हे नाथ मैँ आपको भूलूँ
नही...!! हे नाथ ! आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न
सकूँ.
ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुख राशि
रामनवमी
रामनवमी का त्यौहार चैत्र शुक्ल की नवमी मनाया जाता है. इस वर्ष यह
त्यौहार 19 अप्रैल 2013 को शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा. रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है. हिंदु धर्म शास्त्रों के
अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त
लोग रामनवमी के रुप में मनाते हैं. यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार इस दिन लोग पवित्र
नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार
होते है.
रामनवमी पूजन
रामनवमी का पूजन शुद्ध और सात्विक रुप से भक्तों के लिए विशष महत्व रखता है इस दिन प्रात:कल स्नान
इत्यादि से निवृत हो भगवान राम का स्मरण करते हुए भक्त लोग व्रत एवं उपवास का पालन करते हैं. इस दिन राम जी का भजन एवं पूजन किया जाता है. भक्त लोग
मंदिरों इत्यादि में भगवान राम जी की कथा का श्रवण एवं किर्तन किया जाता है. इसके साथ ही साथ भंडारे और प्रसाद को भक्तों के समक्ष वितरित किया जाता
है. भगवान राम का संपूर्ण जीवन ही लोक कल्याण को
समर्पित रहा. उनकी कथा को सुन भक्तगण भाव विभोर हो जाते हैं व प्रभू के भजनों को भजते हुए रामनवमी
का पर्व मनाते हैं.
राम जन्म की कथा
हिन्दु धर्म शास्त्रो के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारो
को समाप्त करने तथा धर्म की पुन:
स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रुप में अवतार लिया था. श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन राजा दशरथ
के घर में हुआ था. उनके जन्म पश्चात संपूर्ण सृष्टि उन्हीं के रंग में रंगी दिखाई पड़ती थी.
चारों ओर आनंद का वातावरण छा गया था प्रकृति भी मानो प्रभु श्री
राम का स्वागत करने मे ललायित हो
रही थी. भगवान श्री राम का जन्म धरती पर राक्षसो के संहार के लिये हुआ था. त्रेता युग मे रावण तथा राक्षसो
द्वारा मचाये आतंक को खत्म करने के
लिये श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में अवतरित हुये. इन्हे रघुकुल नंदन भी कहा जाता है.
रामनवमी का महत्व
रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभयता में महत्वपूर्ण रहा
है. इस पर्व के साथ ही मा दुर्गा
के नवरात्रों का समापन भी जुडा़ है. इस तथ्य से हमें ज्ञात होता है कि भगवान श्री राम जी ने भी देवी दुर्गा की
पूज अकी थी और उनके द्वारा कि गई
शक्ति पूजा ने उन्हें धर्म युद्ध ने उन्हें विजय प्रदान की. इस प्रकार इन दो महत्वपूर्ण त्यौहारों का एक साथ होना
पर्व की महत्ता को और भी अधिक
बढा़ देता है. कहा जाता है कि इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ भी किया था.
रामनवमी का व्रत
पापों का क्षय करने वाला और शुभ फल प्रदान करने वाला होता है. राम नवमी के उपलक्ष्य पर देश भर में पूजा पाठ और भजन किर्तनों
का आयोजन होता है. देश के कोने
कोने में रामनवमी पर्व की गूंज सुनाई पड़ती है. इस दिन लोग उपवास करके भजन कीर्तन से भगवान राम को याद करते है. राम जन्म भूमि अयोध्या में यह
पर्व बडे हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है. वहां सरयु नदी में स्नान करके सभी भक्त भगवान श्री राम जी का आशिर्वाद प्राप्त करते हैं.
गुन सील कृपा
परमायतनं | प्रनमामि
निरंतर श्रीरमणं |
जय राम रमारमणं
समनं | भव ताप
भयाकुल पाहि जनं ||
अवधेस सुरेस रमेस
विभो | सरनागत
मागत पाहि प्रभो ||
बार बार बर मांगऊ हारिशी देहु श्रीरंग |
पदसरोज अनपायनी भागती सदा सतसंग ||
बरनी उमापति राम गुन हरषि गए कैलास |
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास ||
पदसरोज अनपायनी भागती सदा सतसंग ||
बरनी उमापति राम गुन हरषि गए कैलास |
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास ||
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति:II
हम सब-के-सब उस परमात्माके अंश हैं, उस प्रभुके लाडले पुत्र
हैं । हम चाहे कपूत हों या सपूत, पर हैं प्रभुके ही ।
पुत्र तो
कुपुत्र हो सकता है, पर माता कभी कुमाता नहीं
होती । ऐसे ही हमारे प्रभु कभी कुमाता-कुपिता नहीं होते। वे देखते हैं कि यह अभी
बच्चा है, गलती कर दी; परन्तु फिर प्यार करनेके
लिये तैयार
आप इस चर-अचर लोक के पिता हैं, आप ही पूजनीय हैं, परम् गुरू हैं। हे अप्रतिम प्रभाव, इन तीनो लोकों में आप के बराबर (समान) ही कोई नहीं है, आप से बढकर तो कौन होगा भला।
इसलिये मैं झुक कर आप को प्रणाम करता, मुझ से प्रसन्न होईये हे ईश्वर। जैसे एक पिता अपने पुत्र के, मित्र आपने मित्र के, औप प्रिय आपने प्रिय की गलतियों को क्षमा कर देता है, वैसे ही हे देव, आप मुझे क्षमा कर दीजिये। जो मैंने पहले कभी नहीं देखा, आप के इस रुप को देख लेने पर मैं अति प्रसन्न हो रहा हूँ, और साथ ही साथ मेरा मन भय से प्रव्यथित
(व्याकुल) भी हो रहा है। हे भगवन्, आप कृप्या कर मुझे अपना सौम्य देव रुप दिखाईये। प्रसन्न
होईये, हे देवेश, हे जगन्निवास मैं आप को मुकुट धारण किये, और हाथों में गदा और चक्र धारण किये
देखने का इच्छुक हूँ। हे
भगवन्, आप चतुर्भुज (चार भुजाओं वाला) रुप धारण
कर लीजिये, हे सहस्र बाहो (हज़ारों बाहों वाले), हे विश्व मूर्ते (विश्व रूप)।
!!
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेवाय !!
ओम नमः शिवाय
ॐ
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
शांताकरम भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णँ शुभांगम।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगभिर्ध्यानिगम्यम। वंदे विष्णु भवभयहरणम् सर्वलोकैकनाथम॥
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