव नाम जपामि नमामि हरी . भव रोग महागद मान अरी ..
गुन सील कृपा परमायतनं . प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं ..
रघुनंद निकंदय द्वंद्व घनं . महिपाल बिलोकय दीन जनं ..

बार बार बर मागौं हरषि देहु श्रीरंग .
पद सरोज अनपायानी भगति सदा सतसंग ..

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