सीताराघव राधामाधव
रे मन कृष्ण नाम कहि लीजै
गुरु के बचन अटल करि मानहिं, साधु समागम कीजै
पढिए गुनिए भगति भागवत, और कथा कहि लीजै
कृष्ण नाम बिनु जनम बादिही, बिरथा काहे जीजै
कृष्ण नाम रस बह्यो जात है, तृषावंत है पीजै
सूरदास हरिसरन ताकिए, जन्म सफल करी लीजै
राधाजी श्रीकृष्ण की अन्तरंग शक्ति हैं। श्रीकृष्ण फूल हैं तो राधाजी सुगंध हैं, श्रीकृष्ण मधु हैं तो राधाजी मिठास, श्रीकृष्ण मुख हैं तो राधाजी कांतिऔर सौन्दर्य। राधाजी श्रीकृष्ण का अभिन्न स्वरुप हैं। वह श्रीकृष्ण की आहलादिनी शक्ति हैं। श्रीकृष्ण का आनंदस्वरूप ही राधाजी के रूप में व्यक्त है। राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं। भक्ति का आनंद प्राप्त करने के लिए श्रीकृष्ण राधा बने हैं और रूप सौन्दर्य का आनंद प्राप्त करने के लिए राधा कृष्ण बनी हैं।राधाजी सृष्टीमयी, विश्वस्वरूपा, रासेश्वरी, परमेश्वरी और वृन्दावनेश्वरी हैं।
प्रेम से बोलो, राधे राधे ! राधे राधे, श्याम मिला दे !!
एक ही नाम आधार श्री कृष्ण के श्री मुख से निकले बार बार
श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री श्री राधा श्री राधा
श्री हरि नारायण गोविन्दे जै गोविन्दे श्री गोविन्दे।
श्री सीता राघव गोविन्दे जै गोविन्दे श्री गोविन्दे।
श्री राधा माधव गोविन्दे जै गोविन्दे श्री गोविन्दे।
श्री कमला विष्णू गोविन्दे जै गोविन्दे श्री गोविन्दे।
श्री सिया राम जय गोविन्दे जै गोविन्दे श्री गोविन्दे।
श्री प्रिया श्याम जय गोविन्दे जै गोविन्दे श्री गोविन्दे।
गोविन्द मेरो है, गोपाल मेरो है, श्री बांके बिहारी नन्दलाल मेरो है ।
श्री कृष्ण:शरणम् मम:
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।
जय राधा माधव , जय कुंज बिहारी , जय गोपी जन वलभ , जय गिरधर हरी ,
यशोदा नन्दन , बृज जन रंजन , जमुना तीर बन चारी ,
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ,
हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे
कलियुग में श्रीमद्भागवत गीता सुनने मात्र से ही मनुष्यों का कल्याण होता है। क्योंकि, श्रीमदभागवत गीता स्वयं त्रिलोकी नाथ भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के मुख से निकली है।
भागवत कथा ज्ञान का वह भंडार है, जिसके वाचन और सुनने से वातावरण में शुद्धि तो आती ही है। साथ ही, मन और मस्तिष्क भी स्वच्छ हो जाता है।
भागवत कथा के ज्ञान से आत्मा शुद्ध होती है और बुरे विचार अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता जगत विख्यात है। विकट परिस्थितियों में एक-दूसरे के काम आना ही मित्र धर्म है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र धर्म को निभाते हुए सुदामा की दरिद्रता को दूर किया।
भागवत कथा से घर और समाज में पवित्रता बनती है, जो सुख व शांति का आधार है। भागवत कथा व गीता के ज्ञान को अपने जीवन में धारण करना चाहिए, ताकि जीवन सफल हो सके।
भागवत का उद्देश्य लौकिक कामनाओं का अंत करना और प्राणी को प्रभु साधना में लगाना है। संत चलते फिरते तीर्थ होते हैं जो संसार के प्राणियों को दिशा देने व उन्हें सद्मार्ग दिखाने आते हैं। भागवत को जीवन में अपनाने व उसके अनुसार स्वयं को ढालने से ही प्राणी अपना कल्याण कर सकता है।
श्री सीता राघव गोविन्दे जै गोविन्दे श्री गोविन्दे।
श्री राधा माधव गोविन्दे जै गोविन्दे श्री गोविन्दे।
सीताराघव राधामाधव
सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव सीताराघव राधामाधव
ReplyDelete