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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.

Tuesday, July 16, 2013

पावन भजन


गाइये गणपति जगवंदन
गाइये गणपति जगवंदन | शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥
गाइये गणपति जगवंदन ...

सिद्धि सदन गजवदन विनायक | कृपा सिंधु सुंदर सब लायक॥
गाइये गणपति जगवंदन ...

मोदक प्रिय मुद मंगल दाता | विद्या बारिधि बुद्धि विधाता॥
गाइये गणपति जगवंदन ...

मांगत तुलसीदास कर जोरे | बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥
गाइये गणपति जगवंदन ...
जय जय गिरिबरराज किसोरी

जय जय गिरिबरराज किसोरी ।
जय महेस मुख चंद चकोरी ॥

जय गज बदन षडानन माता ।
जगत जननि दामिनि दुति गाता ॥

नहिं तव आदि मध्य अवसाना ।
अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना ॥

भव भव बिभव पराभव कारिनि ।
बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि ॥

सेवत तोहि सुलभ फल चारी ।
बरदायनी पुरारि पिआरी ॥

देबि पूजि पद कमल तुम्हारे ।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे ॥

सुख-वरण प्रभु, नारायण, हे, दु:ख-हरण प्रभु, नारायण, हे

सुख-वरण प्रभु, नारायण, हे, दु:ख-हरण प्रभु, नारायण, हे,
तिरलोकपति, दाता, सुखधाम, स्वीकारो मेरे परनाम,
प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...

मन वाणी में वो शक्ति कहाँ, जो महिमा तुम्हरी गान करें,
अगम अगोचर अविकारी, निर्लेप हो, हर शक्ति से परे,
हम और तो कुछ भी जाने ना, केवल गाते हैं पावन नाम ,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...

आदि मध्य और अन्त तुम्ही, और तुम ही आत्म अधारे हो,
भगतों के तुम प्राण, प्रभु, इस जीवन के रखवारे हो,
तुम में जीवें, जनमें तुम में, और अन्त करें तुम में विश्राम,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...

चरन कमल का ध्यान धरूँ, और प्राण करें सुमिरन तेरा,
दीनाश्रय, दीनानाथ, प्रभु, भव बंधन काटो हरि मेरा,
शरणागत के (घन)श्याम हरि, हे नाथ, मुझे तुम लेना थाम,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...

नाम जपन क्यों छोड़ दिया
नाम जपन क्यों छोड़ दिया

क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा
सत्य बचन क्यों छोड दिया

झूठे जग में दिल ललचा कर
असल वतन क्यों छोड दिया

कौड़ी को तो खूब सम्भाला
लाल रतन क्यों छोड दिया

जिन सुमिरन से अति सुख पावे
तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया

खालस इक भगवान भरोसे
तन मन धन क्यों ना छोड़ दिया

नाम जपन क्यों छोड़ दिया ॥

ये गर्व भरा मस्तक मेरा

ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे
अंहकार विकार भरे मन को
निज नाम की माला जपने दे

मैं मन के मैल को धो ना सका
ये जीवन तेरा हो ना सका
मैं प्रेमी हूँ, इतना ना झुका
गिर भी जो पडू तो उठने दे.
ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे

मैं ज्ञान की बातों में खोया
और कर्महीन पड़कर सोया
जब आँख खुली तो मन रोया
जग सोये मुझको जागने दे.
ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे

जैसा हूँ मैं, खोटा या खरा
निर्दोष शरण में आ तो गया
इक बार ये कह दे खाली जा
या प्रीत की रीत छलकने दे.
ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे

मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ

मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ .
हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊं ..

तूने मुझको जग में भेजा निर्मल देकर काया .
आकर के संसार में मैंने इसको दाग लगाया .
जनम जनम की मैली चादर कैसे दाग छुड़ाऊं ..

निर्मल वाणी पाकर मैने नाम न तेरा गाया .
नयन मूंद कर हे परमेश्वर कभी न तुझको ध्याया .
मन वीणा की तारें टूटीं अब क्या गीत सुनाऊं ..

इन पैरों से चल कर तेरे मन्दिर कभी न आया .
जहां जहां हो पूजा तेरी कभी न शीश झुकाया .
हे हरि हर मैं हार के आया अब क्या हार चढ़ाऊं ..

उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े

उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े .
भव पार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ..

कैसे तेरा नाम धियायें कैसे तुम्हरी लगन लगाये .
हृदय जगा दो ज्ञान तुम्हरी शरण पड़े ..

पंथ मतों की सुन सुन बातें द्वार तेरे तक पहुंच न पाते .
भटके बीच जहान तुम्हरी शरण पड़े ..

तू ही श्यामल कृष्ण मुरारी राम तू ही गणपति त्रिपुरारी .
तुम्ही बने हनुमान तुम्हरी शरण पड़े ..

ऐसी अन्तर ज्योति जगाना हम दीनों को शरण लगाना .
हे प्रभु दया निधान तुम्हरी शरण पड़े ..

झीनी झीनी बीनी चदरिय

झीनी झीनी बीनी चदरिया॥

काहे कै ताना काहे कै भरनी
कौन तार से बीनी चदरिया॥ १॥

इडा पिङ्गला ताना भरनी
सुखमन तार से बीनी चदरिया॥ २॥

आठ कँवल दल चरखा डोलै
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया॥ ३॥

साँ को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया॥ ४॥

सो चादर सुर नर मुनि ओढी
ओढि कै मैली कीनी चदरिया॥ ५॥

दास कबीर जतन करि ओढी
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥ ६॥ 


रंग दे चुनरिया 
 श्याम पिया मोरे रंग दे  चुनरिया (2)
रंग दे चुनरिया (2)
श्याम पिया मोरे रंग दे चुनरिया  (2)

ऐसी रंग दे के रंग नाही छूटे
ऐसी रंग दे रंग दे रंग दे के रंग नाही छूटे
धोबिया धुए चाहे ये सारी उमरिया  (2)

ओह श्याम पिया मोरे रंग दे चुनरिया
श्याम पिया मोरे रंग दे चुनरिया
रंग दे  (5)
रंग  दे  चुनरिया

लाल न रंगवू में
हरी ना रंगावु
अपने ही रंग में रंग दे चुनरिया  (2)

ओह श्याम पिया मोरे रंग दे चुनरिया
श्याम पिया मोरे रंग दे (चुनरिया) (6)
रंग दे (9)
रंग दे चुनरिया
बिना रंगाये मई तो घर नाही जाउंगी  
बिना ... रंगाये मई तो घर नाही ... जाउंगी

श्याम पिया मोरे रंग दे चुनरिया
मीरा  के  प्रभु गिरिधर नगर

जल से पतला कौन है
कौन भूमि से भारी
कौन अगन से तेज है
कौन काजल से काली

जल से पतला जनन है
और पाप भूमि से भारी
क्रोध अगन से तेज है
और कलंक काजल से काली

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर
प्रभु चरण में हरी चरनन में
श्याम चरण में लागी नजरिया
ओ शम पिया मोरे

वो काला एक बांसुरी वाला

वो काला एक बांसुरी वाला
सुध बिसरा गया मोरी रे
सुध बिसरा गया मोरी
माखन चोर वो नंदकिशोर
कर गयो रे, कर गयो मन की चोरी रे
सुध बिसरा गया मोरी

पनघट पे मोरी, बैंया मरोड़ी
मैं बोली तो मेरी मटकी फोडी
पैयां पडू करू विनती मैं पर
माने ना एक मोरी रे
सुध ........

वो काला एक...

छुप गयो फिर एक तान सूना के
कहाँ गयो एक बाण चला के
गोकुल ढुंढा मैंने मथुरा ढुंढी
कोई नगरिया ना छोडी रे
सुध......

इतना तो करना स्वामी

इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले

गोविन्द नाम लेके, तब प्राण तन से निकले,
श्री गंगाजी का तट हो, जमुना का वंशीवट हो,
मेरा सावला निकट हो, जब प्राण तन से निकले

पीताम्बरी कसी हो, छबी मान में यह बसी हो,
होठो पे कुछ हसी हो, जब प्राण तन से निकले

जब कंठ प्राण आये, कोई रोग ना सताये (२)
यम् दरश ना दिखाए, जब प्राण तन से निकले

उस वक्त जल्दी आना, नहीं श्याम भूल जाना,(२)
राधे को साथ लाना, जब प्राण तन से निकले,

एक भक्त की है अर्जी, खुद गरज की है गरजी
आगे तुम्हारी मर्जी जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना साई, जब प्राण तन से निकले

मन उपवन के फूल माँ तुमको चढ़ाऊँ कैसे

मन उपवन के फूल माँ तुमको चढ़ाऊँ कैसे
हमतो पहाड़ों की गुफ़ाओं में तुमको ही ढूँढा करते हैं
हो माँ तुमको ही ढूँढा करते हैं

कहाँ छुप गई है मैया हमारी,कहाँ खोगई है माँ ममता तुम्हारी
चैन नहीं बैचैन मेरा मन में लगन है कि दर्शन हो तेरा
ढूँढूँ कहाँ आजा तू माँ हमतो पहाड़ों की गुफ़ाओं में
तुमही को ढूँढा करते हैं

करदो माँ पूरी इच्छा हमारी,सदियों से रोए माँ अँखियाँ हमारी
आजा तू माँ ढूँढूँ कहाँ । हमतो पहाड़ों की ……………

टेढ़ी डगर है माँ लम्बा सफ़र है
तेरा हाथ सर पे माँ हमें क्या फ़िकर है
आजा तू माँ ढूँढूँ कहाँ हमतो पहाड़ों की गुफ़ाओं में
तुमही को ढूँढा करते हैं हो माँ तुमही को ढूँढा करते है

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