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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.

Friday, December 14, 2012

रामशलाका + तुलसीदास के दोहे


रामशलाका

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११
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१४
१५
सु
प्र
बि
हो
मु
सु
नु
बि
धि
रु
सि
सि
रें
बस
है
मं
अं
सुज
सो
सु
कु
धा
बे
नो
त्य
कु
जो
रि
की
हो
सं
रा
पु
सु
सी
जे
सं
रे
हो
नि
चि
तु
का
मा
मि
मी
म्हा
जा
हू
हीं
जू
ता
रा
रे
री
हृ
का
खा
जि
रा
पू
नि
को
मि
गो
ने
मनि
१०
हि
रा
रि
खि
जि
मनि
जं
११
सिं
मु
कौ
मि
धु
सु
का
१२
गु
नि
ती
रि
१३
ना
पु
ढा
का
तु
नु
१४
सि
सु
म्ह
रा
हिं
१५
सा
ला
धी
री
जा
हू
हीं
षा
जू
रा
रे

श्रीरामशलाका प्रश्नावली गोस्वामी तुलसीदास की एक रचना है। इसमें एक 15x15 ग्रिड में कुछ अक्षर, मात्राएँ आदि लिखे हैं। मान्याता है कि किसी को जब कभी अपने अभीष्ट प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने की इच्छा हो तो सर्वप्रथम उस व्यवक्ति को भगवान श्रीरामचन्द्र जी का ध्यान करना चाहिए। फिर अभीष्ट प्रश्न का चिंतन करते हुए श्रीरामशलाका प्रश्नावली के किसी कोष्ट में अँगुली या कोई शलाका (छोटी डण्डी) रख देना चाहिए। अब श्रीरामशलाका प्रश्नावली के उस कोष्ट में लिखे अक्षर या मात्रा को किसी कोरे काग़ज़ या स्लेट पर लिख लेना चाहिए। अब उस कोष्ट के आगे (दाहिने) और वह पंक्ति समाप्त होने पर नीचे की पंक्तियों पर बाएँ से दाहिने बढ़ते हुए उस कोष्ट से प्रत्येक नवें (9 - ९) कोष्ट में लिखे अक्षर या मात्रा को उस कागज या स्लेट पर लिखते जाना चाहिए।

इस प्रकार जब सभी नवें अक्षर या मात्राएँ जोड़े जाएँगे तो श्री राम चरित मानस की कोई एक चौपाई पूरी हो जाएगी जिसमें अभीष्ट प्रश्न का उत्तर निहित है जिनकी व्याख्याएँ निम्नलिखित प्रकार से हैं।

सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजहि मन कामना तुम्हारी॥

स्रोत - यह चौपाई बालकाण्ड में श्री सीता जी के गौरी पूजन के प्रसंग में है। गौरी जी ने श्री सीता जी को आशीर्वाद दिया है।

फल - प्रश्नकर्ता का प्रश्न उत्तम है, कार्य सिद्ध होगा।

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कोसलपुर राजा॥

स्रोत - यह चौपाई सुन्दरकाण्ड में श्री हनुमान जी के लंका में प्रवेश करने के समय की है।

फल - भगवान का स्मरण करते हुए कार्य आरम्भ करो, सफलता मिलेगी।

उघरें अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू॥

स्रोत - यह चौपाई बालकाण्ड के आरम्भ में सत्संग वर्णन के प्रसंग में है।

फल - इस कार्य में भलाई नहीं है। कार्य की सफलता में संदेह है।

बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम जिज गुन अनुसरहीं॥

स्रोत - यह चौपाई बालकाण्ड के आरम्भ में सत्संग वर्णन के प्रसंग में है।

फल - खोटे मनुष्यों का संग छोड़ दो। कार्य पूर्ण होने में संदेह है।

मुद मंगलमय संत समाजू । जिमि जग जंगम तीरथ राजू॥

स्रोत - यह चौपाई बालकाण्ड में संत-समाजरूपी तीर्थ के वर्णन में है।

फल - प्रश्न उत्तम है। कार्य सिद्ध होगा।

गरल सुधा रिपु करय मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥

स्रोत - यह चौपाई श्री हनुमान जी के लंका में प्रवेश करने के समय की है।

फल - प्रश्न बहुत श्रेष्ठ है। कार्य सफल होगा।

बरुन कुबेर सुरेस समीरा। रन सनमुख धरि काह न धीरा॥

स्रोत - यह चौपाई लंकाकाण्ड में रावण की मृत्यु के पश्चात मन्दोदरी के विलाप के प्रसंग में है।

फल - कार्य पूर्ण होने में संदेह है।

सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे। रामु लखनु सुनि भए सुखारे॥

स्रोत - यह चौपाई बालकाण्ड में पुष्पवाटिका से पुष्प लाने पर विश्वामित्र जी का आशीर्वाद है।

फल - प्रश्न बहुत उत्तम है। कार्य सिद्ध होगा।

होइहै सोई जो राम रचि राखा। को करि तरक बढ़ावहिं साखा॥

स्रोत - यह चौपाई बालकाण्ड में शिव पार्वती संवाद की है।

फल - कार्य पूर्ण होने में संदेह है, अत: उसे भगवान पर छोड़ देना श्रेयस्कर है।
 
तुलसीदास के दोहे
तुलसीजे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।
तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।
अर्थ: ‘‘दूसरों की निंदा कर स्वयं प्रतिष्ठा पाने का विचार ही मूर्खतापूर्ण है। दूसरे को बदनाम कर अपनी तारीफ गाने वालों के मुंह पर ऐसी कालिख लगेगी जिसे  कितना भी धोई जाये मिट नहीं सकती।’’
तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान।
तुलसी जिअत बिडम्बना, परिनामहु गत जान।।
अर्थ: ‘‘सौंदर्य, सद्गुण, धन, प्रतिष्ठा और धर्म भाव न होने पर भी जिनको अहंकार है उनका जीवन ही बिडम्बना से भरा है। उनकी गत भी बुरी होती है।
बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।
अर्थ : ‘वाणी और वेश से किसी मन के मैले स्त्री या पुरुष को जानना संभव नहीं है। सूपनखा, मारीचि, रावण और पूतना ने सुंदर वेश धरे पर उनकी नीचत खराब ही थी।’’
मार खोज लै सौंह करि, करि मत लाज न ग्रास।
मुए नीच ते मीच बिनु, जे इन के बिस्वास।।
अर्थ:  ‘‘वह निबुर्द्धि मनुष्य ही कपटियों और ढोंगियों का शिकार होते हैं। ऐसे कपटी लोग शपथ लेकर मित्र बनते हैं और फिर मौका मिलते ही वार करते हैं। ऐसे लोगों भगवान का न भगवान का भय न समाज का, अतः उनसे बचना चाहिए।
तुलसी इस संसार में सबसे मिलियो धाई।
न जाने केहि रूप में नारायण मिल जाई॥

तुलसी अपने राम को, भजन करौ निरसंक
आदि अन्त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक ।।

तुलसी ममता राम सों समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुख दास भए भव पार।।


आवत ही हर्षे नही नैनन नही सनेह!
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह!!

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर!
बसीकरण एक मंत्र है परिहरु बचन कठोर!!

बिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय!
आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवे सब कोय!!

तुलसी साथी विपत्ति के विद्या, विनय, विवेक!
साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक!!

काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान!
तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान!!

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार!
तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार!!

नाम राम को अंक है , सब साधन है सून!
अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दस गून!!

प्रभु तरु पर, कपि डार पर ते, आपु समान!
तुलसी कहूँ न राम से, साहिब सील निदान!!

हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ!
तुलसी स्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ!!

तुलसी हरि अपमान तें होई अकाज समाज!
राज करत रज मिली गए सकल सकुल कुरुराज!!

राम दूरि माया बढ़ती , घटती जानि मन मांह !
भूरी होती रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छांह !!

राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि!
राग न रोष न दोष दुःख सुलभ पदारथ चारी!!

चित्रकूट के घाट पर भई संतान की भीर !
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुबीर!!

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए!
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए!!

नीच निचाई नही तजई, सज्जनहू के संग!
तुलसी चंदन बिटप बसि, बिनु बिष भय न भुजंग !!

ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर कहहीं न दूसरी बात!
कौड़ी लागी लोभ बस करहिं बिप्र गुर बात !!

फोरहीं सिल लोढा, सदन लागें अदुक पहार !
कायर, क्रूर , कपूत, कलि घर घर सहस अहार !!

तुलसी पावस के समय धरी कोकिलन मौन!
अब तो दादुर बोलिहं हमें पूछिह कौन!!

मनि मानेक महेंगे किए सहेंगे तृण, जल, नाज!
तुलसी एते जानिए राम गरीब नेवाज!!

होई भले के अनभलो,होई दानी के सूम!
होई कपूत सपूत के ज्यों पावक मैं धूम!!

जड़ चेतन गुन दोषमय विश्व कीन्ह करतार!
संत हंस गुन गहहीं पथ परिहरी बारी निकारी!!

तुलसी इस संसार में. भांति भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥

"
जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । "
"
सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । "

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