RAJ INFOTECH SYSTEM @ NETWORK

RAJ INFOTECH SYSTEM @ NETWORK
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.

Wednesday, June 29, 2011

Har Har Mhadav Ji

Har Har Mhadav Ji Har Har Mhadav Ji Har Har Mhadav Ji


















श्रीरुद्राष्टकम्


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे5हं॥1॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।

करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो5हं॥2॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।

त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे5हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।

चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो5हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।

जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।

ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥

अर्थ :- हे मोक्षस्वरूप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर तथा सबके स्वामी श्रीशिवजी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात मायादिरहित), [मायिक] गुणों से रहित, भेदरहित, इच्छारहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्ररूप में धारण करने वाले दिगम्बर [अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले] आपको मैं भजता हूँ॥1॥ निराकार, ओङ्कार के मूल, तुरीय (तीनों गणों से अतीत), वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥ जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोडों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुन्दर नदी गङ्गाजी विराजमान हैं, जिनके ललाटपर बाल चन्द्रमा (द्वितीया का चन्द्रमा) और गले में सर्प सुशोभित हैं॥3॥ जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं; जो प्रसन्नमुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं; सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और मुण्डमाला पहने हैं; उन सबके प्यारे और सबके नाथ [कल्याण करने वाले] श्रीशङ्करजी को मैं भजता हूँ॥4॥ प्रचण्ड (रुद्ररूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्यो के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दु:खों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्रीशङ्करजी को मैं भजता हूँ॥5॥ कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्पका अन्त (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालने वाले कामदेव के शत्रु, हे प्रभो! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये॥6॥ जबतक, पार्वती के पति आपके चरणकमलों को मनुष्य नहीं भजते, तबतक उन्हें न तो इहलोक और परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और न उनके तापों का नाश होता है। अत: हे समस्त जीवों के अंदर (हृदय में) निवास करने वाले प्रभो! प्रसन्न होइये॥7॥ मैं न तो योग जानता हूँ, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो! मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही नमस्कार करता हूँ। हे प्रभो! बुढापा तथा जन्म (मृत्यु) के दु:खसमूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:ख से रक्षा कीजिये। हे ईश्वर! हे शम्भो! मैं आपको नमस्कार करता हूँ॥8॥ भगवान रुद्र की स्तुति का यह अष्टक उन शङ्करजी की तुष्टि (प्रसन्नता) के लिए ब्राह्मण द्वारा कहा गया। जो मनुष्य इसे भक्तिपूर्वक पढते हैं, उन पर भगवान् शम्भु प्रसन्न होते हैं॥9॥


 (भगवान शिव)
दरिद्रता-नाशक, धन-सम्पत्ति-दायक, स्तोत्र


शाण्डिल्य मुनि ने एक दरिद्र पुत्र की माता से कहा- ‘शिवजी की प्रदोषकाल के अन्तर्गत की गयी पूजा का फल श्रेष्ठ होता है। जो प्रदोषकाल में शिव की पूजा करते हैं, वे इसी जन्म में धन-धान्य, कुल-सम्पत्ति से समृद्ध हो जाते हैं। ब्राह्मणी ! तुम्हारा पुत्र पूर्व-जन्म में ब्राह्मण था। इसने अपना जीवन दान लेने में बिताया। इस कारण इस जन्म में इसे दारिद्रय मिला। अब उस दोष का निवारण करने के लिये इसे भगवान शंकर की शरण में जाना चाहिए।’
मुनि के यों कहने पर ब्राह्मणी ने निवेदन किया- ‘मुनिवर ! कृपया आप हमें शिव-पूजन की विधि बताइये।’
शाण्डिल्य मुनि बोले- ‘दोनों पक्षों की त्रयोदशी को मनुष्य मिराहार रहे और सूर्योदय से तीन घड़ी पूर्व स्नान कर ले। फिर श्वेत वस्त्र धारण करके धीर पुरुष संध्या और जप आदि मित्य कर्म की विधि पूरी करे। तदनन्तर मौन हो शास्त्रविधि का पालन करते हुए शिव की पूजा प्रारम्भ करे।
भगवन् विग्रह के आगे की भूमि को खूब लीप-पोतके शुद्ध करे। उस स्थल को धौतवस्त्र, फूल एवं पत्रों से खूब सजाये। इसके पश्चात् पवित्र भाव से शास्त्रोक्त मन्त्र-द्वारा देवपीठ को आमन्त्रित करे। इसके पश्चात् मातृकान्यासादि विधियों को पूर्ण करे। फिर हृदय में अनन्त आदि न्यास करके देवपीठ पर मन्त्र का न्यास करके हृदय में एक कमल की भावना करे।
वह कमल नौ शक्तियों से युक्त परम सुन्दर हो। उसी कमल की कर्णिका में कोटि-कोटि चन्द्रमा के समान प्रकाशमान भगवान् शिव का ध्यान करे।
भगवान् शिव के तीन नेत्र हैं। मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट शोभायमान है। जटाजूट कुछ-कुछ पीला हो रहा है। सर्पों के हार से उनकी शोभा बढ़ रही है। उनके कण्ठ में नीला चिह्न है। उमके हाथ में वरद तथा दूसरे हाथ में अभय-मुद्रा है। वे व्याघ्र-चर्म पहने रत्नमय सिंहासन पर विराजमान हैं। उनके वाम भाग में भगवती उमा का चिन्तन करे।
इस प्रकार युगल दम्पति का ध्यान करके उनकी मानसिक पूजा करे। इसके बाद सिंहासन पर स्थित महादेवजी का पूजन करे। पूजा के आरम्भ में एकाग्रचित्त हो संकल्प पढ़े। तदनन्तर हाथ जोड़कर मन-ही-मन उनका आह्वान करे-’ हे भगवान् शंकर ! आप ऋण, पातक, दुर्भाग्य आदि की निवृत्ति के लिये मुझ पर प्रसन्न हों।’ इसके पश्चात् गिरिजापति की प्रार्थना इस प्रकार करे-

जय देव जगन्नाथ, जय शंकर शाश्वत। जय सर्व-सुराध्यक्ष, जय सर्व-सुरार्चित ! ।।
जय सर्व-गुणातीत, जय सर्व-वर-प्रद ! जय नित्य-निराधार, जय विश्वम्भराव्यय ! ।।
जय विश्वैक-वेद्येश, जय नागेन्द्र-भूषण ! जय गौरी-पते शम्भो, जय चन्द्रार्ध-शेखर ! ।।
जय कोट्यर्क-संकाश, जयानन्त-गुणाश्रय ! जय रुद्र-विरुपाक्ष, जय चिन्त्य-निरञ्जन ! ।।
जय नाथ कृपा-सिन्धो, जय भक्तार्त्ति-भञ्जन ! जय दुस्तर-संसार-सागरोत्तारण-प्रभो ! ।।
प्रसीद मे महा-भाग, संसारार्त्तस्य खिद्यतः। सर्व-पाप-भयं हृत्वा, रक्ष मां परमेश्वर ! ।।
महा-दारिद्रय-मग्नस्य, महा-पाप-हृतस्य च। महा-शोक-विनष्टस्य, महा-रोगातुरस्य च।।
ऋणभार-परीत्तस्य, दह्यमानस्य कर्मभिः। ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य, प्रसीद मम शंकर ! ।।
(स्क॰ पु॰ ब्रा॰ ब्रह्मो॰ ७।५९-६६)
फल-श्रुतिः
दारिद्रयः प्रार्थयेदेवं, पूजान्ते गिरिजा-पतिम्। अर्थाढ्यो वापि राजा वा, प्रार्थयेद् देवमीश्वरम्।।
दीर्घमायुः सदाऽऽरोग्यं, कोष-वृद्धिर्बलोन्नतिः। ममास्तु नित्यमानन्दः, प्रसादात् तव शंकर ! ।।
शत्रवः संक्षयं यान्तु, प्रसीदन्तु मम गुहाः। नश्यन्तु दस्यवः राष्ट्रे, जनाः सन्तुं निरापदाः।।
दुर्भिक्षमरि-सन्तापाः, शमं यान्तु मही-तले। सर्व-शस्य समृद्धिनां, भूयात् सुख-मया दिशः।।

अर्थात् ‘देव ! जगन्नाथ ! आपकी जय हो। सनातन शंकर ! आपकी जय हो। सम्पूर्ण देवताओं के अधीश्वर ! आपकी जय हो। सर्वदेवपूजित ! आपकी जय हो। सर्वगुणातीत ! आपकी जय हो। सबको वर प्रदान करने वाले प्रभो ! आपकी जय हो। नित्य, आधार-रहित, अविनाशी विश्वम्भर ! आपकी जय हो, जय हो। सम्पूर्ण विश्व के लिये एकमात्र जानने योग्य महेश्वर ! आपकी जय हो। नागराज वासुकी को आभूषण के रुप धारण करने वाले प्रभो ! आपकी जय हो। गौरीपते ! आपकी जय हो। चन्द्रार्द्धशेखर शम्भो ! आपकी जय हो। कोटी-सूर्यों के समान तेजस्वी शिव ! आपकी जय हो। अनन्त गुणों के आश्रय ! आपकी जय हो। भयंकर नेत्रों वाले रुद्र ! आपकी जय हो। अचिन्त्य ! निरञ्जन ! आपकी जय हो। नाथ ! दयासिन्धो ! आपकी जय हो। भक्तों की पीड़ा का नाश करने वाले प्रभो ! आपकी जय हो। दुस्तर संसारसागर से पार उतारने वाले परमेश्वर ! आपकी जय हो। महादेव, मैं संसार के दुःखों से पीड़ित एवं खिन्न हूँ, मुझ पर प्रसन्न होइये। परमेश्वर ! समस्त पापों के भय का अपहरण करके मेरी रक्षा कीजिये। मैं घोर दारिद्रय के समुद्र में डूबा हुआ हूँ। बड़े-बड़े पापों ने मुझे आक्रान्त कर लिया है। मैं महान् शोक से नष्ट और बड़े-बड़े रोगों से व्याकुल हूँ। सब ओर से ऋण के भार से लदा हुआ हूँ। पापकर्मों की आग में जल रहा हूँ और ग्रहों से पीड़ित हो रहा हूँ। शंकर ! मुझ पर प्रसन्न होइये।’
(और कोई विधि-विधान न बन सके तो श्रद्धा-विश्वास-पूर्वक केवल उपर्युक्त स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करे।)


(भगवान शिव)
 शिव सहस्त्रनाम


ॐ स्थिराय नमः॥

ॐ स्थाणवे नमः॥

ॐ प्रभवे नमः॥

ॐ भीमाय नमः॥

ॐ प्रवराय नमः॥

ॐ वरदाय नमः॥

ॐ वराय नमः॥

ॐ सर्वात्मने नमः॥

ॐ सर्वविख्याताय नमः॥

ॐ सर्वस्मै नमः॥

ॐ सर्वकाराय नमः॥

ॐ भवाय नमः॥

ॐ जटिने नमः॥

ॐ चर्मिणे नमः॥

ॐ शिखण्डिने नमः॥ ॐ सर्वांङ्गाय नमः॥ ॐ सर्वभावाय नमः॥ ॐ हराय नमः॥ ॐ हरिणाक्षाय नमः॥ ॐ सर्वभूतहराय नमः॥

ॐ प्रभवे नमः॥ ॐ प्रवृत्तये नमः॥ ॐ निवृत्तये नमः॥ ॐ नियताय नमः॥ ॐ शाश्वताय नमः॥ ॐ ध्रुवाय नमः॥ ॐ श्मशानवासिने नमः॥ ॐ भगवते नमः॥ ॐ खेचराय नमः॥ ॐ गोचराय नमः॥

ॐ अर्दनाय नमः॥ ॐ अभिवाद्याय नमः॥ ॐ महाकर्मणे नमः॥ ॐ तपस्विने नमः॥ ॐ भूतभावनाय नमः॥ ॐ उन्मत्तवेषप्रच्छन्नाय नमः॥ ॐ सर्वलोकप्रजापतये नमः॥ ॐ महारूपाय नमः॥ ॐ महाकायाय नमः॥ ॐ वृषरूपाय नमः॥

ॐ महायशसे नमः॥ ॐ महात्मने नमः॥ ॐ सर्वभूतात्मने नमः॥ ॐ विश्वरूपाय नमः॥ ॐ महाहनवे नमः॥ ॐ लोकपालाय नमः॥ ॐ अंतर्हितात्मने नमः॥ ॐ प्रसादाय नमः॥ ॐ हयगर्दभाय नमः॥ ॐ पवित्राय नमः॥ (50)

ॐ महते नमः॥ ॐ नियमाय नमः॥ ॐ नियमाश्रिताय नमः॥ ॐ सर्वकर्मणे नमः॥ ॐ स्वयंभूताय नमः॥ ॐ आदये नमः॥ ॐ आदिकराय नमः॥ ॐ निधये नमः॥ ॐ सहस्राक्षाय नमः॥ ॐ विशालाक्षाय नमः॥ ॐ सोमाय नमः॥ ॐ नक्षत्रसाधकाय नमः॥ ॐ चंद्राय नमः॥ ॐ सूर्याय नमः॥ ॐ शनये नमः॥ ॐ केतवे नमः॥ ॐ ग्रहाय नमः॥ ॐ ग्रहपतये नमः॥ ॐ वराय नमः॥ ॐ अत्रये नमः॥ ॐ अत्र्यानमस्कर्त्रे नमः॥ ॐ मृगबाणार्पणाय नमः॥ ॐ अनघाय नमः॥ ॐ महातपसे नमः॥ ॐ घोरतपसे नमः॥ ॐ अदीनाय नमः॥ ॐ दीनसाधककराय नमः॥ ॐ संवत्सरकराय नमः॥ ॐ मंत्राय नमः॥ ॐ प्रमाणाय नमः॥ ॐ परमन्तपाय नमः॥ ॐ योगिने नमः॥ ॐ योज्याय नमः॥ ॐ महाबीजाय नमः॥ ॐ महारेतसे नमः॥ ॐ महाबलाय नमः॥ ॐ सुवर्णरेतसे नमः॥ ॐ सर्वज्ञाय नमः॥ ॐ सुबीजाय नमः॥ ॐ बीजवाहनाय नमः॥ ॐ दशबाहवे नमः॥ ॐ अनिमिषाय नमः॥ ॐ नीलकण्ठाय नमः॥ ॐ उमापतये नमः॥ ॐ विश्वरूपाय नमः॥ ॐ स्वयंश्रेष्ठाय नमः॥ ॐ बलवीराय नमः॥ ॐ अबलोगणाय नमः॥ ॐ गणकर्त्रे नमः॥ ॐ गणपतये नमः॥ (100)

ॐ दिग्वाससे नमः॥ ॐ कामाय नमः॥ ॐ मंत्रविदे नमः॥ ॐ परममन्त्राय नमः॥ ॐ सर्वभावकराय नमः॥ ॐ हराय नमः॥ ॐ कमण्डलुधराय नमः॥ ॐ धन्विते नमः॥ ॐ बाणहस्ताय नमः॥ ॐ कपालवते नमः॥ ॐ अशनिने नमः॥ ॐ शतघ्निने नमः॥ ॐ खड्गिने नमः॥ ॐ पट्टिशिने नमः॥ ॐ आयुधिने नमः॥ ॐ महते नमः॥ ॐ स्रुवहस्ताय नमः॥ ॐ सुरूपाय नमः॥ ॐ तेजसे नमः॥ ॐ तेजस्करनिधये नमः॥

ॐ उष्णीषिणे नमः॥ ॐ सुवक्त्राय नमः॥ ॐ उदग्राय नमः॥ ॐ विनताय नमः॥ ॐ दीर्घाय नमः॥ ॐ हरिकेशाय नमः॥ ॐ सुतीर्थाय नमः॥ ॐ कृष्णाय नमः॥ ॐ श्रृगालरूपाय नमः॥ ॐ सिद्धार्थाय नमः॥

ॐ मुण्डाय नमः॥ ॐ सर्वशुभंकराय नमः॥ ॐ अजाय नमः॥ ॐ बहुरूपाय नमः॥ ॐ गन्धधारिणे नमः॥ ॐ कपर्दिने नमः॥ ॐ उर्ध्वरेतसे नमः॥ ॐ उर्ध्वलिंगाय नमः॥ ॐ उर्ध्वशायिने नमः॥ ॐ नभस्थलाय नमः॥ ॐ त्रिजटाय नमः॥ ॐ चीरवाससे नमः॥ ॐ रूद्राय नमः॥ ॐ सेनापतये नमः॥ ॐ विभवे नमः॥ ॐ अहश्चराय नमः॥ ॐ नक्तंचराय नमः॥ ॐ तिग्ममन्यवे नमः॥ ॐ सुवर्चसाय नमः॥ ॐ गजघ्ने नमः॥ (150)

ॐ दैत्यघ्ने नमः॥ ॐ कालाय नमः॥ ॐ लोकधात्रे नमः॥ ॐ गुणाकराय नमः॥ ॐ सिंहसार्दूलरूपाय नमः॥ ॐ आर्द्रचर्माम्बराय नमः॥ ॐ कालयोगिने नमः॥ ॐ महानादाय नमः॥ ॐ सर्वकामाय नमः॥ ॐ चतुष्पथाय नमः॥ ॐ निशाचराय नमः॥ ॐ प्रेतचारिणे नमः॥ ॐ भूतचारिणे नमः॥ ॐ महेश्वराय नमः॥ ॐ बहुभूताय नमः॥ ॐ बहुधराय नमः॥ ॐ स्वर्भानवे नमः॥ ॐ अमिताय नमः॥ ॐ गतये नमः॥ ॐ नृत्यप्रियाय नमः॥ ॐ नृत्यनर्ताय नमः॥ ॐ नर्तकाय नमः॥ ॐ सर्वलालसाय नमः॥ ॐ घोराय नमः॥ ॐ महातपसे नमः॥ ॐ पाशाय नमः॥ ॐ नित्याय नमः॥ ॐ गिरिरूहाय नमः॥ ॐ नभसे नमः॥ ॐ सहस्रहस्ताय नमः॥ ॐ विजयाय नमः॥ ॐ व्यवसायाय नमः॥ ॐ अतन्द्रियाय नमः॥ ॐ अधर्षणाय नमः॥ ॐ धर्षणात्मने नमः॥ ॐ यज्ञघ्ने नमः॥ ॐ कामनाशकाय नमः॥ ॐ दक्षयागापहारिणे नमः॥ ॐ सुसहाय नमः॥ ॐ मध्यमाय नमः॥ ॐ तेजोपहारिणे नमः॥ ॐ बलघ्ने नमः॥ ॐ मुदिताय नमः॥ ॐ अर्थाय नमः॥ ॐ अजिताय नमः॥ ॐ अवराय नमः॥ ॐ गम्भीरघोषाय नमः॥ ॐ गम्भीराय नमः॥ ॐ गंभीरबलवाहनाय नमः॥ ॐ न्यग्रोधरूपाय नमः॥ (200)

ॐ न्यग्रोधाय नमः॥ ॐ वृक्षकर्णस्थितये नमः॥ ॐ विभवे नमः॥ ॐ सुतीक्ष्णदशनाय नमः॥ ॐ महाकायाय नमः॥ ॐ महाननाय नमः॥ ॐ विश्वकसेनाय नमः॥ ॐ हरये नमः॥ ॐ यज्ञाय नमः॥ ॐ संयुगापीडवाहनाय नमः॥ ॐ तीक्ष्णतापाय नमः॥ ॐ हर्यश्वाय नमः॥ ॐ सहायाय नमः॥ ॐ कर्मकालविदे नमः॥ ॐ विष्णुप्रसादिताय नमः॥ ॐ यज्ञाय नमः॥ ॐ समुद्राय नमः॥ ॐ वडमुखाय नमः॥ ॐ हुताशनसहायाय नमः॥ ॐ प्रशान्तात्मने नमः॥ ॐ हुताशनाय नमः॥ ॐ उग्रतेजसे नमः॥ ॐ महातेजसे नमः॥ ॐ जन्याय नमः॥ ॐ विजयकालविदे नमः॥ ॐ ज्योतिषामयनाय नमः॥ ॐ सिद्धये नमः॥ ॐ सर्वविग्रहाय नमः॥ ॐ शिखिने नमः॥ ॐ मुण्डिने नमः॥ ॐ जटिने नमः॥ ॐ ज्वालिने नमः॥ ॐ मूर्तिजाय नमः॥ ॐ मूर्ध्दगाय नमः॥ ॐ बलिने नमः॥ ॐ वेणविने नमः॥ ॐ पणविने नमः॥ ॐ तालिने नमः॥ ॐ खलिने नमः॥ ॐ कालकंटकाय नमः॥ ॐ नक्षत्रविग्रहमतये नमः॥ ॐ गुणबुद्धये नमः॥ ॐ लयाय नमः॥ ॐ अगमाय नमः॥ ॐ प्रजापतये नमः॥ ॐ विश्वबाहवे नमः॥ ॐ विभागाय नमः॥ ॐ सर्वगाय नमः॥ ॐ अमुखाय नमः॥ ॐ विमोचनाय नमः॥ (250)

ॐ सुसरणाय नमः॥ ॐ हिरण्यकवचोद्भाय नमः॥ ॐ मेढ्रजाय नमः॥ ॐ बलचारिणे नमः॥ ॐ महीचारिणे नमः॥ ॐ स्रुत्याय नमः॥ ॐ सर्वतूर्यनिनादिने नमः॥ ॐ सर्वतोद्यपरिग्रहाय नमः॥ ॐ व्यालरूपाय नमः॥ ॐ गुहावासिने नमः॥ ॐ गुहाय नमः॥ ॐ मालिने नमः॥ ॐ तरंगविदे नमः॥ ॐ त्रिदशाय नमः॥ ॐ त्रिकालधृगे नमः॥ ॐ कर्मसर्वबन्ध-विमोचनाय नमः॥ ॐ असुरेन्द्राणां बन्धनाय नमः॥ ॐ युधि शत्रुवानाशिने नमः॥ ॐ सांख्यप्रसादाय नमः॥ ॐ दुर्वाससे नमः॥ ॐ सर्वसाधुनिषेविताय नमः॥ ॐ प्रस्कन्दनाय नमः॥ ॐ विभागज्ञाय नमः॥ ॐ अतुल्याय नमः॥ ॐ यज्ञविभागविदे नमः॥ ॐ सर्वचारिणे नमः॥ ॐ सर्ववासाय नमः॥ ॐ दुर्वाससे नमः॥ ॐ वासवाय नमः॥ ॐ अमराय नमः॥ ॐ हैमाय नमः॥ ॐ हेमकराय नमः॥ ॐ अयज्ञसर्वधारिणे नमः॥ ॐ धरोत्तमाय नमः॥ ॐ लोहिताक्षाय नमः॥ ॐ महाक्षाय नमः॥ ॐ विजयाक्षाय नमः॥ ॐ विशारदाय नमः॥ ॐ संग्रहाय नमः॥ ॐ निग्रहाय नमः॥ ॐ कर्त्रे नमः॥ ॐ सर्पचीरनिवसनाय नमः॥ ॐ मुख्याय नमः॥ ॐ अमुख्याय नमः॥ ॐ देहाय नमः॥ ॐ काहलये नमः॥ ॐ सर्वकामदाय नमः॥ ॐ सर्वकालप्रसादाय नमः॥ ॐ सुबलाय नमः॥ ॐ बलरूपधृगे नमः॥ (300)

ॐ सर्वकामवराय नमः॥ ॐ सर्वदाय नमः॥ ॐ सर्वतोमुखाय नमः॥ ॐ आकाशनिर्विरूपाय नमः॥ ॐ निपातिने नमः॥ ॐ अवशाय नमः॥ ॐ खगाय नमः॥ ॐ रौद्ररूपाय नमः॥ ॐ अंशवे नमः॥ ॐ आदित्याय नमः॥ ॐ बहुरश्मये नमः॥ ॐ सुवर्चसिने नमः॥ ॐ वसुवेगाय नमः॥ ॐ महावेगाय नमः॥ ॐ मनोवेगाय नमः॥ ॐ निशाचराय नमः॥ ॐ सर्ववासिने नमः॥ ॐ श्रियावासिने नमः॥ ॐ उपदेशकराय नमः॥ ॐ अकराय नमः॥ ॐ मुनये नमः॥ ॐ आत्मनिरालोकाय नमः॥ ॐ संभग्नाय नमः॥ ॐ सहस्रदाय नमः॥ ॐ पक्षिणे नमः॥ ॐ पक्षरूपाय नमः॥ ॐ अतिदीप्ताय नमः॥ ॐ विशाम्पतये नमः॥ ॐ उन्मादाय नमः॥ ॐ मदनाय नमः॥ ॐ कामाय नमः॥ ॐ अश्वत्थाय नमः॥ ॐ अर्थकराय नमः॥ ॐ यशसे नमः॥ ॐ वामदेवाय नमः॥ ॐ वामाय नमः॥ ॐ प्राचे नमः॥ ॐ दक्षिणाय नमः॥ ॐ वामनाय नमः॥ ॐ सिद्धयोगिने नमः॥ ॐ महर्षये नमः॥ ॐ सिद्धार्थाय नमः॥ ॐ सिद्धसाधकाय नमः॥ ॐ भिक्षवे नमः॥ ॐ भिक्षुरूपाय नमः॥ ॐ विपणाय नमः॥ ॐ मृदवे नमः॥ ॐ अव्ययाय नमः॥ ॐ महासेनाय नमः॥ ॐ विशाखाय नमः॥ (350)

ॐ षष्टिभागाय नमः॥ ॐ गवाम्पतये नमः॥ ॐ वज्रहस्ताय नमः॥ ॐ विष्कम्भिने नमः॥ ॐ चमुस्तंभनाय नमः॥ ॐ वृत्तावृत्तकराय नमः॥ ॐ तालाय नमः॥ ॐ मधवे नमः॥ ॐ मधुकलोचनाय नमः॥ ॐ वाचस्पतये नमः॥ ॐ वाजसनाय नमः॥ ॐ नित्यमाश्रमपूजिताय नमः॥ ॐ ब्रह्मचारिणे नमः॥ ॐ लोकचारिणे नमः॥ ॐ सर्वचारिणे नमः॥ ॐ विचारविदे नमः॥ ॐ ईशानाय नमः॥ ॐ ईश्वराय नमः॥ ॐ कालाय नमः॥ ॐ निशाचारिणे नमः॥ ॐ पिनाकधृगे नमः॥ ॐ निमितस्थाय नमः॥ ॐ निमित्ताय नमः॥ ॐ नन्दये नमः॥ ॐ नन्दिकराय नमः॥ ॐ हरये नमः॥ ॐ नन्दीश्वराय नमः॥ ॐ नन्दिने नमः॥ ॐ नन्दनाय नमः॥ ॐ नंन्दीवर्धनाय नमः॥ ॐ भगहारिणे नमः॥ ॐ निहन्त्रे नमः॥ ॐ कालाय नमः॥ ॐ ब्रह्मणे नमः॥ ॐ पितामहाय नमः॥ ॐ चतुर्मुखाय नमः॥ ॐ महालिंगाय नमः॥ ॐ चारूलिंगाय नमः॥ ॐ लिंगाध्यक्षाय नमः॥ ॐ सुराध्यक्षाय नमः॥ ॐ योगाध्यक्षाय नमः॥ ॐ युगावहाय नमः॥ ॐ बीजाध्यक्षाय नमः॥ ॐ बीजकर्त्रे नमः॥ ॐ अध्यात्मानुगताय नमः॥ ॐ बलाय नमः॥ ॐ इतिहासाय नमः॥ ॐ सकल्पाय नमः॥ ॐ गौतमाय नमः॥ ॐ निशाकराय नमः॥ (400)   

ॐ दम्भाय नमः॥ ॐ अदम्भाय नमः॥ ॐ वैदम्भाय नमः॥ ॐ वश्याय नमः॥ ॐ वशकराय नमः॥ ॐ कलये नमः॥ ॐ लोककर्त्रे नमः॥ ॐ पशुपतये नमः॥ ॐ महाकर्त्रे नमः॥ ॐ अनौषधाय नमः॥ ॐ अक्षराय नमः॥ ॐ परब्रह्मणे नमः॥ ॐ बलवते नमः॥ ॐ शक्राय नमः॥ ॐ नीतये नमः॥ ॐ अनीतये नमः॥ ॐ शुद्धात्मने नमः॥ ॐ मान्याय नमः॥ ॐ शुद्धाय नमः॥ ॐ गतागताय नमः॥ ॐ बहुप्रसादाय नमः॥ ॐ सुस्पप्नाय नमः॥ ॐ दर्पणाय नमः॥ ॐ अमित्रजिते नमः॥ ॐ वेदकराय नमः॥ ॐ मंत्रकराय नमः॥ ॐ विदुषे नमः॥ ॐ समरमर्दनाय नमः॥ ॐ महामेघनिवासिने नमः॥ ॐ महाघोराय नमः॥ ॐ वशिने नमः॥ ॐ कराय नमः॥ ॐ अग्निज्वालाय नमः॥ ॐ महाज्वालाय नमः॥ ॐ अतिधूम्राय नमः॥ ॐ हुताय नमः॥ ॐ हविषे नमः॥ ॐ वृषणाय नमः॥ ॐ शंकराय नमः॥ ॐ नित्यंवर्चस्विने नमः॥ ॐ धूमकेताय नमः॥ ॐ नीलाय नमः॥ ॐ अंगलुब्धाय नमः॥ ॐ शोभनाय नमः॥ ॐ निरवग्रहाय नमः॥ ॐ स्वस्तिदायकाय नमः॥ ॐ स्वस्तिभावाय नमः॥ ॐ भागिने नमः॥ ॐ भागकराय नमः॥ ॐ लघवे नमः॥(450) 

ॐ उत्संगाय नमः॥ ॐ महांगाय नमः॥ ॐ महागर्भपरायणाय नमः॥ ॐ कृष्णवर्णाय नमः॥ ॐ सुवर्णाय नमः॥ ॐ सर्वदेहिनामिनिन्द्राय नमः॥ ॐ महापादाय नमः॥ ॐ महाहस्ताय नमः॥ ॐ महाकायाय नमः॥ ॐ महायशसे नमः॥ ॐ महामूर्धने नमः॥ ॐ महामात्राय नमः॥ ॐ महानेत्राय नमः॥ ॐ निशालयाय नमः॥ ॐ महान्तकाय नमः॥ ॐ महाकर्णाय नमः॥ ॐ महोष्ठाय नमः॥ ॐ महाहनवे नमः॥ ॐ महानासाय नमः॥ ॐ महाकम्बवे नमः॥ ॐ महाग्रीवाय नमः॥ ॐ श्मशानभाजे नमः॥ ॐ महावक्षसे नमः॥ ॐ महोरस्काय नमः॥ ॐ अंतरात्मने नमः॥ ॐ मृगालयाय नमः॥ ॐ लंबनाय नमः॥ ॐ लम्बितोष्ठाय नमः॥ ॐ महामायाय नमः॥ ॐ पयोनिधये नमः॥ ॐ महादन्ताय नमः॥ ॐ महाद्रष्टाय नमः॥ ॐ महाजिह्वाय नमः॥ ॐ महामुखाय नमः॥ ॐ महारोम्णे नमः॥ ॐ महाकोशाय नमः॥ ॐ महाजटाय नमः॥ ॐ प्रसन्नाय नमः॥ ॐ प्रसादाय नमः॥ ॐ प्रत्ययाय नमः॥ ॐ गिरिसाधनाय नमः॥ ॐ स्नेहनाय नमः॥ ॐ अस्नेहनाय नमः॥ ॐ अजिताय नमः॥ ॐ महामुनये नमः॥ ॐ वृक्षाकाराय नमः॥ ॐ वृक्षकेतवे नमः॥ ॐ अनलाय नमः॥ ॐ वायुवाहनाय नमः॥ (500) 

ॐ गण्डलिने नमः॥

ॐ मेरूधाम्ने नमः॥

ॐ देवाधिपतये नमः॥

ॐ अथर्वशीर्षाय नमः॥

ॐ सामास्या नमः॥

ॐ ऋक्सहस्रामितेक्षणाय नमः॥

ॐ यजुः॥ पादभुजाय नमः॥

ॐ गुह्याय नमः॥

ॐ प्रकाशाय नमः॥

ॐ जंगमाय नमः॥

ॐ अमोघार्थाय नमः॥

ॐ प्रसादाय नमः॥

ॐ अभिगम्याय नमः॥

ॐ सुदर्शनाय नमः॥

ॐ उपकाराय नमः॥

ॐ प्रियाय नमः॥

ॐ सर्वाय नमः॥

ॐ कनकाय नमः॥

ॐ काञ्चनवच्छये नमः॥

ॐ नाभये नमः॥

ॐ नन्दिकराय नमः॥

ॐ भावाय नमः॥

ॐ पुष्करथपतये नमः॥

ॐ स्थिराय नमः॥

ॐ द्वादशाय नमः॥

ॐ त्रासनाय नमः॥

ॐ आद्याय नमः॥

ॐ यज्ञाय नमः॥

ॐ यज्ञसमाहिताय नमः॥

ॐ नक्तंस्वरूपाय नमः॥

ॐ कलये नमः॥

ॐ कालाय नमः॥

ॐ मकराय नमः॥

ॐ कालपूजिताय नमः॥

ॐ सगणाय नमः॥

ॐ गणकराय नमः॥

ॐ भूतवाहनसारथये नमः॥

ॐ भस्मशयाय नमः॥

ॐ भस्मगोप्त्रे नमः॥

ॐ भस्मभूताय नमः॥

ॐ तरवे नमः॥

ॐ गणाय नमः॥

ॐ लोकपालाय नमः॥

ॐ आलोकाय नमः॥

ॐ महात्मने नमः॥

ॐ सर्वपूजिताय नमः॥

ॐ शुक्लाय नमः॥

ॐ त्रिशुक्लाय नमः॥

ॐ संपन्नाय नमः॥

ॐ शुचये नमः॥ (550)

ॐ भूतनिशेविताय नमः॥

ॐ आश्रमस्थाय नमः॥

ॐ क्रियावस्थाय नमः॥

ॐ विश्वकर्ममतये नमः॥

ॐ वराय नमः॥

ॐ विशालशाखाय नमः॥

ॐ ताम्रोष्ठाय नमः॥

ॐ अम्बुजालाय नमः॥

ॐ सुनिश्चलाय नमः॥

ॐ कपिलाय नमः॥

ॐ कपिशाय नमः॥

ॐ शुक्लाय नमः॥

ॐ आयुषे नमः॥

ॐ पराय नमः॥

ॐ अपराय नमः॥

ॐ गंधर्वाय नमः॥

ॐ अदितये नमः॥

ॐ ताक्ष्याय नमः॥

ॐ सुविज्ञेयाय नमः॥

ॐ सुशारदाय नमः॥

ॐ परश्वधायुधाय नमः॥

ॐ देवाय नमः॥

ॐ अनुकारिणे नमः॥

ॐ सुबान्धवाय नमः॥

ॐ तुम्बवीणाय नमः॥

ॐ महाक्रोधाय नमः॥

ॐ ऊर्ध्वरेतसे नमः॥

ॐ जलेशयाय नमः॥

ॐ उग्राय नमः॥

ॐ वंशकराय नमः॥

ॐ वंशाय नमः॥

ॐ वंशानादाय नमः॥

ॐ अनिन्दिताय नमः॥

ॐ सर्वांगरूपाय नमः॥

ॐ मायाविने नमः॥

ॐ सुहृदे नमः॥

ॐ अनिलाय नमः॥

ॐ अनलाय नमः॥

ॐ बन्धनाय नमः॥

ॐ बन्धकर्त्रे नमः॥

ॐ सुवन्धनविमोचनाय नमः॥

ॐ सयज्ञयारये नमः॥

ॐ सकामारये नमः॥

ॐ महाद्रष्टाय नमः॥

ॐ महायुधाय नमः॥

ॐ बहुधानिन्दिताय नमः॥

ॐ शर्वाय नमः॥

ॐ शंकराय नमः॥

ॐ शं कराय नमः॥

ॐ अधनाय नमः॥ (600) 

ॐ अमरेशाय नमः॥

ॐ महादेवाय नमः॥

ॐ विश्वदेवाय नमः॥

ॐ सुरारिघ्ने नमः॥

ॐ अहिर्बुद्धिन्याय नमः॥

  ॐ अनिलाभाय नमः॥

ॐ चेकितानाय नमः॥

ॐ हविषे नमः॥

ॐ अजैकपादे नमः॥

ॐ कापालिने नमः॥

ॐ त्रिशंकवे नमः॥

ॐ अजिताय नमः॥

ॐ शिवाय नमः॥

ॐ धन्वन्तरये नमः॥

ॐ धूमकेतवे नमः॥

ॐ स्कन्दाय नमः॥

ॐ वैश्रवणाय नमः॥

ॐ धात्रे नमः॥

ॐ शक्राय नमः॥

ॐ विष्णवे नमः॥

ॐ मित्राय नमः॥

ॐ त्वष्ट्रे नमः॥

ॐ ध्रुवाय नमः॥

ॐ धराय नमः॥

ॐ प्रभावाय नमः॥

ॐ सर्वगोवायवे नमः॥

ॐ अर्यम्णे नमः॥

ॐ सवित्रे नमः॥

ॐ रवये नमः॥

ॐ उषंगवे नमः॥

ॐ विधात्रे नमः॥

ॐ मानधात्रे नमः॥

ॐ भूतवाहनाय नमः॥

ॐ विभवे नमः॥

ॐ वर्णविभाविने नमः॥

ॐ सर्वकामगुणवाहनाय नमः॥

ॐ पद्मनाभाय नमः॥

ॐ महागर्भाय नमः॥

चन्द्रवक्त्राय नमः॥

ॐ अनिलाय नमः॥

ॐ अनलाय नमः॥

ॐ बलवते नमः॥

ॐ उपशान्ताय नमः॥

ॐ पुराणाय नमः॥

ॐ पुण्यचञ्चवे नमः॥

ॐ ईरूपाय नमः॥

ॐ कुरूकर्त्रे नमः॥

ॐ कुरूवासिने नमः॥

ॐ कुरूभूताय नमः॥

ॐ गुणौषधाय नमः॥ (650) 

ॐ सर्वाशयाय नमः॥

ॐ दर्भचारिणे नमः॥

ॐ सर्वप्राणिपतये नमः॥

ॐ देवदेवाय नमः॥

ॐ सुखासक्ताय नमः॥

ॐ सत स्वरूपाय नमः॥

ॐ असत् रूपाय नमः॥

ॐ सर्वरत्नविदे नमः॥

ॐ कैलाशगिरिवासने नमः॥

ॐ हिमवद्गिरिसंश्रयाय नमः॥

ॐ कूलहारिणे नमः॥

ॐ कुलकर्त्रे नमः॥

ॐ बहुविद्याय नमः॥

ॐ बहुप्रदाय नमः॥

ॐ वणिजाय नमः॥

ॐ वर्धकिने नमः॥

ॐ वृक्षाय नमः॥

ॐ बकुलाय नमः॥

ॐ चंदनाय नमः॥

ॐ छदाय नमः॥

ॐ सारग्रीवाय नमः॥

ॐ महाजत्रवे नमः॥

ॐ अलोलाय नमः॥

ॐ महौषधाय नमः॥

ॐ सिद्धार्थकारिणे नमः॥

ॐ छन्दोव्याकरणोत्तर-सिद्धार्थाय नमः॥

ॐ सिंहनादाय नमः॥

ॐ सिंहद्रंष्टाय नमः॥

ॐ सिंहगाय नमः॥

ॐ सिंहवाहनाय नमः॥

ॐ प्रभावात्मने नमः॥

ॐ जगतकालस्थालाय नमः॥

ॐ लोकहिताय नमः॥

ॐ तरवे नमः॥

ॐ सारंगाय नमः॥

ॐ नवचक्रांगाय नमः॥

ॐ केतुमालिने नमः॥

ॐ सभावनाय नमः॥

ॐ भूतालयाय नमः॥

ॐ भूतपतये नमः॥

ॐ अहोरात्राय नमः॥

ॐ अनिन्दिताय नमः॥

ॐ सर्वभूतवाहित्रे नमः॥

ॐ सर्वभूतनिलयाय नमः॥

ॐ विभवे नमः॥

ॐ भवाय नमः॥

ॐ अमोघाय नमः॥

ॐ संयताय नमः॥

ॐ अश्वाय नमः॥

ॐ भोजनाय नमः॥(700)

ॐ प्राणधारणाय नमः॥

ॐ धृतिमते नमः॥

ॐ मतिमते नमः॥

ॐ दक्षाय नमः॥

ॐ सत्कृयाय नमः॥

ॐ युगाधिपाय नमः॥

ॐ गोपाल्यै नमः॥

ॐ गोपतये नमः॥

ॐ ग्रामाय नमः॥

ॐ गोचर्मवसनाय नमः॥

ॐ हरये नमः॥

ॐ हिरण्यबाहवे नमः॥

ॐ प्रवेशिनांगुहापालाय नमः॥

ॐ प्रकृष्टारये नमः॥

ॐ महाहर्षाय नमः॥

ॐ जितकामाय नमः॥

ॐ जितेन्द्रियाय नमः॥

ॐ गांधाराय नमः॥

ॐ सुवासाय नमः॥

ॐ तपः॥सक्ताय नमः॥

ॐ रतये नमः॥

ॐ नराय नमः॥

ॐ महागीताय नमः॥

ॐ महानृत्याय नमः॥

ॐ अप्सरोगणसेविताय नमः॥

ॐ महाकेतवे नमः॥

ॐ महाधातवे नमः॥

ॐ नैकसानुचराय नमः॥

ॐ चलाय नमः॥

ॐ आवेदनीयाय नमः॥

ॐ आदेशाय नमः॥

ॐ सर्वगंधसुखावहाय नमः॥

ॐ तोरणाय नमः॥

ॐ तारणाय नमः॥

ॐ वाताय नमः॥

ॐ परिधये नमः॥

ॐ पतिखेचराय नमः॥

ॐ संयोगवर्धनाय नमः॥

ॐ वृद्धाय नमः॥

ॐ गुणाधिकाय नमः॥

ॐ अतिवृद्धाय नमः॥

ॐ नित्यात्मसहायाय नमः॥

ॐ देवासुरपतये नमः॥

ॐ पत्ये नमः॥

ॐ युक्ताय नमः॥

ॐ युक्तबाहवे नमः॥

ॐ दिविसुपर्वदेवाय नमः॥

ॐ आषाढाय नमः॥

ॐ सुषाढ़ाय नमः॥

ॐ ध्रुवाय नमः॥ (750)

ॐ हरिणाय नमः॥

ॐ हराय नमः॥

ॐ आवर्तमानवपुषे नमः॥

ॐ वसुश्रेष्ठाय नमः॥

ॐ महापथाय नमः॥

ॐ विमर्षशिरोहारिणे नमः॥

ॐ सर्वलक्षणलक्षिताय नमः॥

ॐ अक्षरथयोगिने नमः॥

ॐ सर्वयोगिने नमः॥

ॐ महाबलाय नमः॥

ॐ समाम्नायाय नमः॥

ॐ असाम्नायाय नमः॥

ॐ तीर्थदेवाय नमः॥

ॐ महारथाय नमः॥

ॐ निर्जीवाय नमः॥

ॐ जीवनाय नमः॥

ॐ मंत्राय नमः॥

ॐ शुभाक्षाय नमः॥

ॐ बहुकर्कशाय नमः॥

ॐ रत्नप्रभूताय नमः॥

ॐ रत्नांगाय नमः॥

ॐ महार्णवनिपानविदे नमः॥

ॐ मूलाय नमः॥

ॐ विशालाय नमः॥

ॐ अमृताय नमः॥

ॐ व्यक्ताव्यवक्ताय नमः॥

ॐ तपोनिधये नमः॥

ॐ आरोहणाय नमः॥

ॐ अधिरोहाय नमः॥

ॐ शीलधारिणे नमः॥

ॐ महायशसे नमः॥

ॐ सेनाकल्पाय नमः॥

ॐ महाकल्पाय नमः॥

ॐ योगाय नमः॥

ॐ युगकराय नमः॥

ॐ हरये नमः॥

ॐ युगरूपाय नमः॥

ॐ महारूपाय नमः॥

ॐ महानागहतकाय नमः॥

ॐ अवधाय नमः॥

ॐ न्यायनिर्वपणाय नमः॥

ॐ पादाय नमः॥

ॐ पण्डिताय नमः॥

ॐ अचलोपमाय नमः॥

ॐ बहुमालाय नमः॥

ॐ महामालाय नमः॥

ॐ शशिहरसुलोचनाय नमः॥

ॐ विस्तारलवणकूपाय नमः॥

ॐ त्रिगुणाय नमः॥

ॐ सफलोदयाय नमः॥ (800)

ॐ त्रिलोचनाय नमः॥

ॐ विषण्डागाय नमः॥

ॐ मणिविद्धाय नमः॥

ॐ जटाधराय नमः॥

ॐ बिन्दवे नमः॥

ॐ विसर्गाय नमः॥

ॐ सुमुखाय नमः॥

ॐ शराय नमः॥

ॐ सर्वायुधाय नमः॥

ॐ सहाय नमः॥

 ॐ सहाय नमः॥

ॐ निवेदनाय नमः॥

ॐ सुखाजाताय नमः॥

ॐ सुगन्धराय नमः॥

ॐ महाधनुषे नमः॥

ॐ गंधपालिभगवते नमः॥

ॐ सर्वकर्मोत्थानाय नमः॥

ॐ मन्थानबहुलवायवे नमः॥

ॐ सकलाय नमः॥

ॐ सर्वलोचनाय नमः॥

ॐ तलस्तालाय नमः॥

ॐ करस्थालिने नमः॥

ॐ ऊर्ध्वसंहननाय नमः॥

ॐ महते नमः॥

ॐ छात्राय नमः॥

ॐ सुच्छत्राय नमः॥

ॐ विख्यातलोकाय नमः॥

ॐ सर्वाश्रयक्रमाय नमः॥

ॐ मुण्डाय नमः॥

ॐ विरूपाय नमः॥

ॐ विकृताय नमः॥

ॐ दण्डिने नमः॥

ॐ कुदण्डिने नमः॥

ॐ विकुर्वणाय नमः॥

ॐ हर्यक्षाय नमः॥

ॐ ककुभाय नमः॥

ॐ वज्रिणे नमः॥

ॐ शतजिह्वाय नमः॥

ॐ सहस्रपदे नमः॥

ॐ देवेन्द्राय नमः॥

ॐ सर्वदेवमयाय नमः॥

ॐ गुरवे नमः॥

ॐ सहस्रबाहवे नमः॥

ॐ सर्वांगाय नमः॥

ॐ शरण्याय नमः॥

ॐ सर्वलोककृते नमः॥

ॐ पवित्राय नमः॥

ॐ त्रिककुन्मंत्राय नमः॥

ॐ कनिष्ठाय नमः॥

ॐ कृष्णपिंगलाय नमः॥ (850)

ॐ ब्रह्मदण्डविनिर्मात्रे नमः॥

ॐ शतघ्नीपाशशक्तिमते नमः॥

ॐ पद्मगर्भाय नमः॥

ॐ महागर्भाय नमः॥

ॐ ब्रह्मगर्भाय नमः॥

ॐ जलोद्भावाय नमः॥

ॐ गभस्तये नमः॥

ॐ ब्रह्मकृते नमः॥

ॐ ब्रह्मिणे नमः॥

ॐ ब्रह्मविदे नमः॥

ॐ ब्राह्मणाय नमः॥

ॐ गतये नमः॥

ॐ अनंतरूपाय नमः॥

ॐ नैकात्मने नमः॥

ॐ स्वयंभुवतिग्मतेजसे नमः॥

ॐ उर्ध्वगात्मने नमः॥

ॐ पशुपतये नमः॥

ॐ वातरंहसे नमः॥

ॐ मनोजवाय नमः॥

ॐ चंदनिने नमः॥

ॐ पद्मनालाग्राय नमः॥

ॐ सुरभ्युत्तारणाय नमः॥

ॐ नराय नमः॥

ॐ कर्णिकारमहास्रग्विणमे नमः॥

ॐ नीलमौलये नमः॥

ॐ पिनाकधृषे नमः॥

ॐ उमापतये नमः॥

ॐ उमाकान्ताय नमः॥

ॐ जाह्नवीधृषे नमः॥

ॐ उमादवाय नमः॥

ॐ वरवराहाय नमः॥

ॐ वरदाय नमः॥

ॐ वरेण्याय नमः॥

ॐ सुमहास्वनाय नमः॥

ॐ महाप्रसादाय नमः॥

ॐ दमनाय नमः॥

ॐ शत्रुघ्ने नमः॥

ॐ श्वेतपिंगलाय नमः॥

ॐ पीतात्मने नमः॥

ॐ परमात्मने नमः॥

ॐ प्रयतात्मने नमः॥

ॐ प्रधानधृषे नमः॥

ॐ सर्वपार्श्वमुखाय नमः॥

ॐ त्रक्षाय नमः॥

ॐ धर्मसाधारणवराय नमः॥

ॐ चराचरात्मने नमः॥

ॐ सूक्ष्मात्मने नमः॥

ॐ अमृतगोवृषेश्वराय नमः॥

ॐ साध्यर्षये नमः॥

ॐ आदित्यवसवे नमः॥ (900)

ॐ विवस्वत्सवित्रमृताय नमः॥

ॐ व्यासाय नमः॥

ॐ सर्गसुसंक्षेपविस्तराय नमः॥

ॐ पर्ययोनराय नमः॥

ॐ ऋतवे नमः॥

ॐ संवत्सराय नमः॥

ॐ मासाय नमः॥

ॐ पक्षाय नमः॥

ॐ संख्यासमापनाय नमः॥

ॐ कलायै नमः॥

ॐ काष्ठायै नमः॥

ॐ लवेभ्यो नमः॥

ॐ मात्रेभ्यो नमः॥

ॐ मुहूर्ताहः॥क्षपाभ्यो नमः॥

ॐ क्षणेभ्यो नमः॥

ॐ विश्वक्षेत्राय नमः॥

ॐ प्रजाबीजाय नमः॥

ॐ लिंगाय नमः॥

ॐ आद्यनिर्गमाय नमः॥

ॐ सत् स्वरूपाय नमः॥

ॐ असत् रूपाय नमः॥

ॐ व्यक्ताय नमः॥

ॐ अव्यक्ताय नमः॥

ॐ पित्रे नमः॥

ॐ मात्रे नमः॥

ॐ पितामहाय नमः॥

ॐ स्वर्गद्वाराय नमः॥

ॐ प्रजाद्वाराय नमः॥

ॐ मोक्षद्वाराय नमः॥

ॐ त्रिविष्टपाय नमः॥

ॐ निर्वाणाय नमः॥

ॐ ह्लादनाय नमः॥

ॐ ब्रह्मलोकाय नमः॥

ॐ परागतये नमः॥

ॐ देवासुरविनिर्मात्रे नमः॥

ॐ देवासुरपरायणाय नमः॥

ॐ देवासुरगुरूवे नमः॥

ॐ देवाय नमः॥

ॐ देवासुरनमस्कृताय नमः॥

ॐ देवासुरमहामात्राय नमः॥

ॐ देवासुरमहामात्राय नमः॥

ॐ देवासुरगणाश्रयाय नमः॥

ॐ देवासुरगणाध्यक्षाय नमः॥

ॐ देवासुरगणाग्रण्ये नमः॥

ॐ देवातिदेवाय नमः॥

ॐ देवर्षये नमः॥

ॐ देवासुरवरप्रदाय नमः॥

ॐ विश्वाय नमः॥

ॐ देवासुरमहेश्वराय नमः॥

ॐ सर्वदेवमयाय नमः॥(950)

ॐ अचिंत्याय नमः॥

ॐ देवात्मने नमः॥

ॐ आत्मसंबवाय नमः॥

ॐ उद्भिदे नमः॥

ॐ त्रिविक्रमाय नमः॥

ॐ वैद्याय नमः॥

ॐ विरजाय नमः॥

ॐ नीरजाय नमः॥

ॐ अमराय नमः॥

ॐ इड्याय नमः॥

ॐ हस्तीश्वराय नमः॥

ॐ व्याघ्राय नमः॥

ॐ देवसिंहाय नमः॥

ॐ नरर्षभाय नमः॥

ॐ विभुदाय नमः॥

ॐ अग्रवराय नमः॥

ॐ सूक्ष्माय नमः॥

ॐ सर्वदेवाय नमः॥

ॐ तपोमयाय नमः॥

ॐ सुयुक्ताय नमः॥

ॐ शोभनाय नमः॥

ॐ वज्रिणे नमः॥

ॐ प्रासानाम्प्रभवाय नमः॥

ॐ अव्ययाय नमः॥

ॐ गुहाय नमः॥

ॐ कान्ताय नमः॥

ॐ निजसर्गाय नमः॥

ॐ पवित्राय नमः॥

ॐ सर्वपावनाय नमः॥

ॐ श्रृंगिणे नमः॥

ॐ श्रृंगप्रियाय नमः॥

ॐ बभ्रवे नमः॥

ॐ राजराजाय नमः॥

ॐ निरामयाय नमः॥

ॐ अभिरामाय नमः॥

ॐ सुरगणाय नमः॥

ॐ विरामाय नमः॥

ॐ सर्वसाधनाय नमः॥

ॐ ललाटाक्षाय नमः॥

ॐ विश्वदेवाय नमः॥

ॐ हरिणाय नमः॥

ॐ ब्रह्मवर्चसे नमः॥

ॐ स्थावरपतये नमः॥

ॐ नियमेन्द्रियवर्धनाय नमः॥

ॐ सिद्धार्थाय नमः॥

ॐ सिद्धभूतार्थाय नमः॥

ॐ अचिन्ताय नमः॥

ॐ सत्यव्रताय नमः॥

ॐ शुचये नमः॥

ॐ व्रताधिपाय नमः॥

ॐ पराय नमः॥

ॐ ब्रह्मणे नमः॥

ॐ भक्तानांपरमागतये नमः॥

ॐ विमुक्ताय नमः॥

ॐ मुक्ततेजसे नमः॥

ॐ श्रीमते नमः॥

ॐ श्रीवर्धनाय नमः॥

ॐ श्री जगते नमः॥ (1000

ॐ पूर्णमदः॥ पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।

ॐ शांतिः॥ शांतिः॥ शांतिः॥

शिवसहस्रनाम स्तोत्रम्
॥ शिव सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥

ॐ स्थिरः स्थाणुः प्रभुर्भीमः प्रवरो वरदो वरः ।
सर्वात्मा सर्वविख्यातः सर्वः सर्वकरो भवः ॥ १॥
जटी चर्मी शिखण्डी च सर्वांगः सर्वभावनः ।
हरश्च हरिणाक्षश्च सर्वभूतहरः प्रभुः ॥ २॥
प्रवृत्तिश्च निवृत्तिश्च नियतः शाश्वतो ध्रुवः ।
श्मशानवासी भगवान् खचरो गोचरोऽर्दनः ॥ ३॥
अभिवाद्यो महाकर्मा तपस्वी भूतभावनः ।
उन्मत्तवेषप्रच्छन्नः सर्वलोकप्रजापतिः ॥ ४॥
महारूपो महाकायो वृषरूपो महायशाः ।
महात्मा सर्वभूतात्मा विश्वरूपो महाहनुः ॥ ५॥
लोकपालोऽन्तर्हितात्मा प्रसादो हयगर्दभिः ।
पवित्रं च महांश्चैव नियमो नियमाश्रितः ॥ ६॥
सर्वकर्मा स्वयंभूत आदिरादिकरो निधिः ।
सहस्राक्षो विशालाक्षः सोमो नक्षत्रसाधकः ॥ ७॥
चन्द्रः सूर्यः शनिः केतुर्ग्रहो ग्रहपतिर्वरः ।
अत्रिरत्र्यानमस्कर्ता मृगबाणार्पणोऽनघः ॥ ८॥
महातपा घोरतपा अदीनो दीनसाधकः ।
संवत्सरकरो मन्त्रः प्रमाणं परमं तपः ॥ ९॥
योगी योज्यो महाबीजो महारेता महाबलः ।
सुवर्णरेताः सर्वज्ञः सुबीजो बीजवाहनः ॥ १०॥
दशबाहुस्त्वनिमिषो नीलकण्ठ उमापतिः ।
विश्वरूपः स्वयंश्रेष्ठो बलवीरोऽबलो गणः ॥ ११॥
गणकर्ता गणपतिर्दिग्वासाः काम एव च ।
मन्त्रवित्परमोमन्त्रः सर्वभावकरो हरः ॥ १२॥
कमण्डलुधरो धन्वी बाणहस्तः कपालवान् ।
अशनी शतघ्नी खड्गी पट्टिशी चायुधी महान् ॥ १३॥
स्रुवहस्तः सुरूपश्च तेजस्तेजस्करो निधिः ।
उष्णिषी च सुवक्त्रश्च उदग्रो विनतस्तथा ॥ १४॥
दीर्घश्च हरिकेशश्च सुतीर्थः कृष्ण एव च ।
सृगालरूपः सिद्धार्थो मुण्डः सर्वशुभंकरः ॥ १५॥
अजश्च बहुरूपश्च गन्धधारी कपर्द्यपि ।
ऊर्ध्वरेता ऊर्ध्वलिंग ऊर्ध्वशायी नभःस्थलः ॥ १६॥
त्रिजटी चीरवासाश्च रुद्रः सेनापतिर्विभुः ।
अहश्चरोनक्तंचरस्तिग्ममन्युः सुवर्चसः ॥ १७॥
गजहा दैत्यहा कालो लोकधाता गुणाकरः ।
सिंहशार्दूलरूपश्च आर्द्रचर्माम्बरावृतः ॥ १८॥
कालयोगी महानादः सर्वकामश्चतुष्पथः ।
निशाचरः प्रेतचारी भूतचारी महेश्वरः ॥ १९॥
बहुभूतो बहुधरः स्वर्भानुरमितो गतिः ।
नृत्यप्रियो नित्यनर्तो नर्तकः सर्वलालसः ॥ २०॥
घोरो महातपाः पाशो नित्यो गिरिरुहो नभः ।
सहस्रहस्तो विजयो व्यवसायो ह्यतन्द्रितः ॥ २१॥
अधर्षणो धर्षणात्मा यज्ञहा कामनाशकः ।
दक्षयागापहारी च सुसहो मध्यमस्तथा ॥ २२॥
तेजोपहारी बलहा मुदितोऽर्थोऽजितो वरः ।
गम्भीरघोषो गम्भीरो गम्भीरबलवाहनः ॥ २३॥
न्यग्रोधरूपो न्यग्रोधो वृक्षकर्णस्थितिर्विभुः ।
सुतीक्ष्णदशनश्चैव महाकायो महाननः ॥ २४॥
विष्वक्सेनो हरिर्यज्ञः संयुगापीडवाहनः ।
तीक्ष्णतापश्च हर्यश्वः सहायः कर्मकालवित् ॥ २५॥
विष्णुप्रसादितो यज्ञः समुद्रो बडवामुखः ।
हुताशनसहायश्च प्रशान्तात्मा हुताशनः ॥ २६॥
उग्रतेजा महातेजा जन्यो विजयकालवित् ।
ज्योतिषामयनं सिद्धिः सर्वविग्रह एव च ॥ २७॥
शिखी मुण्डी जटी ज्वाली मूर्तिजो मूर्धगो बली ।
वैणवी पणवी ताली खली कालकटंकटः ॥ २८॥
नक्षत्रविग्रहमतिर्गुणबुद्धिर्लयोऽगमः ।
प्रजापतिर्विश्वबाहुर्विभागः सर्वगोऽमुखः ॥ २९॥
विमोचनः सुसरणो हिरण्यकवचोद्भवः ।
मेढ्रजो बलचारी च महीचारी स्रुतस्तथा ॥ ३०॥
सर्वतूर्यविनोदी च सर्वातोद्यपरिग्रहः ।
व्यालरूपो गुहावासी गुहो माली तरंगवित् ॥ ३१॥
त्रिदशस्त्रिकालधृक्कर्मसर्वबन्धविमोचनः ।
बन्धनस्त्वसुरेन्द्राणां युधिशत्रुविनाशनः ॥ ३२॥
सांख्यप्रसादो दुर्वासाः सर्वसाधुनिषेवितः ।
प्रस्कन्दनो विभागज्ञो अतुल्यो यज्ञभागवित् ॥ ३३॥
सर्ववासः सर्वचारी दुर्वासा वासवोऽमरः ।
हैमो हेमकरो यज्ञः सर्वधारी धरोत्तमः ॥ ३४॥
लोहिताक्षो महाक्षश्च विजयाक्षो विशारदः ।
संग्रहो निग्रहः कर्ता सर्पचीरनिवासनः ॥ ३५॥
मुख्योऽमुख्यश्च देहश्च काहलिः सर्वकामदः ।
सर्वकालप्रसादश्च सुबलो बलरूपधृत् ॥ ३६॥
सर्वकामवरश्चैव सर्वदः सर्वतोमुखः ।
आकाशनिर्विरूपश्च निपाती ह्यवशः खगः ॥ ३७॥
रौद्ररूपोंऽशुरादित्यो बहुरश्मिः सुवर्चसी ।
वसुवेगो महावेगो मनोवेगो निशाचरः ॥ ३८॥
सर्ववासी श्रियावासी उपदेशकरोऽकरः ।
मुनिरात्मनिरालोकः संभग्नश्च सहस्रदः ॥ ३९॥
पक्षी च पक्षरूपश्च अतिदीप्तो विशाम्पतिः ।
उन्मादो मदनः कामो ह्यश्वत्थोऽर्थकरो यशः ॥ ४०॥
वामदेवश्च वामश्च प्राग्दक्षिणश्च वामनः ।
सिद्धयोगी महर्षिश्च सिद्धार्थः सिद्धसाधकः ॥ ४१॥
भिक्षुश्च भिक्षुरूपश्च विपणो मृदुरव्ययः ।
महासेनो विशाखश्च षष्ठिभागो गवांपतिः ॥ ४२॥
वज्रहस्तश्च विष्कम्भी चमूस्तम्भन एव च ।
वृत्तावृत्तकरस्तालो मधुर्मधुकलोचनः ॥ ४३॥
वाचस्पत्यो वाजसनो नित्यमाश्रितपूजितः ।
ब्रह्मचारी लोकचारी सर्वचारी विचारवित् ॥ ४४॥
ईशान ईश्वरः कालो निशाचारी पिनाकवान् ।
निमित्तस्थो निमित्तं च नन्दिर्नन्दिकरो हरिः ॥ ४५॥
नन्दीश्वरश्च नन्दी च नन्दनो नन्दिवर्धनः ।
भगहारी निहन्ता च कालो ब्रह्मा पितामहः ॥ ४६॥
चतुर्मुखो महालिंगश्चारुलिंगस्तथैव च ।
लिंगाध्यक्षः सुराध्यक्षो योगाध्यक्षो युगावहः ॥ ४७॥
बीजाध्यक्षो बीजकर्ता अध्यात्माऽनुगतो बलः ।
इतिहासः सकल्पश्च गौतमोऽथ निशाकरः ॥ ४८॥
दम्भो ह्यदम्भो वैदम्भो वश्यो वशकरः कलिः ।
लोककर्ता पशुपतिर्महाकर्ता ह्यनौषधः ॥ ४९॥
अक्षरं परमं ब्रह्म बलवच्चक्र एव च ।
नीतिर्ह्यनीतिः शुद्धात्मा शुद्धो मान्यो गतागतः ॥ ५०॥
बहुप्रसादः सुस्वप्नो दर्पणोऽथ त्वमित्रजित् ।
वेदकारो मन्त्रकारो विद्वान् समरमर्दनः ॥ ५१॥
महामेघनिवासी च महाघोरो वशीकरः ।
अग्निज्वालो महाज्वालो अतिधूम्रो हुतो हविः ॥ ५२॥
वृषणः शंकरो नित्यंवर्चस्वी धूमकेतनः ।
नीलस्तथांगलुब्धश्च शोभनो निरवग्रहः ॥ ५३॥
स्वस्तिदः स्वस्तिभावश्च भागी भागकरो लघुः ।
उत्संगश्च महांगश्च महागर्भपरायणः ॥ ५४॥
कृष्णवर्णः सुवर्णश्च इन्द्रियं सर्वदेहिनाम् ।
महापादो महाहस्तो महाकायो महायशाः ॥ ५५॥
महामूर्धा महामात्रो महानेत्रो निशालयः ।
महान्तको महाकर्णो महोष्ठश्च महाहनुः ॥ ५६॥
महानासो महाकम्बुर्महाग्रीवः श्मशानभाक् ।
महावक्षा महोरस्को ह्यन्तरात्मा मृगालयः ॥ ५७॥
लम्बनो लम्बितोष्ठश्च महामायः पयोनिधिः ।
महादन्तो महादंष्ट्रो महाजिह्वो महामुखः ॥ ५८॥
महानखो महारोमो महाकोशो महाजटः ।
प्रसन्नश्च प्रसादश्च प्रत्ययो गिरिसाधनः ॥ ५९॥
स्नेहनोऽस्नेहनश्चैव अजितश्च महामुनिः ।
वृक्षाकारो वृक्षकेतुरनलो वायुवाहनः ॥ ६०॥
गण्डली मेरुधामा च देवाधिपतिरेव च ।
अथर्वशीर्षः सामास्य ऋक्सहस्रामितेक्षणः ॥ ६१॥
यजुः पादभुजो गुह्यः प्रकाशो जंगमस्तथा ।
अमोघार्थः प्रसादश्च अभिगम्यः सुदर्शनः ॥ ६२॥
उपकारः प्रियः सर्वः कनकः कांचनच्छविः ।
नाभिर्नन्दिकरो भावः पुष्करः स्थपतिः स्थिरः ॥ ६३॥
द्वादशस्त्रासनश्चाद्यो यज्ञो यज्ञसमाहितः ।
नक्तं कलिश्च कालश्च मकरः कालपूजितः ॥ ६४॥
सगणो गणकारश्च भूतवाहनसारथिः ।
भस्मशयो भस्मगोप्ता भस्मभूतस्तरुर्गणः ॥ ६५॥
लोकपालस्तथा लोको महात्मा सर्वपूजितः ।
शुक्लस्त्रिशुक्लः संपन्नः शुचिर्भूतनिषेवितः ॥ ६६॥
आश्रमस्थः क्रियावस्थो विश्वकर्ममतिर्वरः ।
विशालशाखस्ताम्रोष्ठो ह्यम्बुजालः सुनिश्चलः ॥ ६७॥
कपिलः कपिशः शुक्ल आयुश्चैव परोऽपरः ।
गन्धर्वो ह्यदितिस्तार्क्ष्यः सुविज्ञेयः सुशारदः ॥ ६८॥
परश्वधायुधो देव अनुकारी सुबान्धवः ।
तुम्बवीणो महाक्रोध ऊर्ध्वरेता जलेशयः ॥ ६९॥
उग्रो वंशकरो वंशो वंशनादो ह्यनिन्दितः ।
सर्वांगरूपो मायावी सुहृदो ह्यनिलोऽनलः ॥ ७०॥
बन्धनो बन्धकर्ता च सुबन्धनविमोचनः ।
सयज्ञारिः सकामारिर्महादंष्ट्रो महायुधः ॥ ७१॥
बहुधा निन्दितः शर्वः शंकरः शंकरोऽधनः ।
अमरेशो महादेवो विश्वदेवः सुरारिहा ॥ ७२॥
अहिर्बुध्न्योऽनिलाभश्च चेकितानो हविस्तथा ।
अजैकपाच्च कापाली त्रिशंकुरजितः शिवः ॥ ७३॥
धन्वन्तरिर्धूमकेतुः स्कन्दो वैश्रवणस्तथा ।
धाता शक्रश्च विष्णुश्च मित्रस्त्वष्टा ध्रुवो धरः ॥ ७४॥
प्रभावः सर्वगो वायुरर्यमा सविता रविः ।
उषंगुश्च विधाता च मान्धाता भूतभावनः ॥ ७५॥
विभुर्वर्णविभावी च सर्वकामगुणावहः ।
पद्मनाभो महागर्भश्चन्द्रवक्त्रोऽनिलोऽनलः ॥ ७६॥
बलवांश्चोपशान्तश्च पुराणः पुण्यचंचुरी ।
कुरुकर्ता कुरुवासी कुरुभूतो गुणौषधः ॥ ७७॥
सर्वाशयो दर्भचारी सर्वेषां प्राणिनांपतिः ।
देवदेवः सुखासक्तः सदसत् सर्वरत्नवित् ॥ ७८॥
कैलासगिरिवासी च हिमवद्गिरिसंश्रयः ।
कूलहारी कूलकर्ता बहुविद्यो बहुप्रदः ॥ ७९॥
वणिजो वर्धकी वृक्षो वकुलश्चन्दनश्छदः ।
सारग्रीवो महाजत्रु रलोलश्च महौषधः ॥ ८०॥
सिद्धार्थकारी सिद्धार्थश्छन्दोव्याकरणोत्तरः ।
सिंहनादः सिंहदंष्ट्रः सिंहगः सिंहवाहनः ॥ ८१॥
प्रभावात्मा जगत्कालस्थालो लोकहितस्तरुः ।
सारंगो नवचक्रांगः केतुमाली सभावनः ॥ ८२॥
भूतालयो भूतपतिरहोरात्रमनिन्दितः ॥ ८३॥
वाहिता सर्वभूतानां निलयश्च विभुर्भवः ।
अमोघः संयतो ह्यश्वो भोजनः प्राणधारणः ॥ ८४॥
धृतिमान् मतिमान् दक्षः सत्कृतश्च युगाधिपः ।
गोपालिर्गोपतिर्ग्रामो गोचर्मवसनो हरिः ॥ ८५॥
हिरण्यबाहुश्च तथा गुहापालः प्रवेशिनाम् ।
प्रकृष्टारिर्महाहर्षो जितकामो जितेन्द्रियः ॥ ८६॥
गान्धारश्च सुवासश्च तपःसक्तो रतिर्नरः ।
महागीतो महानृत्यो ह्यप्सरोगणसेवितः ॥ ८७॥
महाकेतुर्महाधातुर्नैकसानुचरश्चलः ।
आवेदनीय आदेशः सर्वगन्धसुखावहः ॥ ८८॥
तोरणस्तारणो वातः परिधी पतिखेचरः ।
संयोगो वर्धनो वृद्धो अतिवृद्धो गुणाधिकः ॥ ८९॥
नित्यमात्मसहायश्च देवासुरपतिः पतिः ।
युक्तश्च युक्तबाहुश्च देवो दिवि सुपर्वणः ॥ ९०॥
आषाढश्च सुषाढश्च ध्रुवोऽथ हरिणो हरः ।
वपुरावर्तमानेभ्यो वसुश्रेष्ठो महापथः ॥ ९१॥
शिरोहारी विमर्शश्च सर्वलक्षणलक्षितः ।
अक्षश्च रथयोगी च सर्वयोगी महाबलः ॥ ९२॥
समाम्नायोऽसमाम्नायस्तीर्थदेवो महारथः ।
निर्जीवो जीवनो मन्त्रः शुभाक्षो बहुकर्कशः ॥ ९३॥
रत्नप्रभूतो रक्ताङ्गो महार्णवनिपानवित् ।
मूलं विशालो ह्यमृतो व्यक्ताव्यक्तस्तपोनिधिः ॥ ९४॥
आरोहणोऽधिरोहश्च शीलधारी महायशाः ।
सेनाकल्पो महाकल्पो योगो युगकरो हरिः ॥ ९५॥
युगरूपो महारूपो महानागहनो वधः ।
न्यायनिर्वपणः पादः पण्डितो ह्यचलोपमः ॥ ९६॥
बहुमालो महामालः शशी हरसुलोचनः ।
विस्तारो लवणः कूपस्त्रियुगः सफलोदयः ॥ ९७॥
त्रिलोचनो विषण्णांगो मणिविद्धो जटाधरः ।
बिन्दुर्विसर्गः सुमुखः शरः सर्वायुधः सहः ॥ ९८॥
निवेदनः सुखाजातः सुगन्धारो महाधनुः ।
गन्धपाली च भगवानुत्थानः सर्वकर्मणाम् ॥ ९९॥
मन्थानो बहुलो वायुः सकलः सर्वलोचनः ।
तलस्तालः करस्थाली ऊर्ध्वसंहननो महान् ॥ १००॥
छत्रं सुच्छत्रो विख्यातो लोकः सर्वाश्रयः क्रमः ।
मुण्डो विरूपो विकृतो दण्डी कुण्डी विकुर्वणः ॥ १०१॥
हर्यक्षः ककुभो वज्री शतजिह्वः सहस्रपात् ।
सहस्रमूर्धा देवेन्द्रः सर्वदेवमयो गुरुः ॥ १०२॥
सहस्रबाहुः सर्वांगः शरण्यः सर्वलोककृत् ।
पवित्रं त्रिककुन्मन्त्रः कनिष्ठः कृष्णपिंगलः ॥ १०३॥
ब्रह्मदण्डविनिर्माता शतघ्नीपाशशक्तिमान् ।
पद्मगर्भो महागर्भो ब्रह्मगर्भो जलोद्भवः ॥ १०४॥
गभस्तिर्ब्रह्मकृद् ब्रह्मी ब्रह्मविद् ब्राह्मणो गतिः ।
अनन्तरूपो नैकात्मा तिग्मतेजाः स्वयंभुवः ॥ १०५॥
ऊर्ध्वगात्मा पशुपतिर्वातरंहा मनोजवः ।
चन्दनी पद्मनालाग्रः सुरभ्युत्तरणो नरः ॥ १०६॥
कर्णिकारमहास्रग्वी नीलमौलिः पिनाकधृत् ।
उमापतिरुमाकान्तो जाह्नवीधृगुमाधवः ॥ १०७॥
वरो वराहो वरदो वरेण्यः सुमहास्वनः ।
महाप्रसादो दमनः शत्रुहा श्वेतपिंगलः ॥ १०८॥
प्रीतात्मा परमात्मा च प्रयतात्मा प्रधानधृत् ।
सर्वपार्श्वमुखस्त्र्यक्षो धर्मसाधारणो वरः ॥ १०९॥
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा अमृतो गोवृषेश्वरः ।
साध्यर्षिर्वसुरादित्यो विवस्वान् सविताऽमृतः ॥ ११०॥
व्यासः सर्गः सुसंक्षेपो विस्तरः पर्ययो नरः ।
ऋतुः संवत्सरो मासः पक्षः संख्यासमापनः ॥ १११॥
कला काष्ठा लवा मात्रा मुहूर्ताहः क्षपाः क्षणाः ।
विश्वक्षेत्रं प्रजाबीजं लिंगमाद्यस्तु निर्गमः ॥ ११२॥
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं पिता माता पितामहः ।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम् ॥ ११३॥
निर्वाणं ह्लादनश्चैव ब्रह्मलोकः परागतिः ।
देवासुरविनिर्माता देवासुरपरायणः ॥ ११४॥
देवासुरगुरुर्देवो देवासुरनमस्कृतः ।
देवासुरमहामात्रो देवासुरगणाश्रयः ॥ ११५॥
देवासुरगणाध्यक्षो देवासुरगणाग्रणीः ।
देवातिदेवो देवर्षिर्देवासुरवरप्रदः ॥ ११६॥
देवासुरेश्वरो विश्वो देवासुरमहेश्वरः ।
सर्वदेवमयोऽचिन्त्यो देवतात्माऽऽत्मसंभवः ॥ ११७॥
उद्भित्त्रिविक्रमो वैद्यो विरजो नीरजोऽमरः ।
ईड्यो हस्तीश्वरो व्याघ्रो देवसिंहो नरर्षभः ॥ ११८॥
विबुधोऽग्रवरः सूक्ष्मः सर्वदेवस्तपोमयः ।
सुयुक्तः शोभनो वज्री प्रासानां प्रभवोऽव्ययः ॥ ११९॥
गुहः कान्तो निजः सर्गः पवित्रं सर्वपावनः ।
शृंगी शृंगप्रियो बभ्रू राजराजो निरामयः ॥ १२०॥
अभिरामः सुरगणो विरामः सर्वसाधनः ।
ललाटाक्षो विश्वदेवो हरिणो ब्रह्मवर्चसः ॥ १२१॥
स्थावराणांपतिश्चैव नियमेन्द्रियवर्धनः ।
सिद्धार्थः सिद्धभूतार्थोऽचिन्त्यः सत्यव्रतः शुचिः ॥ १२२॥
व्रताधिपः परं ब्रह्म भक्तानां परमागतिः ।
विमुक्तो मुक्ततेजाश्च श्रीमान् श्रीवर्धनो जगत् ॥ १२३॥
॥ श्रीमान् श्रीवर्धनो जगत् ॐ नम इति ॥

महाशिवरात्रि की व्रत-कथा
एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’

उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।

अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।

एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।’

शिकारी हँसा और बोला, ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’

उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।’

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा।

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,’ हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।’

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।’

उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।

देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।


भगवान शिव की आरती

भगवान शिव

शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥

शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह बैठे हैं शिव अविनाशी।
करत गान-गन्धर्व सप्त स्वर राग रागिनी मधुरासी॥

यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा-सी॥

कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी।
कामधेनु कोटिन जहँ डोलत करत दुग्ध की वर्षा-सी॥

सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी।
नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित सेवत सदा प्रकृति दासी॥

ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।
ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन कछु शिव हमकू फरमासी॥

ऋद्धि सिद्ध के दाता शंकर नित सत् चित् आनन्दराशी।
जिनके सुमिरत ही कट जाती कठिन काल यमकी फांसी॥

त्रिशूलधरजी का नाम निरन्तर प्रेम सहित जो नरगासी।
दूर होय विपदा उस नर की जन्म-जन्म शिवपद पासी॥

कैलाशी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान कृपा कीजो॥

तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकर किंकर की विनती सुनियो॥


हर हर हर महादेव।
आरती, भोलेनाथ, महादेव, हर-हर
हर हर हर महादेव।

सत्य, सनातन, सुन्दर शिव! सबके स्वामी।
अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी॥ हर हर .

आदि, अनन्त, अनामय, अकल कलाधारी।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥ हर हर..

ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी॥ हरहर ..

रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औघरदानी।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी॥ हरहर ..

मणिमय भवन निवासी, अति भोगी, रागी।
सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥ हरहर ..

छाल कपाल, गरल गल, मुण्डमाल, व्याली।
चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली॥ हरहर ..

प्रेत पिशाच सुसेवित, पीत जटाधारी।
विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी॥ हरहर ..

शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।
अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मनहारी॥ हरहर ..

निर्गुण, सगुण, निर†जन, जगमय, नित्य प्रभो।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥ हरहर ..

सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय धाता।
प्रेम सुधा निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता। हरहर ..

हम अतिदीन, दयामय! चरण शरण दीजै।
सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै। हरहर ..

भोलेनाथ महादेव की आरती

जय शिव ओंकारा, भज शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अद्र्धागी धारा॥ ॐ हर हर हर महादेव॥

एकानन, चतुरानन, पंचानन राजै।
हंसासन, गरुडासन, वृषवाहन साजै॥ ॐ हर हर ..

दो भुज चारु चतुर्भुज, दशभुज ते सोहे।
तीनों रूप निरखता, त्रिभुवन-जन मोहे॥ ॐ हर हर ..

अक्षमाला, वनमाला, रुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी, कंसारी, करमाला धारी॥ ॐ हर हर ..

श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक, गरुडादिक, भूतादिक संगे॥ ॐ हर हर ..

कर मध्ये सुकमण्डलु, चक्र शूलधारी।
सुखकारी, दुखहारी, जग पालनकारी॥ ॐ हर हर ..

ब्रह्माविष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका। ॐ हर हर ..

त्रिगुणस्वामिकी आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावै॥ ॐ हर हर ..

My Links:
http://khudaniya.hyves.nl                       
http://khudaniya.tumblr.com/                        
http://risn.webs.com/                                 
http://khudaniya.weebly.com/