हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! आप
मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.
ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुख राशि
स्वामी रामसुखदास जी महाराज
नारायण!
नारायण! नारायण! नारायण! नारायण!
राम
राम राम राम राम रामराम राम राम राम राम
श्री
मन नारायण नारायण नारायण......श्री मन नारायण नारायण नारायण......
ईश्वर
के अंश होने के कारण हम परम आनंद को पाने के अधिकारी हैं, चेतना के उस दिव्य स्तर तक पहुंचने के
अधिकारी हैं जहाँ विशुद्ध प्रेम, सुख, ज्ञान,
शक्ति, पवित्रता और शांति है. सम्पूर्ण प्रकृति
भी तब हमारे लिये सुखदायी हो जाती है. इस स्थिति
को केवल अनुभव किया जा सकता है यह स्थूल नहीं है अति सूक्ष्म है परम की अनुभूति अंतर
को अनंत सुख से ओतप्रोत कर देती है, और परम तक ले जाने वाला कोई
सदगुरु ही हो सकता है. सर्व भाव से उस सच्चिदानंद की शरण में जाने की विधि वही सिखाते
हैं. हम देह नहीं हैं, देही हैं, जिसे शास्त्रों
में जीव कहते हैं. जीव परमात्मा का अंश है, उसके लक्षण भी वही
हैं जो परमात्मा के हैं. वह भी शाश्वत, चेतन तथा आनन्दस्वरूप
है.
थोड़ी-थोड़ी
देर मेँ पुकारते रहेँ-
हे
नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैँ आपको भूलूँ नहीँ ।
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति:II
हम सब-के-सब उस परमात्माके अंश हैं, उस
प्रभुके लाडले पुत्र हैं । हम चाहे कपूत हों या सपूत, पर हैं प्रभुके ही ।
पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है, पर माता कभी कुमाता नहीं होती
। ऐसे ही हमारे प्रभु कभी कुमाता-कुपिता नहीं होते। वे देखते हैं कि यह अभी बच्चा है, गलती कर दी; परन्तु फिर प्यार करनेके लिये
तैयार
राम भजन
राम रस मीठा रे, कोइ पीवै साधु सुजाण
सदा रस पीवै प्रेमसूँ
सो अबिनासी प्राण ॥टेक॥
इहि रस मुनि लागे
सबै, ब्रह्मा-बिसुन-महेस ।
सुर नर साधू स्म्त
जन, सो रस पीवै सेस ॥१॥
सिध साधक जोगी-जती, सती सबै सुखदेव ।
पीवत अंत न आवई, पीपा अरु रैदास ।
पिवत कबीरा ना थक्या
अजहूँ प्रेम पियास ॥३॥
यह रस मीठा जिन
पिया, सो रस ही महिं समाइ ।
मीठे मीठा मिलि
रह्या, दादू अनत न जाइ ॥४॥
सीताराम, सीताराम, सीताराम
कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ..
मुख में हो राम
नाम, राम सेवा हाथ में .
तू अकेला नाहिं
प्यारे, राम तेरे साथ में .
विधि का विधान, जान हानि लाभ सहिये .
किया अभिमान, तो फिर मान नहीं पायेगा .
होगा प्यारे वही, जो श्री रामजी को भायेगा .
फल आशा त्याग, शुभ कर्म करते रहिये .
ज़िन्दगी की डोर
सौंप, हाथ दीनानाथ के .
महलों मे राखे, चाहे झोंपड़ी मे वास दे .
धन्यवाद, निर्विवाद, राम
राम कहिये .
आशा एक रामजी से, दूजी आशा छोड़ दे .
नाता एक रामजी से, दूजे नाते तोड़ दे .
साधु संग, राम रंग, अंग अंग
रंगिये .
काम रस त्याग, प्यारे राम रस पगिये .
सीता राम सीता राम
सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे
राम ताहि विधि रहिये
राम से बड़ा राम
का नाम
अंत में निकला ये
परिणाम, ये परिणाम,
राम से बड़ा राम
का नाम ..
सिमरिये नाम रूप
बिनु देखे,
कौड़ी लगे ना दाम
.
नाम के बांधे खिंचे
आयेंगे,
आखिर एक दिन राम
.
राम से बड़ा राम
का नाम ..
जिस सागर को बिना
सेतु के ,
लांघ सके ना राम
.
कूद गये हनुमान
उसी को,
लेकर राम का नाम
.
राम से बड़ा राम
का नाम ..
वो दिलवाले डूब
जायेंगे और वो दिलवाले क्या पायेंगे ,
जिनमें नहीं है
नाम ..
वो पत्थर भी तैरेंगे
जिन पर
लिखा हुआ श्री राम.
राम से बड़ा राम
का नाम ..
बिस्व भरण-पोषण कर जोई।
ताकर नाम भरत अस होई।।
गई बहोर गरीब नेवाजू।
सरल सबल साहिब रघुराजू।।
जपहि नामु जन आरत भारी।
मिटाई कुसंकट होहि सुखारी।।
सिताराम चरणदास
विनोद कुमार शर्मा
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